तिघरा जलाशय: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
[[चित्र:Tighra-Dam.jpg|thumb|250px|तिघरा जलाशय]]
'''तिघरा जलाशय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tighra Dam'') [[मध्य प्रदेश]] में स्थित मीठे पानी का जलाशय है जो साँक नदी पर स्थित है। [[19 अगस्त]], [[1917]] की दोपहर को इसके बलुआ पत्थर की नींव में रिसाई होने के कारण यह बाँध टूट गया था, जिससे आने वाली [[बाढ़]] में लगभग 10,000 लोग मारे गए थे।
'''तिघरा जलाशय''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tighra Dam'') [[मध्य प्रदेश]] में स्थित मीठे पानी का जलाशय है जो साँक नदी पर स्थित है। [[19 अगस्त]], [[1917]] की दोपहर को इसके बलुआ पत्थर की नींव में रिसाई होने के कारण यह बाँध टूट गया था, जिससे आने वाली [[बाढ़]] में लगभग 10,000 लोग मारे गए थे।
==इतिहास==
==इतिहास==

Latest revision as of 06:13, 17 August 2021

thumb|250px|तिघरा जलाशय तिघरा जलाशय (अंग्रेज़ी: Tighra Dam) मध्य प्रदेश में स्थित मीठे पानी का जलाशय है जो साँक नदी पर स्थित है। 19 अगस्त, 1917 की दोपहर को इसके बलुआ पत्थर की नींव में रिसाई होने के कारण यह बाँध टूट गया था, जिससे आने वाली बाढ़ में लगभग 10,000 लोग मारे गए थे।

इतिहास

सिंधिया राजवंश के शासक माधौ महाराज यानि माधवराव ग्वालियर स्टेट को विकसित देखना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने करीब सौ साल पहले तिघरा जलाशय बनवाया। इस डैम को बनाने के लिए उन्होंने देश के महान इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया की मदद ली। तब से आज तक यह डैम ग्वालियर की प्यास बुझा रहा है। मैसूर रियासत के चीफ इंजीनियर विश्वेश्वरैया को उन दिनों बांध बनाने के मामले में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ इंजीनियर थे। उस समय के ग्वालियर स्टेट के तत्कालीन महाराज माधौ महाराज ने उन्हें बांध बनाने की जिम्मेदारी दी। शोध के बाद तीन ओर से पहाड़ियों से घिरे साँक नदी के क्षेत्र को बांध के लिए चुना गया।[1]

बाँध निर्माण

बांध 1916 में बन कर तैयार हो गया। करीब 24 मीटर ऊंचे और 1341 मीटर लंबे इस बांध की क्षमता 4.8 मिलियन क्यूबिक फीट है। इसमें विश्वेश्वरैया ने खुद के ईजाद किए फ्लड गेट लगाए थे, जिन्हे बाद में विश्वेश्वरैया गेट के नाम से पेटेंट भी कराया गया था। तिघरा बांध में 100 साल पहले लगे ये गेट आज भी कारगर साबित हो रहे हैं।

तत्कालीन ग्वालियर रियासत के लिए 19 वीं शताब्दी का उत्तरार्ध और 20 वीं शताब्दी की शुरूआत अकालों का अभिशाप लेकर आई थी। रियासत में जंगल भी बहुत थे, नदियां भी पर्याप्त थीं, लेकिन ऐसा कोई साधन नहीं था कि रियासत के जल संसाधनों को आपातकाल के लिए संग्रहित कर रखा जा सके। लिहाजा तत्कालीन महाराजा माधवराव ने फैसला किया कि शहर की प्यास बुझाने और आपातकाल में किसानों को पानी देने लिए एक बड़ा बांध बनाया जाए। नतीजतन 1916 में तिघरा बांध बनाया गया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख