अटलांटिक महासागर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
No edit summary |
||
(2 intermediate revisions by one other user not shown) | |||
Line 1: | Line 1: | ||
[[चित्र:Atlantic-Ocean.jpg|thumb|250px|अटलांटिक महासागर]] | [[चित्र:Atlantic-Ocean.jpg|thumb|250px|अटलांटिक महासागर]] | ||
'''अटलांटिक महासागर''' अथवा 'अंध महासागर' उस विशाल जलराशि को कहते हैं, जो [[यूरोप]] तथा [[अफ़्रीका]] महाद्वीप को नई दुनिया के महाद्वीपों से | '''अटलांटिक महासागर''' अथवा 'अंध महासागर' उस विशाल जलराशि को कहते हैं, जो [[यूरोप]] तथा [[अफ़्रीका]] महाद्वीप को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक् करती है। इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेज़ी के अंक '8' के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। [[आर्कटिक महासागर]], जो बेरिंग जल डमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक विस्तृत है, मुख्यतः अंध महासागर का ही एक भाग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई 12,810 मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जॉर्जिया के दक्षिण में स्थित 'वैडल सागर' भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल 4,10,81,040 वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल 3,18,14,640 वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी अटलांटिक महासागर के अधीन विश्व का सबसे बड़ा जल प्रवाह क्षेत्र आता है। | ||
==संरचना तथा विस्तार== | ==संरचना तथा विस्तार== | ||
अटलांटिक महासागर के नितल के प्रारंभिक अध्ययन में जलपोत चैलेंजर के अन्वेषण अभियान के ही समान अनेक अन्य वैज्ञानिक महासागरीय अन्वेषणों ने योग दिया था। इसका नितल इस महासागर के एक कूट द्वारा पूर्वी और पश्चिमी द्रोणियों में विभक्त है। इन द्रोणियों में अधिकतम गहराई 16,500 फुट से भी अधिक है। पूर्वोक्त समुद्रांतर कूट | अटलांटिक महासागर के नितल के प्रारंभिक अध्ययन में जलपोत चैलेंजर के अन्वेषण अभियान के ही समान अनेक अन्य वैज्ञानिक महासागरीय अन्वेषणों ने योग दिया था। इसका नितल इस महासागर के एक कूट द्वारा पूर्वी और पश्चिमी द्रोणियों में विभक्त है। इन द्रोणियों में अधिकतम गहराई 16,500 फुट से भी अधिक है। पूर्वोक्त समुद्रांतर कूट काफ़ी ऊँचा उठा हुआ है और आइसलैंड के समीप से आरंभ होकर 55 डिग्री दक्षिण अक्षांश के लगभग स्थित 'बोवे द्वीप' तक फैला है। इस महासागर के उत्तरी भाग में इस कूट को 'डालफिन कूट' और दक्षिण में 'चैलेंजर कूट' कहा जाता है। इस कूट का विस्तार लगभग 10,000 फुट की गहराई पर अटूट है और कई स्थानों पर कूट सागर की सतह के भी ऊपर उठा हुआ है। अज़ोर्स, सेंट पॉल, असेंशन, ट्रिस्टाँ द कुन्हा और बोवे द्वीप इसी कूट पर स्थित हैं। निम्न कूटों में दक्षिणी अटलांटिक महासागर का 'वालफ़िश कूट' और 'रियो ग्रैंड कूट' तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर का 'वाइविल टामसन कूट' उल्लेखनीय हैं। ये तीनों निम्न कूट मुख्य कूट से लंब दिशा में विस्तारित हैं।<ref name="mcc">{{cite web |url=http://hindi.indiawaterportal.org/node/32340 |title=अटलांटिक महासागर |accessmonthday= 30 जुलाई|accessyear= 2012|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=[[हिन्दी]]}}</ref> | ||
ई. कोसना ([[1921]]) के अनुसार इस महासागर की औसत गहराई, अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर, 3,926 मीटर, अर्थात् 12,839 फुट है। इसकी अधिकतम गहराई, जो अभी तक ज्ञात हो सकी है, 8,750 मीटर अर्थात् 28,614 फुट है और यह गिनी स्थली की पोर्टोरिकी द्रोणी में स्थित है। | ई. कोसना ([[1921]]) के अनुसार इस महासागर की औसत गहराई, अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर, 3,926 मीटर, अर्थात् 12,839 फुट है। इसकी अधिकतम गहराई, जो अभी तक ज्ञात हो सकी है, 8,750 मीटर अर्थात् 28,614 फुट है और यह गिनी स्थली की पोर्टोरिकी द्रोणी में स्थित है। | ||
Line 9: | Line 9: | ||
अटलांटिक महासागर की मुख्य स्थली का 74 प्रतिशत भाग तल प्लावी निक्षेपों द्वारा आच्छादित है, जिसमें छोटे-छोटे जीवों के शल्क, जैसे- ग्लोबिजराइना, टेरोपॉड, डायाटम आदि के शल्क हैं। 26 प्रतिशत भाग पर भूमि पर उत्पन्न हुए अवसादों का निक्षेप है, जो मोटे कणों द्वारा निर्मित है। | अटलांटिक महासागर की मुख्य स्थली का 74 प्रतिशत भाग तल प्लावी निक्षेपों द्वारा आच्छादित है, जिसमें छोटे-छोटे जीवों के शल्क, जैसे- ग्लोबिजराइना, टेरोपॉड, डायाटम आदि के शल्क हैं। 26 प्रतिशत भाग पर भूमि पर उत्पन्न हुए अवसादों का निक्षेप है, जो मोटे कणों द्वारा निर्मित है। | ||
====लवणता==== | ====लवणता==== | ||
उत्तरी अटलांटिक महासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य [[समुद्र|समुद्रों]] की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा 3.7 प्रतिशत है, जो 20°-30° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है। | उत्तरी अटलांटिक महासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य [[समुद्र|समुद्रों]] की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा 3.7 प्रतिशत है, जो 20°-30° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=86 |url=}}</ref> | ||
==बरमूडा त्रिकोण== | ==बरमूडा त्रिकोण== | ||
Line 22: | Line 22: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{सागर}} | {{सागर}} | ||
[[Category:सागर]][[Category:भूगोल कोश]] | [[Category:सागर]][[Category:भूगोल कोश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 07:13, 23 May 2018
thumb|250px|अटलांटिक महासागर अटलांटिक महासागर अथवा 'अंध महासागर' उस विशाल जलराशि को कहते हैं, जो यूरोप तथा अफ़्रीका महाद्वीप को नई दुनिया के महाद्वीपों से पृथक् करती है। इस महासागर का आकार लगभग अंग्रेज़ी के अंक '8' के समान है। लंबाई की अपेक्षा इसकी चौड़ाई बहुत कम है। आर्कटिक महासागर, जो बेरिंग जल डमरूमध्य से उत्तरी ध्रुव होता हुआ स्पिट्सबर्जेन और ग्रीनलैंड तक विस्तृत है, मुख्यतः अंध महासागर का ही एक भाग है। इस प्रकार उत्तर में बेरिंग जल डमरूमध्य से लेकर दक्षिण में कोट्सलैंड तक इसकी लंबाई 12,810 मील है। इसी प्रकार दक्षिण में दक्षिणी जॉर्जिया के दक्षिण में स्थित 'वैडल सागर' भी इसी महासागर का अंग है। इसका क्षेत्रफल 4,10,81,040 वर्ग मील है। अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर इसका क्षेत्रफल 3,18,14,640 वर्ग मील है। विशालतम महासागर न होते हुए भी अटलांटिक महासागर के अधीन विश्व का सबसे बड़ा जल प्रवाह क्षेत्र आता है।
संरचना तथा विस्तार
अटलांटिक महासागर के नितल के प्रारंभिक अध्ययन में जलपोत चैलेंजर के अन्वेषण अभियान के ही समान अनेक अन्य वैज्ञानिक महासागरीय अन्वेषणों ने योग दिया था। इसका नितल इस महासागर के एक कूट द्वारा पूर्वी और पश्चिमी द्रोणियों में विभक्त है। इन द्रोणियों में अधिकतम गहराई 16,500 फुट से भी अधिक है। पूर्वोक्त समुद्रांतर कूट काफ़ी ऊँचा उठा हुआ है और आइसलैंड के समीप से आरंभ होकर 55 डिग्री दक्षिण अक्षांश के लगभग स्थित 'बोवे द्वीप' तक फैला है। इस महासागर के उत्तरी भाग में इस कूट को 'डालफिन कूट' और दक्षिण में 'चैलेंजर कूट' कहा जाता है। इस कूट का विस्तार लगभग 10,000 फुट की गहराई पर अटूट है और कई स्थानों पर कूट सागर की सतह के भी ऊपर उठा हुआ है। अज़ोर्स, सेंट पॉल, असेंशन, ट्रिस्टाँ द कुन्हा और बोवे द्वीप इसी कूट पर स्थित हैं। निम्न कूटों में दक्षिणी अटलांटिक महासागर का 'वालफ़िश कूट' और 'रियो ग्रैंड कूट' तथा उत्तरी अटलांटिक महासागर का 'वाइविल टामसन कूट' उल्लेखनीय हैं। ये तीनों निम्न कूट मुख्य कूट से लंब दिशा में विस्तारित हैं।[1]
ई. कोसना (1921) के अनुसार इस महासागर की औसत गहराई, अंतर्गत समुद्रों को छोड़कर, 3,926 मीटर, अर्थात् 12,839 फुट है। इसकी अधिकतम गहराई, जो अभी तक ज्ञात हो सकी है, 8,750 मीटर अर्थात् 28,614 फुट है और यह गिनी स्थली की पोर्टोरिकी द्रोणी में स्थित है।
नितल के निक्षेप
thumb|250px|अटलांटिक महासागर अटलांटिक महासागर की मुख्य स्थली का 74 प्रतिशत भाग तल प्लावी निक्षेपों द्वारा आच्छादित है, जिसमें छोटे-छोटे जीवों के शल्क, जैसे- ग्लोबिजराइना, टेरोपॉड, डायाटम आदि के शल्क हैं। 26 प्रतिशत भाग पर भूमि पर उत्पन्न हुए अवसादों का निक्षेप है, जो मोटे कणों द्वारा निर्मित है।
लवणता
उत्तरी अटलांटिक महासागर के पृष्ठतल की लवणता अन्य समुद्रों की तुलना में पर्याप्त अधिक है। इसकी अधिकतम मात्रा 3.7 प्रतिशत है, जो 20°-30° उत्तर अक्षांशों के बीच विद्यमान है। अन्य भागों में लवणता अपेक्षाकृत कम है।[2]
बरमूडा त्रिकोण
- REDIRECTसाँचा:मुख्य
संसार की कुछ बहुत ही ख़तरनाक जगहों में से एक 'बरमूडा त्रिकोण' अटलांटिक महासागर में ही है। यह त्रिकोण अटलांटिक महासागर का वह भाग है, जिसे 'दानवी त्रिकोण', 'शैतानी त्रिभुज', 'मौत का त्रिकोण' या 'भुतहा त्रिकोण' भी कहा जाता है, क्योंकि वर्ष 1854 से इस क्षेत्र में कुछ ऐसी घटनाएँ और दुर्घटनाऍं घटित होती रही हैं, जिन्हें सुनकर आश्चर्य होता है। यहाँ अब तक सैकड़ों-हज़ारों की संख्या में विमान, पानी के जहाज़ तथा व्यक्ति गये और संदिग्ध रूप से लापता हो गये। लाख कोशिशों के बाद भी उनका पता नहीं लगाया जा सका। ऐसा कभी-कभार नहीं, बल्कि कई बार हो चुका है। यही कारण है कि आज भी इसके आस-पास से गुजरने वाले जहाजों और वायुयानों के चालक दल के सदस्य व यात्री सिहर उठते हैं। कई वर्षों से यह त्रिकोण वैज्ञानिकों, इतिहासकर्ताओं और खोजकर्ताओं के लिए भी एक बड़ा रहस्य बना हुआ है।
पृष्ठधाराएँ
इस महासागर की पृष्ठधाराएँ नियतवाही पवनों के अनुरूप बहती हैं। परंतु स्थल खंड की आकृति के प्रभाव से धाराओं के इस क्रम में कुछ अंतर अवश्य आ जाता है। उत्तरी अटलांटिक महासागर की धाराओं में उत्तरी विषुवतीय धारा, गल्फ़ स्ट्रीम, उत्तरी अटलांटिक प्रवाह, कैनेरी धारा और लैब्रोडोर धाराएँ मुख्य हैं। दक्षिणी अटलांटिक महासागर की धाराओं में दक्षिणी विषुवतीय धारा, ब्राजील धारा, फ़ाकलैंड धारा, पछवाँ प्रवाह और बैंगुला धाराएँ मुख्य हैं।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 अटलांटिक महासागर (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 30 जुलाई, 2012।
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 86 |
संबंधित लेख