अली मानिकफ़ान: Difference between revisions
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अली मानिकफ़ान
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पूरा नाम | अली मानिकफ़ान |
जन्म | 16 मार्च, 1938 |
जन्म भूमि | मिनिकॉय आइलैंड, लक्षद्वीप |
कर्म भूमि | भारत |
पुरस्कार-उपाधि | 'पद्मश्री' (2021) |
नागरिकता | भारतीय |
विशेष | सिर्फ 7वीं तक पढ़े अली मानिकफ़ान 14 भाषाएं जानते हैं। |
अन्य जानकारी | मरीन बायोलॉजी, मरीन रिसर्च, जियोग्राफी, एस्ट्रोनॉमी, सोशल साइंस, ट्रेडीशनल शिपबिल्डिंग, फिशरीज, एग्रीकल्चर जैसे तमाम क्षेत्रों में अली मानिकफ़ान ने काम किया है। |
अली मानिकफ़ान (अंग्रेज़ी: Ali Manikfan, जन्म- 16 मार्च, 1938) भारतीय समुद्री शोधकर्ता, इकोलॉजिस्ट और शिपबिल्डर हैं। साल 2021 में जिन 102 हस्तियों को 'पद्मश्री' से नवाजा गया है, उन्हीं में से एक हैं अली मानिकफान। दुबले-पतले और सामान्य कद काठी के अली मानिकफान ने बिना पढ़ाई-लिखाई के सफलता की वो कहानी रच दी है, जो हर किसी को प्रेरित कर सकती है। 82 साल के अली मानिकफान कहने को स्कूल तो सिर्फ 7वीं कक्षा तक ही पढ़े हैं, लेकिन उन्हें 14 भाषाएं आती हैं। यही नहीं, उन्होंने मरीन रिसर्च से लेकर एग्रीकल्चर सेक्टर तक में काम किया है।
परिचय
अली मानिकफ़ान केरल के ओलावना शहर में एक किराए के घर में रहते हैं। जबकि इनकी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा लक्षद्वीप के मिनिकॉय आइलैंड पर बीता है। वह कहते हैं कि 'जब मैं 9 साल का था, तब घरवालों ने पढ़ाई के लिए केरल के कन्नूर भेज दिया, क्योंकि वहां पिताजी के कई जानने वाले रहते थे। उस समय हॉस्टल तो हुआ नहीं करते थे, इसलिए उनके घर में ही रहता था। वहीं रहते हुए सातवीं क्लास तक पढ़ाई की, लेकिन फिर वापस आइलैंड लौट आया, क्योंकि वहां तकलीफें बहुत थीं और आइलैंड से दूर रहना भी मुश्किल हो रहा था।'[1]
भाषाओं के जानकार
साल 1956 में अली मानिकफ़ान 6 महीने के लिए कोलकाता चले गए। बोले, 'कोलकाता में रहने के दौरान मुझे अलग-अलग विषयों की किताबें मिलीं, तो उनके बारे में और ज्यादा जानने के लिए मन में उत्सुकता आ गई। इसलिए जब वहां से लौटा तो अलग-अलग भाषाओं की बहुत सारी किताबें अपने साथ आइलैंड पर ले आया। इन्हीं किताबों को पढ़-पढ़कर अरबी, अंग्रेज़ी, हिंदी, मलयालम, लैटिन, फ्रेंच, रशियन, जर्मन, सिंहली, पर्शियन, संस्कृत, तमिल, उर्दू सीखी। हमारे क्षेत्र में जो भाषाओं के जानकार होते थे, उनके साथ भी बैठता था। सभी भाषाएं बोल तो नहीं पाता, लेकिन लिखना-पढ़ना आता है। बोलना इसलिए नहीं आया, क्योंकि उन भाषाओं में बातचीत करने वाला कोई आसपास नहीं था। हिंदी, अंग्रेज़ी, मलयालम, उर्दू, तमिल, तेलुगु बोल भी लेता हूं, क्योंकि इन भाषाओं को बोलने वाले बहुत लोग हैं।'
मछलियों की खोजबीन
अली मानिकफ़ान आइलैंड पर रहते थे, इसलिए मछलियों को जानने के बारे में भी उत्सुकता जागी। वह कहते हैं कि 'मैंने मछलियों को लेकर इतनी खोजबीन कर ली थी कि आइलैंड में मौजूद लगभग हर प्रजाति की मछली के बारे में जान गया था। इसी का नतीजा रहा कि साल 1960 में मुझे सेंट्रल मरीन फिशरीज रिसर्च इंस्टीट्यूट में बतौर लैब अटेंडेंट ज्वॉइनिंग मिली। इस दौरान बहुत रिसर्च की। एक दुर्लभ मछली की खोज भी की, जिसका नाम ही मेरे नाम पर 'अबुदफुद मानिकफानी' रखा गया।' 1980 में अली मानिकफान ने रिटायरमेंट ले लिया।[1]
जो सीखते गए, उसे छोड़ते गए
जब पूछा गया उनसे कि ऐसा क्यों किया? तो बोले, 'मैं एक ही काम हमेशा नहीं कर सकता था। नए-नए काम शुरू करता था। उनके बारे में जानता था और जब वे पूरे हो जाते थे तो फिर उन्हें छोड़ देता था। सीएमआईआरआई में 20 साल तक काफी काम कर लिया था।'
'साल 1981 में मुझे ओमान में एक जहाज बनाने के लिए आमंत्रित किया गया। वहां टिम सिरवेन के साथ मिलकर 27 मीटर लंबा जहाज बनाया, जिसमें लकड़ी और कॉयर का इस्तेमाल किया गया था।' जब उनसे पूछा गया गया कि आपने ये काम कब सीखा? तो बोले, 'जब छोटा था, तब एक गाड़ी बिक रही थी, क्योंकि वो सुधर नहीं सकती थी। इसलिए मैंने उस गाड़ी को खरीद लिया। उसे पूरा खोल दिया और फिर बना भी दिया। उससे कई साल आइलैंड पर घूमा। ये सब काम दिलचस्पी से सीखते गया। जो शिप हमने बनाई थी, वो आज भी ओमान के संग्रहालय में सुरक्षित रखी है।'
बंजर भूमि में हरियाली
इसके बाद खेती की तरफ मन बढ़ा तो अली मानिकफ़ान उसमें काम करने लगे। तमिलनाडु के तिरुनेलवेली में बंजर पड़ी 15 एकड़ भूमि को स्वदेशी तरीकों से हरा-भरा कर दिया। ट्रेडिशनल मटेरियल से ही रहने के लिए वहां एक घर भी बनाया।
कार्य अनुभव
मरीन बायोलॉजी, मरीन रिसर्च, जियोग्राफी, एस्ट्रोनॉमी, सोशल साइंस, ट्रेडीशनल शिपबिल्डिंग, फिशरीज, एग्रीकल्चर जैसे तमाम एरिया में अली मानिकफ़ान ने काम किया। आइलैंड में जब पहला स्कूल खुला था तो वहां एक साल बच्चों को पढ़ाने का काम भी किया। अब भी उनकी कुछ नया सीखने की आदत गई नहीं है। वह नहीं जानते थे कि उन्हें 'पद्मश्री' मिलने वाला है। जब गृह विभाग से फोन आया, तभी उन्हें इसकी जानकारी हुई। उत्तराखंड के चमोली में ग्लेशियर फटने की घटना पर कहते हैं कि 'ये सब तो मानवीय भूलों के कारण ही हो रहा है। लॉकडाउन में प्रकृति अच्छी होने लगी थी, लेकिन अब हम दोबारा प्रकृति को खराब करने लगे हैं। इसी का खामियाजा उत्तराखंड को भुगतना पड़ा है।'[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 1.2 7वीं तक पढ़े पद्मश्री अली मानिकफान की कहानी (हिंदी) bhaskar.com। अभिगमन तिथि: 12 फ़रवरी, 2020।