निठारी -कुलदीप शर्मा: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replacement - "फांसी" to "फाँसी")
 
(4 intermediate revisions by 3 users not shown)
Line 7: Line 7:
|कवि =[[कुलदीप शर्मा]]  
|कवि =[[कुलदीप शर्मा]]  
|जन्म=  
|जन्म=  
|जन्म स्थान=([[ऊना, हिमाचल प्रदेश]])  
|जन्म स्थान=([[उना हिमाचल|उना]], [[हिमाचल प्रदेश]])  
|मुख्य रचनाएँ=  
|मुख्य रचनाएँ=  
|यू-ट्यूब लिंक=
|यू-ट्यूब लिंक=
Line 31: Line 31:
अब नहीं है समय
अब नहीं है समय
कि ज़ुर्म पर की जाए टिप्पणी
कि ज़ुर्म पर की जाए टिप्पणी
कि पाप पर षुरू हो कोई बहस
कि पाप पर शुरू हो कोई बहस
बहुत बहस हो रही है पहले से ही
बहुत बहस हो रही है पहले से ही
और कानून की किसी उपधारा के तहत  
और क़ानून की किसी उपधारा के तहत  
बेनेफिट ऑफ डाउट देने के लिए  
बेनेफिट ऑफ डाउट देने के लिए  
टटोली जा रही हैं किताबें
टटोली जा रही हैं किताबें
Line 66: Line 66:
जिस पर फिंगर प्रिंट हों उनके बच्चों के
जिस पर फिंगर प्रिंट हों उनके बच्चों के
क्या कहा उन्होंने किसी कोर्ट से  
क्या कहा उन्होंने किसी कोर्ट से  
किसी भी बेगुनाह को चढ़ा दो फांसी
किसी भी बेगुनाह को चढ़ा दो फाँसी
उन्होने कुछ कहा ही नहीं कानून के बारे में  
उन्होंने कुछ कहा ही नहीं क़ानून के बारे में  
वे तो लौट गए हैं घरों को  
वे तो लौट गए हैं घरों को  
भाग्य पर बिसूरने के लिए
भाग्य पर बिसूरने के लिए
Line 73: Line 73:
हर बहस से अलग  
हर बहस से अलग  
वे आंसुओं के उस सैलाब में हैं
वे आंसुओं के उस सैलाब में हैं
जहां कानून की हर धारा
जहां क़ानून की हर धारा
खो बैठती है अपनी भाषा़
खो बैठती है अपनी भाषा़



Latest revision as of 10:42, 2 January 2018

निठारी -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (उना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 
अब नहीं है समय
कि ज़ुर्म पर की जाए टिप्पणी
कि पाप पर शुरू हो कोई बहस
बहुत बहस हो रही है पहले से ही
और क़ानून की किसी उपधारा के तहत
बेनेफिट ऑफ डाउट देने के लिए
टटोली जा रही हैं किताबें
इस बात पर भी मत करना कोई बहस
कानून करेगा अपना काम
कानून से बाहर कुछ नहीं होगा
ज़ुर्म के अतिरिक्त

तुम थोड़ी देर के लिए
मुड़ो उस दृश्य की ओर
जहां गुमशुदा बच्चों के माता-पिता
हाथ में अर्ज़ियाँ लिए कर रहे हैं
सामूहिक आवेदन
कि यहीं कहीं गुम हुए हैं उनके बच्चे
कि यहीं कहीं खेलते रहे वे
लुका-छिपी का खेल
कि यहीं कोई नर-पिशाच
खेलता रहा बच्चों के साथ


कि उनके बच्चे वापिस किए जाएं उन्हें
अगर हो सके तो इस दृष्य पर करो बहस
इस दृष्य को रिवाइन्ड करके देखो
देखो कि किसी माता पिता के चेहरे पर
झूठ की कोई महीन रेखा
या मक्कारी
सबूत बनाने या बिगाड़ने की कोई हड़बड़ाहट
दिखती है कहीं
क्या उनकी आँखों में दिखता है
डबडबाता अविश्वास
क्या वे लाए हैं कोई खिलौना
जिस पर फिंगर प्रिंट हों उनके बच्चों के
क्या कहा उन्होंने किसी कोर्ट से
किसी भी बेगुनाह को चढ़ा दो फाँसी
उन्होंने कुछ कहा ही नहीं क़ानून के बारे में
वे तो लौट गए हैं घरों को
भाग्य पर बिसूरने के लिए
कानून से मुंह मोड़कर
हर बहस से अलग
वे आंसुओं के उस सैलाब में हैं
जहां क़ानून की हर धारा
खो बैठती है अपनी भाषा़

इस बात पर बहस किए बिना सोचो
कि यही सबकुछ आएगा बहस में
सबूत का अभाव
एक अबूझ भाषा में कुछ बोलेगा
और मान लिया जाएगा वहां
जहां यह फैसला होगा कि
बच्चे आखिर गए तो गए कहां?


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख