कल के लिए -कुलदीप शर्मा: Difference between revisions

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दक्षिणी ध्रुव की मोहलत बढ़ा दी
दक्षिणी ध्रुव की मोहलत बढ़ा दी
भयभीत पहाड़
भयभीत पहाड़
आंखें मलता बैठ गया
आँखें मलता बैठ गया
इत्मीनान से
इत्मीनान से
चुपचाप बैठे पक्षियों में
चुपचाप बैठे पक्षियों में

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कल के लिए -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (उना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 
एक अकेला आदमी
धूप से डरी हुई भीड़ में से उठा
और धूप को ललकारते हुए
रोप दिया उसने एक पेड़
धरती के बीचोंबीच
जहां हवा गा रही थी
एक उदास धुन
इससे बाकी पेड़
जो सहमे सहमे से थे
सुनहरे भविष्य के स्वप्न बुनने लगे
कटे हुए जंगलों पर छा गई
हरियाली की संभावनाएं
धरती ने एक सांस भरकर
दक्षिणी ध्रुव की मोहलत बढ़ा दी
भयभीत पहाड़
आँखें मलता बैठ गया
इत्मीनान से
चुपचाप बैठे पक्षियों में
शुरू हो गई चुहलबाज़ी
फूलों ने आसमान में उड़ती गौरैय्या को
बधाई दी
बादलों ने झुक-झुक कर किया
उसका अभिवादन
तितलियों ने चुपचाप मना लिया
रंगों का महोत्सव
केवल एक पेड़ रोप देने से
हुआ यह सब
केवल एक पेड़ रोप देने से
होता है यह कि आसमान
धीरे धीरे गुनगुनाने लगता है
कोई पहाड़ी धुन
जो सोलहसिंगी से स्वां तक
मेहराब सी फैलती चली जाती है
जिसे उतारता है बाद में शौंकू गद्दी
एक ऊँची रिड़ी से
हमारे दिलों तक
इस तरह आसमान उतरता है
एक नवजात शिशु सा
धरती की गोद में
हज़ारो हज़ार इंद्रधनुष
उतर आते हैं पत्तों में
हवा गाने लगती है ऋचाएं
हरियाली की खोज में निकला
वह कोलम्बस
इस तरह पहुंचा आखिर पेड़ तक
तुम सोचो
उस आदमी के पास होती
और एक टुकड़ा ज़मीन
तो ज़मीन और आदमी
दोनो बच जाते
टुकड़ा -2 होने से
(पर यह उस आदमी का सच नहीं है
जो खोज रहा है
एक टुकड़ा ज़मीन
एक और टुकड़ा पाने के लिए)
तुम सोचो कि धरती का एक तिनका सुख
सदियो तक सुरक्षित कर देता है
हमारे घोंसले
सदियों तक पेड़ गाते हैं
जीवन का समूह गान
चिड़िया चहचहाकर कह जाती है
हर सुबह हमारे कान में
कि धरती के बारे में की गई
तमाम डरावनी भविष्यवाणियां
कोरी अफवाहें हैं
कि जीवन रहेगा अभी यहां
और आने वाली पीढ़ियां
नहीं दबेंगी उन मकानों में
जिन्हें वे बना रही हैं
एक पेड़ से हो सकता है यह सब
वैसे ही जैसे
एक पेड़ के न होने से
हो सकता है
रूठ जाए यह हवा
गायब हो जाएं आसमान से बादल
मानचित्रों मे ही रह जाएं नदियां
हरियाली खोजें हम सपनों में
पेड़ के बारे मे सोचकर
डरें हम
जैसे दु:स्वपन से जागकर
डरते हैं बच्चे
पेड़ लगाता आदमी जानता है
कैसा होता है
पेड़ के बिना आदमी़


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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