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'''दंडी''' (छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय) [[संस्कृत]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे। संस्कृत श्रृंगारिक गद्य के लेखक और काव्यशास्त्र के  
'''दंडी''' [[संस्कृत]] के प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे। संस्कृत श्रृंगारिक गद्य के लेखक और काव्यशास्त्र के व्याख्याकार के रूप में उनकी दो महत्त्वपूर्ण रचनाएँ सामान्यत: निश्चित रुप से उनकी मानी जाती हैं। 'दशकुमारचरित', [[1927]] में ''द एडवेंचर्स ऑफ़ द टेन प्रिंसेज'' शीर्षक से अनुदित और 'काव्यादर्श' (कविता का आदर्श)।
व्याख्याकार दो महत्त्वपूर्ण रचनाएं सामान्यत: निश्चित रुप से उनकी मानी जाती है। दशकुमार चरित, [[1927]] में ''द एडवेंचर्स ऑफ़ द टेन प्रिंसेज'' शीर्षक से अनुदित और काव्यादर्श (कविता का आदर्श)।  
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==जन्म विवाद==
दंडी के जीवन के सम्बन्ध में प्रामाणिक सूचनाओं का बहुत अभाव है। कोई उन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के आरम्भ का मानता है तो कोई इनका जन्म 550 और 650 ई. के बीच मानता है।  
दंडी के जीवन के सम्बन्ध में प्रामाणिक सूचनाओं का बहुत अभाव है। कोई उन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के आरम्भ का मानता है तो कोई इनका जन्म 550 और 650 ई. के बीच मानता है।
==रचनाएँ==
====रचनाएँ====
दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं-‘काव्यादर्श’, [[दशकुमार चरित]]और ‘मृच्छकटिक’।
दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 'काव्यादर्श', '[[दशकुमार चरित]]' और 'अवंतिसुन्दरी कथा'।
;दशकुमार चरित  
;दशकुमार चरित
दशकुमार चरित गद्यकाव्य है। इसमें दस कुमारों ने अपनी-अपनी यात्राओं के विचित्र अनुभवों तथा पराक्रमों का मनोरंजक वर्णन किया है। विनोद और व्यंग्य के माध्यम से इसमें तत्कालीन समाज का भी चित्रण किया गया है। दशकुमार रचना को दंडी की प्रारम्भिक रचना माना जाता है। लेकिन इसी के बल पर दंडी को संस्कृत का पहला गद्यकार भी कहा जाता है।
दशकुमार चरित गद्यकाव्य है। इसमें दस कुमारों ने अपनी-अपनी यात्राओं के विचित्र अनुभवों तथा पराक्रमों का मनोरंजक वर्णन किया है। विनोद और व्यंग्य के माध्यम से इसमें तत्कालीन समाज का भी चित्रण किया गया है। दशकुमार रचना को दंडी की प्रारम्भिक रचना माना जाता है। लेकिन इसी के बल पर दंडी को [[संस्कृत]] का पहला गद्यकार भी कहा जाता है। 'दशकुमारचरित' 10 राजकुमारों के प्रेम व सत्ता प्राप्ति के उनके प्रयासों के दौरान सुख-दुख का वर्णन करता है। यह रचना मानव के अवगुणों के यथार्थपरक चित्रण और परालौकिक चमत्कार, जिसमें देवताओं का मानवीय मामलों में हस्तक्षेप शामिल है, से ओतप्रोत है।<ref>{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=भारतीय चरित कोश|लेखक=लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय'|अनुवादक=|आलोचक=|प्रकाशक=शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली|संकलन= |संपादन=|पृष्ठ संख्या=369|url=}}</ref>
 
दशकुमारचरित 10 राजकुमारों के प्रेम व सत्ता प्राप्ति के उनके प्रयासों के दौरान सुख-दुख का वर्णन करता है। यह रचना मानव के अवगुणों के यथार्थपरक चित्रण और परालौकिक चमत्कार, जिसमें देवताओं का मानवीय मामलों में हस्तक्षेप शामिल है, से ओतप्रोत है।
;काव्यादर्श
;काव्यादर्श
काव्यादर्श दंडी की प्रौढ़ावस्था की रचना है। काव्यादर्श साहित्यिक आलोचना की रचना है, जो कविता की प्रत्येक प्रकार की शैली व भावना के आदर्शों को परिभाषित करती है।
काव्यादर्श दंडी की प्रौढ़ावस्था की रचना है। काव्यादर्श साहित्यिक आलोचना की रचना है, जो कविता की प्रत्येक प्रकार की शैली व भावना के आदर्शों को परिभाषित करती है।
;अवंतिसुन्दरी कथा
यह दण्डी का सौन्दर्य प्रबन्ध है, जिसमें मालवराज मानसार की कन्या अवंतिसुन्दरी की कथा का वर्णन है। यह दण्डी का सबसे प्रसिद्ध गद्य काव्य है।
==भाषा-शैली==
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Latest revision as of 07:48, 7 November 2017

दंडी संस्कृत के प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जो छ्ठी शताब्दी के अंत और सातवीं शताब्दी के प्रारंभ में सक्रिय थे। संस्कृत श्रृंगारिक गद्य के लेखक और काव्यशास्त्र के व्याख्याकार के रूप में उनकी दो महत्त्वपूर्ण रचनाएँ सामान्यत: निश्चित रुप से उनकी मानी जाती हैं। 'दशकुमारचरित', 1927 में द एडवेंचर्स ऑफ़ द टेन प्रिंसेज शीर्षक से अनुदित और 'काव्यादर्श' (कविता का आदर्श)।

जन्म विवाद

दंडी के जीवन के सम्बन्ध में प्रामाणिक सूचनाओं का बहुत अभाव है। कोई उन्हें सातवीं शती के उत्तरार्ध या आठवीं शती के आरम्भ का मानता है तो कोई इनका जन्म 550 और 650 ई. के बीच मानता है।

रचनाएँ

दंडी की की तीन रचनाएँ प्रसिद्ध हैं- 'काव्यादर्श', 'दशकुमार चरित' और 'अवंतिसुन्दरी कथा'।

दशकुमार चरित

दशकुमार चरित गद्यकाव्य है। इसमें दस कुमारों ने अपनी-अपनी यात्राओं के विचित्र अनुभवों तथा पराक्रमों का मनोरंजक वर्णन किया है। विनोद और व्यंग्य के माध्यम से इसमें तत्कालीन समाज का भी चित्रण किया गया है। दशकुमार रचना को दंडी की प्रारम्भिक रचना माना जाता है। लेकिन इसी के बल पर दंडी को संस्कृत का पहला गद्यकार भी कहा जाता है। 'दशकुमारचरित' 10 राजकुमारों के प्रेम व सत्ता प्राप्ति के उनके प्रयासों के दौरान सुख-दुख का वर्णन करता है। यह रचना मानव के अवगुणों के यथार्थपरक चित्रण और परालौकिक चमत्कार, जिसमें देवताओं का मानवीय मामलों में हस्तक्षेप शामिल है, से ओतप्रोत है।[1]

काव्यादर्श

काव्यादर्श दंडी की प्रौढ़ावस्था की रचना है। काव्यादर्श साहित्यिक आलोचना की रचना है, जो कविता की प्रत्येक प्रकार की शैली व भावना के आदर्शों को परिभाषित करती है।

अवंतिसुन्दरी कथा

यह दण्डी का सौन्दर्य प्रबन्ध है, जिसमें मालवराज मानसार की कन्या अवंतिसुन्दरी की कथा का वर्णन है। यह दण्डी का सबसे प्रसिद्ध गद्य काव्य है।

भाषा-शैली

दंडी संस्कृत साहित्य में अपने पद लालित्य के लिए विख्यात हैं। उनकी शैली समास रहित एवं प्रसाद गुण से युक्त है। उनके पात्र सांसारिक प्राणी हैं, जो सीधी और सरल भाषा का प्रयोग करते हैं। भाषा में कहीं भी दुबोंधाता नहीं आने पाई है। उनकी भाषा दिन-प्रतिदिन के प्रयोग की भाषा है। दंडी की शैली की विशेषताएँ हैं-

  1. अर्थ की स्पष्टता
  2. पद का लालित्या
  3. शब्दों के दिन-प्रतिदिन की क्षमता
  4. रस की सुन्दर अभिव्यक्ति

इन विशेषताओं के कारण कुछ विद्वान् दंडी को वाल्मीकि तथा व्यास की कोटि का तीसरा कवि मानते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 369 |

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