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*प्रभाकरनवर्धन के छोटे पुत्र [[हर्षवर्धन]] के काल (606-647) में इसका | *प्रभाकरनवर्धन के छोटे पुत्र [[हर्षवर्धन]] के काल (606-647) में इसका महत्त्व घट गया। उसने अपने अपेक्षाकृत अधिक विशाल साम्राज्य की राजधानी [[कन्नौज]] को बनाया। | ||
*सातवीं और आठवीं शताब्दी में [[हूण]] आक्रमणों के फलस्वरूप इस नगर का तेज़ी से पतन हो गया। फिर भी यह हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थान बना रहा। | *सातवीं और आठवीं शताब्दी में [[हूण]] आक्रमणों के फलस्वरूप इस नगर का तेज़ी से पतन हो गया। फिर भी यह हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थान बना रहा। | ||
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Latest revision as of 12:03, 22 March 2011
- थानेश्वर संस्कृत साहित्य में वर्णित एक प्रख्यात प्राचीन नगर है।
- यह आधुनिक दिल्ली तथा प्राचीन इंद्रप्रस्थ नगर के उत्तर में अम्बाला और करनाल के बीच स्थित था।
- यह ब्रह्मावर्त क्षेत्र का केन्द्रबिन्दु था, जहाँ भारतीय आर्यों का सबसे पहले विस्तार हुआ।
- इसी के निकट ही कुरुक्षेत्र स्थित है। जहाँ पर कौरवों तथा पाण्डवों के बीच अठारह दिनों तक विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ था, जो महाभारत महाकाव्य का प्रमुख विषय है।
- थानेश्वर को 'स्थानेश्वर' भी कहते हैं, जो कि शिव का पवित्र स्थान था।
- छठी शताब्दी के अन्त में यह पुष्यभूति वंश की राजधानी बना और इसके शासक प्रभाकरनवर्धन ने इसे एक विशाल साम्राज्य, जिसके अंतर्गत मालवा, उत्तर-पश्चिम पंजाब और राजपूताना का कुछ भाग आता था, केन्द्रीय नगर बनाया।
- प्रभाकरनवर्धन के छोटे पुत्र हर्षवर्धन के काल (606-647) में इसका महत्त्व घट गया। उसने अपने अपेक्षाकृत अधिक विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नौज को बनाया।
- सातवीं और आठवीं शताब्दी में हूण आक्रमणों के फलस्वरूप इस नगर का तेज़ी से पतन हो गया। फिर भी यह हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थान बना रहा।
- 1014 ई. में यह सुल्तान महमूद द्वारा लूटा तथा नष्ट कर दिया गया और अन्तत: पंजाब के गजनवी राज्य का एक अंग हो गया।
- यह दिल्ली जाने वाली सड़क पर स्थित है।
- इसके इर्द-गिर्द क्षेत्र में तराइन के दो तथा पानीपत के तीन युद्ध हुए, जिन्होंने कई बार भारत के भाग्य का निर्णय किया।
- तृतीय मराठा युद्ध के उपरान्त यह भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग हो गया।
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