रतन लाल बंसल
रतन लाल बंसल
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पूरा नाम | रतन लाल बंसल |
जन्म | 1919 |
जन्म भूमि | फ़िरोजाबाद, उत्तर प्रदेश |
मृत्यु | 1989 |
कर्म भूमि | भारत |
कर्म-क्षेत्र | स्वतंत्रता सेनानी, लेखक तथा पत्रकार |
मुख्य रचनाएँ | 'तीन क्रांतिकारी शहीद', ' रेशमी पत्रों का षड़यंत्र' और 'आज के शहीद', 'आजाद हिन्द फ़ौज का इतिहास', 'शहीद चंद्रशेखर आजाद' आदि। |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | रतन लाल बंसल आत्मप्रचार से सदैव दूर रहे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दो बार- एक बार फ़िरोजाबाद और फिर दिल्ली की चांदनी चौक इलाके की संसदीय सीट से सांसद का चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया था। |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
रतन लाल बंसल (अंग्रेज़ी: Ratan Lal Bansal, जन्म- 1919, फ़िरोजाबाद, उत्तर प्रदेश; मृत्यु- 1989) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, लेखक तथा पत्रकार थे। पत्रकार शिरोमणि बनारसीदास चतुर्वेदी से इनका निकट सम्पर्क था। सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता के कारण इन्होंने जेल की सज़ा भी काटी। रतन लाल बंसल के लेखन का विषय स्वाधीनता आंदोलन, क्रांतिकारी साहित्य, नारी मुक्ति और इतिहास प्रमुख रहा। साम्प्रदायिकता के विरुद्ध कलम चलाई और अनेक लेख लिखे और पुस्तिकाएं छापी। अंधविश्वासों के खिलाफ अलख जगाया और नारी मुक्ति के पक्षधर बन अनेक लेख लिखे।
परिचय
रतन लाल बंसल का जन्म सन 1919 में उत्तर प्रदेश के फ़िरोजाबाद में एक साधारण परिवार में हुआ। पिता का साया न होने के कारण प्रारम्भिक शिक्षा न हो सकी। फिरोजाबाद के पुरानी मंडी मोहल्ले में लम्बे समय तक निवास रहा। यह सुखद संयोग रहा कि इसी इलाके में पत्रकार शिरोमणि दादा बनारसी दास चतुर्वेदी का निवास था। नौजवान रतन लाल को दादाजी के सम्पर्क में आने का अवसर मिला और पढ़ने-लिखने की प्रेरणा मिली। दादाजी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में 'विशाल भारत' के सम्पादक थे। रतन लाल बंसल ने एक कहानी लिखी तो दादाजी ने इसे 'विशाल भारत' में प्रकाशित किया और पारिश्रमिक भी मिला। इससे उनका उत्साहवर्धन हुआ और अपनी जीविका के लिए लेखन प्रारम्भ किया।
जेलयात्रा
सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में रतन लाल बंसल जेल चले गए। तीन माह की सजा आगरा की सेन्ट्रल जेल में काटी। इसके साथ ही कई बार उन्हें अंग्रेज़ हूकूमत ने नजरबंद भी किया। आजादी के बाद स्वतंत्रता सैनानी का प्रमाण पत्र मिला तो यह कहकर नष्ट कर दिया कि देश सेवा के लिए पुरस्कार की आकांक्षा गलत है।
लेखन कार्य
रतन लाल बंसल के लेखन का विषय स्वाधीनता आंदोलन, क्रांतिकारी साहित्य, नारी मुक्ति और इतिहास प्रमुख रहा। साम्प्रदायिकता के विरुद्ध कलम चलाई और अनेक लेख लिखे और पुस्तिकाएं छापी। अंधविश्वासों के खिलाफ अलख जगाया और नारी मुक्ति के पक्षधर बन अनेक लेख लिखे। 'सरिता' ने इन लेखों को प्रमुखता से छापा। इन लेखों के पक्ष और समर्थन में देशभर में प्रतिक्रियाएं हुईं। तभी महात्मा गाँधी ने बुलावा भेजा। गाँधीजी के निकट रहे पं. सुंदरलाल के साथ उनके द्वारा प्रकाशित अखबार 'नया हिन्द' में एक लेखक के रूप में रतन लाल बंसल ने कार्य किया। दिल्ली में लम्बे वक्त तक निवास रहा।
संपादन तथा प्रकाशन
दिल्ली में समय-समय पर समाचार पत्र और पत्रिकाओं का सम्पादन किया और आजादी के परवानों के त्याग और तपस्या को रेखाँकित करती प्रदर्शनियों का आयोजन किया। एक साप्ताहिक पत्र 'देश की पुकार' भी निकाला। 'अमर शहीद भगत सिंह स्मारक समिति' का गठन कर क्रांतिकारी आंदोलन की बारीकियों और अनछुए पहलूओं पर शोध कार्य किया और 'स्वाधिता विशेषांक' प्रकाशित किये। हास्य व्यंग की सालाना पत्रिका 'ठिठोली' का संपादन किया।
राजनीति से दूरी
रतन लाल बंसल आत्मप्रचार से सदैव दूर रहे। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें दो बार- एक बार फ़िरोजाबाद और फिर दिल्ली की चांदनी चौक इलाके की संसदीय सीट से सांसद का चुनाव लड़ने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन उन्होंने कलुषित राजनीति में प्रवेश करने से सदैव परहेज रखा। कोई पुरस्कार ग्रहण नहीं किया।
रचनाएँ
रतन लाल बंसल जी की तीन पुस्तकें अंग्रेजी जमाने में जब्त हुईं। मसलन, 'तीन क्रांतिकारी शहीद', ' रेशमी पत्रों का षड़यंत्र' और 'आज के शहीद'। अपने सम्पूर्ण जीवन में उन्होंने करीब तीन दर्जन पुस्तकें और सैकड़ों लेख लिखे जो अपने वक्त की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए। 'मशाल' शीर्षक से उनके लेखों का संग्रह 50 के दशक में प्रकाशित हुआ। इस संग्रह में शामिल लेख- 'गौ पूजा', 'युग युग से पीड़ित भारतीय नारी', 'पुरोहितवाद' बेहद चर्चित हुए। इस पुस्तक को समर्थन मिला तो विरोध भी हुआ। उनकी अन्य पुस्तकें इस प्रकार हैं-
- मन के बंधन
- चट्टान और लहर
- आजाद हिन्द फ़ौज का इतिहास
- उत्तर-पश्चिम के आजाद कबीले
- गणेश शंकर विध्यार्थी
- शहीद चंद्रशेखर आजाद
- मुस्लिम देशभक्त
- आज के शहीद
- तीन क्रन्तिकारी शहीद
- रेशमी पत्रों का षड़यंत्र
रतन लाल बंसल जी की आखिरी पुस्तक 'चंदवार और फ़िरोजाबाद का प्राचीन इतिहास' थी। इसका विमोचन फ़िरोजाबाद के पी. डी. जैन इंटर कालेज में पूर्व मंत्री कर्ण सिंह ने किया था। इस पुस्तक पर एक डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म 'बुलंदी खंडहरों की' का निर्माण भी किया गया है।
मृत्यु
रतन लाल बंसल जी का सन 1989 में निधन हुआ।
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