अब्दुल्ला क़ुतुबशाह: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "महत्वपूर्ण" to "महत्त्वपूर्ण") |
No edit summary |
||
(One intermediate revision by one other user not shown) | |||
Line 3: | Line 3: | ||
अब्दुल्ला अपने [[पिता]] मुहम्मद क़ुतुबशाह की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा था। उसके शासन के आरम्भिक काल में शासन का समस्त नियंत्रण उसकी माँ हयातबख़्शी बेगम करती रहीं, किंतु शीघ्र ही शासन की बागडोर कुछ स्वार्थी अधिकारियों के हाथ में चली गई, जिसके फलस्वरूप 1636 ई. में [[गोलकुंडा]] का राज्य [[मुग़ल साम्राज्य]] के अधीन हो गया। | अब्दुल्ला अपने [[पिता]] मुहम्मद क़ुतुबशाह की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा था। उसके शासन के आरम्भिक काल में शासन का समस्त नियंत्रण उसकी माँ हयातबख़्शी बेगम करती रहीं, किंतु शीघ्र ही शासन की बागडोर कुछ स्वार्थी अधिकारियों के हाथ में चली गई, जिसके फलस्वरूप 1636 ई. में [[गोलकुंडा]] का राज्य [[मुग़ल साम्राज्य]] के अधीन हो गया। | ||
====साहित्य का संरक्षक==== | ====साहित्य का संरक्षक==== | ||
अब्दुल्ला क़ुतुबशाह राजनीतिक दृष्टि से एक असफल शासक कहा जाता है, किंतु उसकी ख्याति साहित्यानुरागी और कवि के रूप में आज तक बनी हुई है। उसका लिखा हुआ 'दीवान' दक्खिनी हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ]] माना जाता है। अपने शासनकाल में वह साहित्यिकों का पोषक और संरक्षक तो था ही, पराधीन होने के बाद भी वह जब तक जीवित रहा, [[कवि]] और साहित्यकारों को उसका संरक्षण प्राप्त रहा। उसके काल में दक्खिनी हिन्दी के सुविख्यात कवि 'मलिकुल शुअरा गवासी' हुए, जिन्होंने गजल के एक संग्रह के अतिरिक्त तीन 'मसनवी' लिखे थे, जिनमें 'मैना सतवंती' उल्लेखनीय है। वह [[हिन्दी]] के सुप्रसिद्ध [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] कवि 'मौलाना दाऊद' के चंदायन की कथा पर आधारित है। | अब्दुल्ला क़ुतुबशाह राजनीतिक दृष्टि से एक असफल शासक कहा जाता है, किंतु उसकी ख्याति साहित्यानुरागी और कवि के रूप में आज तक बनी हुई है। उसका लिखा हुआ 'दीवान' दक्खिनी हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण [[ग्रंथ]] माना जाता है। अपने शासनकाल में वह साहित्यिकों का पोषक और संरक्षक तो था ही, पराधीन होने के बाद भी वह जब तक जीवित रहा, [[कवि]] और साहित्यकारों को उसका संरक्षण प्राप्त रहा। उसके काल में दक्खिनी हिन्दी के सुविख्यात कवि 'मलिकुल शुअरा गवासी' हुए, जिन्होंने गजल के एक संग्रह के अतिरिक्त तीन '[[मसनवी]]' लिखे थे, जिनमें 'मैना सतवंती' उल्लेखनीय है। वह [[हिन्दी]] के सुप्रसिद्ध [[सूफ़ी मत|सूफ़ी]] कवि 'मौलाना दाऊद' के चंदायन की कथा पर आधारित है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1|लेखक= |अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक= नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या= |url=}}</ref> | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक=|पूर्णता=|शोध=}} | ||
Line 10: | Line 10: | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{क़ुतुबशाही वंश}} | {{क़ुतुबशाही वंश}} | ||
[[Category:इतिहास कोश]][[Category:मध्य काल]][[Category:दक्कन सल्तनत]][[Category:क़ुतुब शाही राजवंश]] | [[Category:इतिहास कोश]][[Category:मध्य काल]][[Category:दक्कन सल्तनत]][[Category:क़ुतुब शाही राजवंश]][[Category:हिन्दी विश्वकोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ | ||
__NOTOC__ | __NOTOC__ |
Latest revision as of 06:43, 29 May 2018
अब्दुल्ला क़ुतुबशाह (1626-1672 ई.) क़ुतुबशाही वंश का सातवाँ सुल्तान था। वह मुहम्मद क़ुतुबशाह का पुत्र था। सुल्तान होते हुए भी शासन का समस्त नियंत्रण उसकी माँ के हाथ में था। अब्दुल्ला को सफल शासक नहीं कहा जा सकता, किंतु वह साहित्य का प्रेमी था। उसके जीवित रहते हुए साहित्यिकार और कवियों को विशेष संरक्षण प्राप्त था।
मुग़लों की अधीनता
अब्दुल्ला अपने पिता मुहम्मद क़ुतुबशाह की मृत्यु के बाद गद्दी पर बैठा था। उसके शासन के आरम्भिक काल में शासन का समस्त नियंत्रण उसकी माँ हयातबख़्शी बेगम करती रहीं, किंतु शीघ्र ही शासन की बागडोर कुछ स्वार्थी अधिकारियों के हाथ में चली गई, जिसके फलस्वरूप 1636 ई. में गोलकुंडा का राज्य मुग़ल साम्राज्य के अधीन हो गया।
साहित्य का संरक्षक
अब्दुल्ला क़ुतुबशाह राजनीतिक दृष्टि से एक असफल शासक कहा जाता है, किंतु उसकी ख्याति साहित्यानुरागी और कवि के रूप में आज तक बनी हुई है। उसका लिखा हुआ 'दीवान' दक्खिनी हिन्दी का एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। अपने शासनकाल में वह साहित्यिकों का पोषक और संरक्षक तो था ही, पराधीन होने के बाद भी वह जब तक जीवित रहा, कवि और साहित्यकारों को उसका संरक्षण प्राप्त रहा। उसके काल में दक्खिनी हिन्दी के सुविख्यात कवि 'मलिकुल शुअरा गवासी' हुए, जिन्होंने गजल के एक संग्रह के अतिरिक्त तीन 'मसनवी' लिखे थे, जिनमें 'मैना सतवंती' उल्लेखनीय है। वह हिन्दी के सुप्रसिद्ध सूफ़ी कवि 'मौलाना दाऊद' के चंदायन की कथा पर आधारित है।[1]
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हिन्दी विश्वकोश, खण्ड 1 |प्रकाशक: नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |
संबंधित लेख