धर्मपिटक (यहूदी धर्म): Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
(''''धर्मपिटक''' यहूदियों के मन्दिर या पूजा स्थल, ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
'''धर्मपिटक''' [[यहूदी|यहूदियों]] के मन्दिर या पूजा स्थल, जिसे '[[सिनागौग]]' कहा जाता है, में रखा कीकट की लकड़ी से निर्मित और [[स्वर्ण]] से जड़ित एक पिटक है। इसमें दस धर्मसूत्रों की प्रति रखी होती है। इसे "धर्म प्रतिज्ञा की नौका" भी कहा जाता है।
'''धर्मपिटक''' [[यहूदी|यहूदियों]] के मन्दिर या पूजा स्थल, जिसे '[[सिनागौग]]' कहा जाता है, में रखा कीकट की लकड़ी से निर्मित और [[स्वर्ण]] से जड़ित एक पिटक है। इसमें दस धर्मसूत्रों की प्रति रखी होती है। इसे "धर्म प्रतिज्ञा की नौका" भी कहा जाता है।
[[यहूदी धर्म]] यह मानता है कि यहूदी समुदाय का दिव्य के साथ प्रत्यक्ष सामना होता है और स्थापित होने वाला यह संबंध, बेरित<ref>अनुबंध</ref>, अटूट है। यह समूची मानवता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। ईश्वर को 'तोरा प्रदायक', यानी 'दिव्य प्रदायक' के रूप में देखा जाता है। अपने पारंपरिक व्यापक रूप में हिब्रू ग्रंथ और यहूदी मौखिक परंपराएँ<ref>मिश्ना और तालमुद</ref>, धार्मिक मान्यताएँ रीति-रिवाज और अनुष्ठान, ऐतिहासिक पुनर्संकलन और इसके आधिकारिक ग्रंथों<ref>मिदराश</ref> की विवेचना है। ईश्वर ने दिव्य आशीष के लिए यहूदियों का चुनाव करके उन्हें मानवता तक इसे पहुँचाने का माध्यम भी बनाया और उनसे तोरा के नियमों के पालन और विश्व के अन्य लोगों के गवाह के रूप में काम करने की अपेक्षा की।


{{seealso|यहूदी धर्म}}
{{seealso|यहूदी धर्म}}
Line 7: Line 9:
<references/>
<references/>
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
 
{{यहूदी धर्म}}
[[Category:यहूदी धर्म]][[Category:यहूदी धर्म कोश]]
[[Category:यहूदी धर्म]][[Category:यहूदी धर्म कोश]][[Category:धर्म कोश]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 13:47, 21 March 2014

धर्मपिटक यहूदियों के मन्दिर या पूजा स्थल, जिसे 'सिनागौग' कहा जाता है, में रखा कीकट की लकड़ी से निर्मित और स्वर्ण से जड़ित एक पिटक है। इसमें दस धर्मसूत्रों की प्रति रखी होती है। इसे "धर्म प्रतिज्ञा की नौका" भी कहा जाता है।

यहूदी धर्म यह मानता है कि यहूदी समुदाय का दिव्य के साथ प्रत्यक्ष सामना होता है और स्थापित होने वाला यह संबंध, बेरित[1], अटूट है। यह समूची मानवता के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। ईश्वर को 'तोरा प्रदायक', यानी 'दिव्य प्रदायक' के रूप में देखा जाता है। अपने पारंपरिक व्यापक रूप में हिब्रू ग्रंथ और यहूदी मौखिक परंपराएँ[2], धार्मिक मान्यताएँ रीति-रिवाज और अनुष्ठान, ऐतिहासिक पुनर्संकलन और इसके आधिकारिक ग्रंथों[3] की विवेचना है। ईश्वर ने दिव्य आशीष के लिए यहूदियों का चुनाव करके उन्हें मानवता तक इसे पहुँचाने का माध्यम भी बनाया और उनसे तोरा के नियमों के पालन और विश्व के अन्य लोगों के गवाह के रूप में काम करने की अपेक्षा की।

  1. REDIRECTसाँचा:इन्हें भी देखें


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अनुबंध
  2. मिश्ना और तालमुद
  3. मिदराश

संबंधित लेख