तृतीया: Difference between revisions
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*यह चन्द्रमा की तीसरी कला है, जिसके अमृत को कृष्ण पक्ष में साक्षात परमात्मा पान करते हैं। | *यह चन्द्रमा की तीसरी कला है, जिसके अमृत को कृष्ण पक्ष में साक्षात परमात्मा पान करते हैं। | ||
*‘तृतीयाऽऽरोग्यदात्री च’ | *‘तृतीयाऽऽरोग्यदात्री च’ अर्थात् तृतीया आरोग्य देने वाली होती है। | ||
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Latest revision as of 07:45, 7 November 2017
- सूर्य और चन्द्र का अन्तर 25° से 36° तक होने पर तृतीया तिथि होती है।
- शुक्ल पक्ष की तृतीया 205° से 216° तक अन्तरांश होने पर कृष्ण पक्ष की तृतीया होती है।
- तृतीया तिथि को ‘ततिया, तइया, तैजा, तीजा, तीज, त्रीज, त्रीजा’ आदि भी कहते हैं। इस तिथि का विशेष नाम ‘सबला’ है। यह बलवान तिथि मानी जाती है। अतः इसे ‘जया’ नाम से भी जाना जाता है।
- तृतीया तिथि की स्वामिनी गौरी है।
- तृतीया तिथि बुधवार को मृत्युदा होती है, परन्तु मंगलवार को सिद्धिदा होती है। बुधवार को तृतीया होने से दग्ध योग हो जाता है, जो शुभ कार्यों में वर्जित है।
- इस तिथि की दिशा 'आग्नेय' है।
- शुक्ल पक्ष तृतीया में शिववास सभा में तथा कृष्ण पक्ष की तृतीया को क्रीड़ा में होने से यह दोनों पक्ष की तृतीयायें शिवपूजनार्थ निषिद्ध हैं।
- यह चन्द्रमा की तीसरी कला है, जिसके अमृत को कृष्ण पक्ष में साक्षात परमात्मा पान करते हैं।
- ‘तृतीयाऽऽरोग्यदात्री च’ अर्थात् तृतीया आरोग्य देने वाली होती है।
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