दुर्गाभक्तितरंगिणी (विद्यापति): Difference between revisions

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* दुर्गाभक्तितरंगिणी ग्रन्थ को दुर्गोत्सव पद्धति के नाम से भी जाना जाता है।  
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* दुर्गाभक्तितरंगिणी में मुख्यत: कालिकापुराण, देवीपुराण, [[भविष्य पुराण]], [[ब्रह्म पुराण]] और [[मार्कण्डेय पुराण]] से [[दुर्गा]] पूजा की पद्धति के विषय में प्रमाणों का प्रकरणानुसार संग्रह किया गया है।
* दुर्गाभक्तितरंगिणी में मुख्यत: कालिकापुराण, देवीपुराण, [[भविष्य पुराण]], [[ब्रह्म पुराण]] और [[मार्कण्डेय पुराण]] से [[दुर्गा]] पूजा की पद्धति के विषय में प्रमाणों का प्रकरणानुसार संग्रह किया गया है।
* यह एक अनुपम ग्रन्थ है जो महाकवि विद्यापति ठाकुर का शक्ति के ऊपर अपार श्रद्धा का परिचायक है।
* यह एक अनुपम ग्रन्थ है जो महाकवि विद्यापति ठाकुर का शक्ति के ऊपर अपार श्रद्धा का परिचायक है।
 
*यह ग्रंथ विद्यापति द्वारा प्रणीत है। यह उनका अंतिम ग्रंथ है।
*नरसिंह के पुत्र धीरसिंह एवं उसके भाई भैरवेन्द्र (यहाँ रूपनारायण, यद्यपि अन्यत्र हरिनारायण नाम आया है) की प्रशंसा है।<ref>देखिए इण्डि. ऐण्टी., जिल्द 14, पृष्ठ 193</ref>
*यह ग्रंथ लगभग 1438 में निर्मित और [[कलकत्ता]] में सन् 1909 में प्रकाशित है। 
   
   



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चित्र:Disamb2.jpg दुर्गाभक्तितरंगिणी एक बहुविकल्पी शब्द है अन्य अर्थों के लिए देखें:- दुर्गाभक्तितरंगिणी

दुर्गाभक्तितरंगिणी महाकवि विद्यापति द्वारा रचिक एक ग्रंथ हैं।

  • दुर्गाभक्तितरंगिणी ग्रन्थ को दुर्गोत्सव पद्धति के नाम से भी जाना जाता है।
  • इस ग्रन्थ की रचना महाराज भैरवसिंह की आज्ञा से हुई थी।
  • दुर्गाभक्तितरंगिणी में मुख्यत: कालिकापुराण, देवीपुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्म पुराण और मार्कण्डेय पुराण से दुर्गा पूजा की पद्धति के विषय में प्रमाणों का प्रकरणानुसार संग्रह किया गया है।
  • यह एक अनुपम ग्रन्थ है जो महाकवि विद्यापति ठाकुर का शक्ति के ऊपर अपार श्रद्धा का परिचायक है।
  • यह ग्रंथ विद्यापति द्वारा प्रणीत है। यह उनका अंतिम ग्रंथ है।
  • नरसिंह के पुत्र धीरसिंह एवं उसके भाई भैरवेन्द्र (यहाँ रूपनारायण, यद्यपि अन्यत्र हरिनारायण नाम आया है) की प्रशंसा है।[1]
  • यह ग्रंथ लगभग 1438 में निर्मित और कलकत्ता में सन् 1909 में प्रकाशित है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. देखिए इण्डि. ऐण्टी., जिल्द 14, पृष्ठ 193

बाहरी कड़ियाँ

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