सच्चा शासक: Difference between revisions

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==कहानी==
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           कंचन वन में शेरसिंह का राज समाप्त हो चुका था पर वहां बिना राजा के स्थिति ऐसी हो गई थी जैसे जंगलराज हो जिसकी जो मर्जी वह कर रहा था। वन में अशांति, मारकाट, गंदगी, इतनी फैल गई कि वहां जानवरों का रहना मुश्किल हो गया। कुछ जानवर शेरसिंह को याद कर रहे थे कि 'जब तक शेरसिंह ने राजपाट संभाला हुआ था सारे वन में कितनी शांति और एकता थी। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन यह वन ही समाप्त हो जाएगा और हम सब जानवर बेघर होकर मारे जाएंगे।'
           कंचन वन में शेरसिंह का राज समाप्त हो चुका था पर वहां बिना राजा के स्थिति ऐसी हो गई थी जैसे जंगलराज हो जिसकी जो मर्ज़ी
वह कर रहा था। वन में अशांति, मारकाट, गंदगी, इतनी फैल गई कि वहां जानवरों का रहना मुश्किल हो गया। कुछ जानवर शेरसिंह को याद कर रहे थे कि 'जब तक शेरसिंह ने राजपाट संभाला हुआ था सारे वन में कितनी शांति और एकता थी। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन यह वन ही समाप्त हो जाएगा और हम सब जानवर बेघर होकर मारे जाएंगे।'
गोलू भालू बोला- “कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा- क्यों न सभी कहीं सहमति से हम अपना कोई राजा चुन लें जो शेरसिंह की तरह हमें पुन: एक जंजीर में बांधे और वन में एक बार फिर से अमन शांति के स्वर गूंज उठे।” सभी गोलू भालू की बात से संतुष्ट हो गए। पर समस्या यह थी कि राजा किसे बनाया जाए? सभी जानवर स्वयं को दूसरे से बड़ा बता रहे थे।
गोलू भालू बोला- “कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा- क्यों न सभी कहीं सहमति से हम अपना कोई राजा चुन लें जो शेरसिंह की तरह हमें पुन: एक जंजीर में बांधे और वन में एक बार फिर से अमन शांति के स्वर गूंज उठे।” सभी गोलू भालू की बात से संतुष्ट हो गए। पर समस्या यह थी कि राजा किसे बनाया जाए? सभी जानवर स्वयं को दूसरे से बड़ा बता रहे थे।
सोनू मोर बोली- “क्यों न एक पखवाड़े तक सभी को कुछ न कुछ काम दे दिया जाए तो अपने काम को सबसे अच्छे ढंग से करेगा उसे ही यहां का राजा बना दिया जाएगा।” सोनू स्वीटी की बात से सहमत हो गए और फिर सभी जानवरों को उनकी योग्यता के आधार पर काम दे दिया गया। बिम्पी लोमड़ी को [[मिट्टी]] हटाने का काम दिया गया तो भोलू बंदर को पेड़ों पर लगे जाले हटाने का, सोनी [[हाथी]] को पत्थर उठाकर एक गडढे में डालने का काम सौंपा गया था और मोनू खरगोश को घास की सफाई की।
सोनू मोर बोली- “क्यों न एक पखवाड़े तक सभी को कुछ न कुछ काम दे दिया जाए तो अपने काम को सबसे अच्छे ढंग से करेगा उसे ही यहां का राजा बना दिया जाएगा।” सोनू स्वीटी की बात से सहमत हो गए और फिर सभी जानवरों को उनकी योग्यता के आधार पर काम दे दिया गया। बिम्पी लोमड़ी को [[मिट्टी]] हटाने का काम दिया गया तो भोलू बंदर को पेड़ों पर लगे जाले हटाने का, सोनी [[हाथी]] को पत्थर उठाकर एक गडढे में डालने का काम सौंपा गया था और मोनू खरगोश को घास की सफाई की।

Latest revision as of 09:21, 11 February 2021

सच्चा शासक पंचतंत्र की प्रसिद्ध कहानियों में से एक है जिसके रचयिता आचार्य विष्णु शर्मा हैं।

कहानी

          कंचन वन में शेरसिंह का राज समाप्त हो चुका था पर वहां बिना राजा के स्थिति ऐसी हो गई थी जैसे जंगलराज हो जिसकी जो मर्ज़ी
वह कर रहा था। वन में अशांति, मारकाट, गंदगी, इतनी फैल गई कि वहां जानवरों का रहना मुश्किल हो गया। कुछ जानवर शेरसिंह को याद कर रहे थे कि 'जब तक शेरसिंह ने राजपाट संभाला हुआ था सारे वन में कितनी शांति और एकता थी। ऐसे ही चलता रहा तो एक दिन यह वन ही समाप्त हो जाएगा और हम सब जानवर बेघर होकर मारे जाएंगे।'
गोलू भालू बोला- “कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा- क्यों न सभी कहीं सहमति से हम अपना कोई राजा चुन लें जो शेरसिंह की तरह हमें पुन: एक जंजीर में बांधे और वन में एक बार फिर से अमन शांति के स्वर गूंज उठे।” सभी गोलू भालू की बात से संतुष्ट हो गए। पर समस्या यह थी कि राजा किसे बनाया जाए? सभी जानवर स्वयं को दूसरे से बड़ा बता रहे थे।
सोनू मोर बोली- “क्यों न एक पखवाड़े तक सभी को कुछ न कुछ काम दे दिया जाए तो अपने काम को सबसे अच्छे ढंग से करेगा उसे ही यहां का राजा बना दिया जाएगा।” सोनू स्वीटी की बात से सहमत हो गए और फिर सभी जानवरों को उनकी योग्यता के आधार पर काम दे दिया गया। बिम्पी लोमड़ी को मिट्टी हटाने का काम दिया गया तो भोलू बंदर को पेड़ों पर लगे जाले हटाने का, सोनी हाथी को पत्थर उठाकर एक गडढे में डालने का काम सौंपा गया था और मोनू खरगोश को घास की सफाई की।
जब एक पखवाड़ा बीत गया तो सभी जानवर अपने-अपने कार्यों का ब्यौरा लेकर एक मैदान में एकत्रित हो गए। सभी जानवरों ने अपना काम बड़ी सफाई और मेहनत से पूरा किया था। सिर्फ सोनू हाथी था जिसने एक भी पत्थर गडढे में नहीं डाला था।
अब एक समस्या फिर खड़ी हो गई कि आखिर किसके काम को सबसे अच्छा माना जाए। बुद्धिमान मोनू खरगोश ने युक्ति सुझाई 'क्यों न मतदान करा लिया जाए, जिसे सबसे ज़्यादा मत मिलेंगे उसे ही हम राजा चुन लेंगे।'
अगले दिन सुबह-सुबह चुनाव रख लिया गया और एक बड़े मैदान में सभी पशु-पक्षी मत देने के लिए उपस्थित हो गए। मतदान समाप्त होने के एक घंटे पश्चात् मतों को गिनने का काम शुरू हुआ। यह क्या! सोनू हाथी गिनती में सबसे आगे चल रहा था और जब मतों की गिनती समाप्त हुई तो सोनू हाथी सबसे ज़्यादा मतों से विजयी हो गया। सभी जानवर एक दूसरे का मुंह ताक रहे थे।
तभी पक्षीराज गरुड़ वहां उपस्थित हुए और उपस्थित सभी जानवरों को सम्बोधित करते हुए बोले- ‘सोनू हाथी प्रतिदिन पत्थर लेकर गडढे तक जाता था किंतु जब उसने देखा कि उस गडढे में मेरे अंडे रखे हुए हैं तो वह पत्थरों को उसमें न डालकर पास ही ज़मीन पर एकत्रित करता रहा। सोनू ने अपने राजा बनने के लालच को छोड़ एक जीव को बचाना ज़्यादा उपयोगी समझा। उसकी इस परोपकार की भावना को देखकर हम पक्षियों की भावना को देखकर हम पक्षियों ने तय किया कि जो अपने लालच को छोड़कर दूसरों के सुख-दु:ख का ध्यान रखें वही सच्चे तौर पर शासक बनने का अधिकारी है और चूंकि वन में पक्षियों की संख्या पशुओं से अधिक थी इसलिए सोनू हाथी चुनाव जीत गया।’

सीख- सच्चा शासक वही होता है जो परोपकार की भावना को सर्वोच्च स्थान दे।


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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