अन्नाराम सुदामा
अन्नाराम सुदामा
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पूरा नाम | अन्नाराम सुदामा |
जन्म | 23 मई, 1923 |
जन्म भूमि | बीकानेर, राजस्थान |
मृत्यु | 2 जनवरी, 2014 |
कर्म भूमि | भारत |
मुख्य रचनाएँ | आंधी अर आस्था, मैवै रा रूंख (उपन्यास), पिरोळ में कुत्ती ब्याई (कविता), बंधती अंवळाई (नाटक) |
विषय | उपन्यास, कहानियां, नाटक, निबंध |
भाषा | राजस्थानी |
शिक्षा | एम.ए. (स्नातकोत्तर) |
पुरस्कार-उपाधि | सूर्यमल्ल मीसण पुरस्कार, मीरा सम्मान, साहित्य अकादमी पुरस्कार ('मेवे रा रुंख') |
नागरिकता | भारतीय |
इन्हें भी देखें | कवि सूची, साहित्यकार सूची |
अन्नाराम सुदामा (अंग्रेज़ी: Annaram Sudama जन्म: 23 मई, 1923 - मृत्यु: 2 जनवरी, 2014) राजस्थानी भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। सुदामा ने राजस्थानी एवं हिन्दी में उपन्यास, कहानी, कविता, नाटक, निबंध, यात्रा संस्मरण, बाल साहित्य और अन्य विधाओं में 25 पुस्तकें लिखी है। इनका साहित्य अन्नाराम सुदामा समग्र के नाम से सात खण्डों में प्रकाशित किया जा रहा है। अकादमियों और संस्थाओं की ओर से इन्हें 11 पुरस्कार मिले हैं। उनकी साहित्यक रचनाएं विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठयक्रम में शामिल की गई है। इनकी सबसे प्रमुख रचना 'मेवे रा रुंख' है जिसके लिये इनको साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
जीवन परिचय
अन्नाराम सुदामा का जन्म 23 मई, 1923 को बीकानेर, राजस्थान में हुआ था। अन्नाराम सुदामा ने एम.ए. तक शिक्षा ग्रहण की। पेशे से वे एक साधारण शिक्षक और प्रतिभा में असाधारण कथाकार थे। अन्नाराम सुदामा की प्रमुख कृति 'आंधी अर आस्था' (आंधी और आस्था) उपन्यास है। किसी और भाषा में होती तो शायद क्लासिक कहलाती। सुदामा की कविता संग्रह "पिरोल में कुत्ती ब्याई" और उपन्यास "जगिया की वापसी" आम जन में चर्चित रही। मैकती काया-मुलकती धरती, आंधी अर आस्था, मेवै रा रूंख, डंकीजता मानवी, घर-संसार और अचूक इलाज जैसे उपन्यास, आंधै नै आंख्यां, गलत इलाज, माया रो रंग, अै इक्कीस कहानियां, व्यथा-कथा अर दूजी कवितावां जैसे कविता संग्रह लिखे। उनका बधती अंवलाई नाटक, मनवा थारी आदत नै निबंध और दूर-दिसावर तथा आंगण सूं अर्नाकुलम जैसे यात्रा संस्मरण काफ़ी चर्चित रहे। वहीं उन्होंने गांव रौ गौरव जैसे बाल साहित्य का सृजन भी किया। सुदामा ने हिन्दी में अनेक उपन्यास लिखे। इनमें जगिया की वापसी, आंगन-नदियां, अजहुं दूरी अधूरी, अलाव तथा बाघ और बिल्लियां प्रमुख हैं। रूणिया बड़ा बास में इस बालक के जन्म के समय अच्छा जमाना हुआ तो अकाल से पीड़ित अन्न की किल्लत भुगत रहे परिजनों ने नाम अन्नाराम रख दिया। स्कूल में गुरूजन की सुदामा के नाम की उपमा से बाद नाम के पीछे सुदामा जुड़ गया। राजस्थानी में लोक विधा के विजयदान देथा के दौर के सुदामा ने मौलिक लेखन के साथ राजस्थानी को ऊंचाई दी। साहित्यकार डॉ. मदन सैनी ने सुदामा के साहित्य पर डाक्टरेट भी करवाई है।[1]
कृतियाँ
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सम्मान एवं पुरस्कार
- केन्द्रीय साहित्य अकादमी दिल्ली से 1978 में पुरस्कृत
- मीरा पुरस्कार 1991-92
- सूर्यमल्ल मीसण शिखर सम्मान 1992
- राजस्थान साहित्य अकादमी (संगम) उदयपुर से सम्मानित, 1974 व 1980
- टैसीटोरी गद्य पुरस्कार 1993
- गद्य लेखन के लिए मातुश्री कमला गोइनका पुरस्कार 2006
- भुवालका ट्रस्ट कोलकोता, राव बीका जी संस्थान से सम्मानित
- 16 वां लखोटिया पुरस्कार के अलावा विभिन्न संस्थाओं की ओर से सम्मानित किया गया।[1]
लेखन शैली
राजस्थानी भाषा और साहित्य को समृद्ध करने में जिन महान् रचनाकारों का योगदान है। उनमें अन्नाराम सुदामा का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है। राजस्थान के ग्रामीण जनजीवन में नित्य होने वाली घटनाओं को वे अत्यंत पारखी नजर से देखते हुए गहरी सामाजिक चेतना से सराबोर रचनाएं लिखते हैं और यही उनके लेखन की विशेषता है। राजस्थान के ग्राम्य जीवन की संवेदना, मानवीय सरोकार और विविध छवियां आप अन्नाराम सुदामा के साहित्य से गुजरे बिना देख ही नहीं सकते। वे राजस्थानी के उन विरल साहित्यकारों में हैं, जिनके यहां अभावों में जीते मनुष्य की चेतना और विपरीत हालात से संघर्ष इतनी शिद्दत के साथ मौजूद होते हैं कि स्वयं पाठक भी एकबारगी लेखक और उसके अद्भुत जीवट वाले पात्रों के साथ खड़ा हो जाता है। अन्नाराम सुदामा के विपुल साहित्य में ‘सूझती दीठ, एक ऐसी कहानी है, जो अकाल से ग्रस्त एक सामान्य निर्धन ग्रामीण स्त्री के संघर्ष के बीच उसकी वैज्ञानिक दृष्टि को ही नहीं उसके नैतिक बल और साहस को बहुत गहराई के साथ रेखांकित करती है। पढ़े-लिखे पात्रों के माध्यम से चेतना जगाना आसान होता है, लेकिन सुदामा तो अपने निरक्षर पात्रों से ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण और समता-बंधुत्व की बात अत्यंत सहज रूप से पैदा कर देते हैं। इस एक कहानी से आप उनकी रचनात्मकता का सहज ही अनुमान लगा सकते हैं।[2]
निधन समाचार
- 2 जनवरी, 2014
राजस्थानी साहित्यकार अन्नाराम सुदामा का गुरुवार 2 जनवरी, 2014 को निधन हो गया। वे 90 वर्ष के थे। सुदामा का जन्म 23 मई, 1923 को हुआ था। उन्होंने कई उपन्यास, कहानियां, नाटक, निबंध आदि की पुस्तकें लिखी थी। सुदामा का राजस्थानी उपन्यास जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर और महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय अजमेर में एम.ए. और बी.ए. के पाठ्यक्रम में शामिल रहा। केन्द्रीय साहित्य अकादमी से 'मेवै रां रूंख' उपन्यास अंग्रेज़ी एवं हिन्दी अनुवाद प्रकाशित हुआ। सुदामा के निधन पर ज़िला कलेक्टर आरती डोगरा ने शोक जताया है। कलेक्टर की ओर से सुदामा के पार्थिव देह पर पुष्पांजलि अर्पित की।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 राजस्थानी के मौलिक रचनाकार अन्नाराम सुदामा नहीं रहे (हिंदी) राजस्थान पत्रिका। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2014।
- ↑ सूझती दीठ-अन्नाराम सुदामा की कहानी (हिंदी) प्रेम का दरिया (ब्लॉग)। अभिगमन तिथि: 5 जनवरी, 2014।
- ↑ साहित्य के सुदामा नहीं रहे (हिंदी) प्रेसनोट। अभिगमन तिथि: 4 जनवरी, 2014।
बाहरी कड़ियाँ
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