कल्याण मल लोढ़ा

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कल्याण मल लोढ़ा
पूरा नाम कल्याण मल लोढ़ा
जन्म 28 सितंबर, 1921
जन्म भूमि जोधपुर, राजस्थान
मृत्यु 21 नवंबर, 2009
पति/पत्नी पिता- चन्दमलजी लोढ़ा

माता- सूरज कंवर

कर्म भूमि भारत
पुरस्कार-उपाधि 'मूर्ति देवी पुरस्कार' (2003), 'सुब्रमण्यम सम्मान'
प्रसिद्धि शिक्षाविद्, हिंदी लेखक, साहित्यिक आलोचक और समाज सुधारक
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी सन 1945 में कल्याण मल लोढ़ा कोलकाता स्थित सेठ आनन्दराम जयपुरिया कॉलेज में प्राध्यापक के रूप मे जुड़े। 1948 में उनको कलकत्ता विश्वविद्यालय में अल्पकालिक अध्यापक के रूप में नियुक्ति मिली।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

कल्याण मल लोढ़ा (अंग्रेज़ी: Kalyan Mal Lodha, जन्म- 28 सितंबर, 1921, जोधपुर; मृत्यु- 21 नवंबर, 2009) प्रसिद्ध शिक्षाविद्, हिंदी लेखक, साहित्यिक आलोचक और समाज सुधारक थे, जिन्होंने जोधपुर विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया। उन्होंने जैन धर्म और जैन समुदाय के लिये महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे कलकत्ता विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के प्रमुख थे। कल्याण मल लोढ़ा अपनी ओजपूर्ण वाक्शैली के लिए देश भर में जाने जाते थे। विविध सम्मेलनों में आपने अपना ओजश्वी वक्तव्य देकर हिंदी का मान बढ़ाया। वह बिरला फाउन्डेशन, भारतीय विद्या भवन, भारतीय भाषा परिषद्, भारतीय संस्कृति संसद सरीखी देश के सुप्रसिद्ध संस्थानों से जुड़े हुए थे।

परिचय

कल्याण मल लोढ़ा का जन्म 28 सितम्बर, 1921 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ। आपके पिता चन्दमलजी लोढ़ा तत्कालीन जोधपुर राज्य में उच्च अधिकारी थे। इनकी माता का नाम सूरज कंवर था जो एक मध्यवित्त परिवार की गृहिणी महिला थीं। कल्याण मल लोढ़ा का परिवार जैन धर्म का अनुयायी रहा। साथ ही हिन्दू धार्मिक पर्व, जैसे- नवरात्र, जन्माष्टमी, महाशिवरात्रि का भी पालन करता है। उच्च मध्यवित्त परिवार में उनका पालन-पोषण बड़े ही सम्मानपूर्वक हुआ। नैतिक मूल्यों में आस्था थी। परिवार में प्रातःकाल उठकर सभी को प्रणाम करना पड़ता था, पूजा करनी पड़ती थी। कल्याण मल लोढ़ा जसवन्त कॉलेज के विद्यार्थी थे। आचार्य सोमनाथ गुप्त एवं अन्य अध्यापकों का उन्हें काफी स्नेह प्राप्त रहा। कॉलेज के समय से ही आपके आलेख प्रकाशित होने लगे थे।[1]

गुरुवर आचार्य लोढ़ाजी

वर्ष 2003 में कल्याण मल लोढ़ा को भारतीय ज्ञानपीठ के 'मूर्ति देवी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। लोढ़ा जी को 'गुरुवर आचार्य लोढ़ाजी' के नाम से भी सभी जानते थे। कोलकाता महानगर में हिन्दी की जितनी सेवा आपने की, वह आज एक शोध का विषय बन गया है। जिन लोगों ने आचार्य लोढ़ा के वक्तव्यों को सुना है, जिनको इनकी कक्षा में पढ़ने का सौभाग्य मिला है, वे सभी जानते हैं कि लोढ़ाजी के जीवन में कविताओं का बहुत बड़ा स्थान रहा।

कोलकाता आगमन

22 जुलाई, 1945 को कल्याण मल लोढ़ा कलकत्ता आ गए। उनके दो भाई हैंं। बड़े भाई उच्च न्यायालय में उच्च न्यायाधीश एवं विचारपति रह चुक हैं एवं इनके अनुज भी न्यायालय में न्यायपति रह चुके हैं। परिवार के राजकीय सेवा में रहते हुए इनका ध्यान शिक्षा जगत की ओर ही रहा। सन 1945 में कल्याण मल लोढ़ा कोलकाता स्थित सेठ आनन्दराम जयपुरिया कॉलेज में प्राध्यापक के रूप मे जुड़े। 1948 में उनको कलकत्ता विश्वविद्यालय में अल्पकालिक अध्यापक के रूप में नियुक्ति मिली। सन 1953 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग को मान्यता मिली। एक प्रकार से धीरे-धीरे कोलकाता महानगर के प्रायः सभी कॉलेजों में हिन्दी विभाग की व्यवस्था कराने में इनका सक्रिय योगदान रहा था।[1]

लेखन कार्य

कल्याण मल लोढ़ा ने दर्जनों पुस्तकों की रचना की, जिनमे प्रमुख हैं-
वाग्मिता, वाग्पथ, इतस्ततः, प्रसाद- सृष्टी व दृष्टी, वागविभा, वाग्द्वार, वाक्सिद्धि, वाकतत्व आदि। इनमें वाग्द्वार वह पुस्तक है, जिसमें हिंदी के स्वनामधन्य आठ साहित्यकारों- तुलसीदास, सूरदास, कबीर, निराला, मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, माखनलाल चतुर्वेदी के साहित्यिक अवदानों का सुचिंतित तरीके से मूल्यांकन किया गया है। प्रोफ़ेसर लोढ़ा ने प्रज्ञा चक्षु सूरदास, बालमुकुन्द गुप्त-पुनर्मूल्यांकन, भक्ति तत्त्व, मैथिलीशरण गुप्त अभिनन्दन ग्रन्थ का संपादन भी किया।

पुरस्कार व सम्मान

प्रोफ़ेसर कल्याण मल लोढ़ा को उनके साहित्यिक अवदानों के लिए 2003 में मूर्ति देवी पुरस्कार से नवाजा गया था। उन्हें केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से राष्ट्रपति द्वारा सुब्रमण्यम सम्मान मिला और अमेरिकन बायोग्राफिकल सोसाइटी आदि ने सम्मानित किया।[1]

मृत्यु

कल्याण मल लोढ़ा का निधन 21 नवंबर, 2009 को हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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