रॉबिन शॉ
रॉबिन शॉ
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पूरा नाम | रॉबिन शॉ पुष्प |
जन्म | 20 दिसंबर, 1936 |
जन्म भूमि | मुंगेर, बिहार |
मृत्यु | 30 अक्टूबर, 2014 |
मृत्यु स्थान | पटना, बिहार |
कर्म-क्षेत्र | कथाकार, उपन्यासकार, नाटककार और पटकथा लेखक |
मुख्य रचनाएँ | उपन्यास- अन्याय को क्षमा, दुल्हन बाज़ार कहानी संग्रह- अग्निकुंड, घर कहां भाग गया संस्मरण- 'सोने की कलम वाला हिरामन' आदि। |
भाषा | हिन्दी |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रेडियो पर प्रसारित रॉबिन शॉ का लिखा नाटक ‘दर्द का सुख’ तो आज भी लोकप्रिय है। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रॉबिन शॉ पुष्प (अंग्रेज़ी: Robin Shaw Pushp, जन्म: 20 दिसंबर, 1936; मृत्यु: 30 अक्टूबर, 2014) मशहूर कथा, उपन्यास, नाटक और पटकथा लेखक थे। आजीवन स्वतंत्र लेखक रहे रॉबिन शॉ पुष्प की पचास से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हैं। इनमें उपन्यास, कहानियां, कविताएं, लेख, नाटक और बाल साहित्य आदि शामिल है। अन्याय को क्षमा, दुल्हन बाज़ार जैसे उपन्यास, अग्निकुंड, घर कहां भाग गया कहानी संग्रह और फणीश्वर नाथ रेणु पर लिखी संस्मरण पुस्तक 'सोने की कलम वाला हिरामन' उनकी चर्चित कृतियां हैं।
जीवन परिचय
रॉबिन शॉ पुष्प का जन्म मुंगेर में 20 दिसंबर, 1936 को हुआ था। उनकी पहली कहानी धर्मयुग में छपी थी। रेडियो और टीवी के लिए भी उन्होंने कई नाटक, कहानियां लिखी थीं। उनकी कहानियों पर बनी टीवी फिल्में रांची, मुजफ्फरपुर, रायपुर और दिल्ली दूरदर्शन पर कई बार प्रसारित हो चुकी हैं। पटना से प्रकाशित फिल्म पत्रिका ‘चित्र साधना’ और ‘महादेश’ से भी वह लंबे अरसे तक जुड़े रहे थे। उनकी कहानियां उर्दू, बांग्ला, पंजाबी, मलयालम, गुजराती, मराठी और मैथिली में भी अनुवादित हुई हैं। रेडियो पर प्रसारित उनका लिखा नाटक ‘दर्द का सुख’ तो आज भी लोकप्रिय है।[1]
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रॉबिन शॉ उन गिने-चुने इसाइयों में हैं, जिन्होंने हिन्दी साहित्य के संसार में भरपूर नाम कमाया। नि:संदेह श्री पुष्प आज हिन्दी के एक प्रतिष्ठित कथाकार हैं-नुकीले अनुभव, खंडों के कुशल शब्द शिल्पी, संवेदनाओं की जटिल ग्रंथियों के अनूठे कथाकार।
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साहित्यिक परिचय
रॉबिन शॉ ने अपनी साहित्यिक जीवन की शुरुआत पत्रिका धर्मयुग से की थी। उसके बाद उनके कई कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहीं। शॉ ने बिहार के गांव कस्बों पर भी कहानियां लिखीं हैं। उनकी कई अनूदित रचनाएं भी आई हैं। रॉबिन शॉ पुष्प की आत्म संस्मरणात्मक रचना यात्रा "एक वेश्या नगर" को पाठकों ने खूब सराहा। उन्होंने कई डॉक्यूमेंटरी फिल्में भी बनाईं और कुछ फिल्मों के लिए पटकथाएं भी लिखीं। इसी वर्ष उनके संपूर्ण रचनाकर्म को समेटती सात खंडों में रॉबिन शॉ पुष्प रचनावली प्रकाशित हुई थी। उनकी कहानियों के अंग्रेजी के अलावा तमाम भारतीय भाषाओं में अनुवाद छपे और सराहे गये। उन्हें शिवपूजन सहाय, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का विशेष साहित्य सेवा सम्मान, फणीश्वरनाथ रेणु पुरस्कार, महिषी हिन्दी साहित्य रत्न सम्मान जैसे अनेक पुरस्कार और सम्मान पाने वाले रॉबिन शॉ पुष्प आजीवन आम आदमी के सुख, दुख, प्रेम और संघर्ष के लेखक रहे। उनकी पत्नी गीता शॉ पुष्प भी प्रख्यात लेखिका हैं।[2]
प्रमुख कृतियाँ
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सम्मान एवं पुरस्कार
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रॉबिन शॉ पुष्प की कहानियां मैने हिन्दी की श्रेष्ठ पत्रिकाओं में पढ़ी हैं और उनमें देर तक डूबा रहा हूं। उनमें कलात्मक निपुणता के साथ मर्म पर चोट करने की क्षमता है। पात्रों के मानसिक द्वंद्वों का उद्घाटन करने में माहिर हैं। मैं उनसे मिलने उनके घर मुंगेर गया था। वह जिस शालीनता से मेहमानों का सत्कार करते हैं, उसी शालीनता से लिखते भी हैं।
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- 1965 में उदीयमान साहित्यिक पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बिहार सरकार
- 1980 में कला एवं साहित्यिक सेवा के लिए विशेष सम्मान, मंथन कला परिषद्, खगौल
- 1976 में हिंदी सेवा तथा श्रेष्ठ साहित्यिक सृजन के लिए सारस्वत सम्मान
- 1987 में शिव पूजन सहाय पुरस्कार, राजभाषा विभाग, बिहार सरकार
- 1994 में विशेष साहित्य सेवी सम्मान पुरस्कार, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, बिहार सरकार
- 1994 में बिहार के साहित्यकारों की कृतियों को सम्म्पादित एवं प्रकाशित करने की दिशा में किये गए कार्यों के लिए ह्यमुरली सम्मान, शब्दांजलि, पटना
- 1994 में हिंदी कथा-साहित्य की संमृद्धि में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए राजभाषा विभाग, बिहार सरकार द्वारा फणीश्वर नाथ रेणु पुरस्कार
- 2002 में मसीही हिंदी साहित्य-रतन-सम्मान से काथलिक हिंदी साहित्य समिति (भारत के काथलिक की हिंदी समिति) द्वारा इलाहाबाद में[3]
निधन
अस्सी वर्षीय रॉबिन शॉ का 30 अक्टूबर, 2014 को दोपहर तकरीबन 2 बजे पटना स्थित अपने आवास पर निधन हो गया।
आज सोचता हूँ, ज़िंदगी को किसी ने डॉक्टर ने नुस्खे की तरह नहीं लिखा, कि सुबह यह, दोपहर यह, रात में यह। यह तो आसमान में, बहुत ऊँचाई तक उड़नेवाली चिड़ियाँ जैसी है... या पानी के भीतर, बहुत भीतर तक तैरती हुई कोई मछली... ज़िंदगी की ऊँचाई या गहराई को नापना इतना आसान नहीं। -रॉबिन शॉ पुष्प
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ नहीं रहे कथाकार रॉबिन शॉ पुष्प (हिंदी) पत्रिका खबर। अभिगमन तिथि: 2 नवम्बर, 2014।
- ↑ मशहूर लेखक रॉबिन शॉ पुष्प का निधन (हिंदी) खास खबर। अभिगमन तिथि: 2 नवम्बर, 2014।
- ↑ 3.0 3.1 सुलभ, हृषिकेश। अपने समय की युवा आहटों को सुनते रहे (हिंदी) हिंदुस्तान लाइव। अभिगमन तिथि: 2 नवम्बर, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
- अपने समय की युवा आहटों को सुनते रहे
- पापू यहीं कहीं हैं...क्योंकि शब्द रहते हैं हमेशा जिंदा
- रॉबिन ने अंतिम पड़ाव में कहा था, मैं बहुत खुश हूं!
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