बांग्ला साहित्य: Difference between revisions

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==पूर्व चैतन्य वैष्णव साहित्य==
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[[सुकुमार सेन|डॉ.  सुकुमार सेन]] ने [[साहित्य अकादमी]] से प्रकाशित बांग्ला साहित्य का इतिहास ग्रंथ में बंगाली विद्वान हर प्रसाद शास्त्री द्वारा बीसवीं सदी के आरम्भ में खोजी गई पाण्डुलिपि में संगृहीत आठवीं से बारहवीं सदी के बीच विभिन्न बौद्ध वज्रयानी सिद्धों के चर्यागीतों से बांग्ला का आरम्भ माना है। इस सम्बंध में प्रोफेसर महावीर सरन जैन का मत भिन्न है। उनका कथन है कि डॉ. सुकुमार सेन का मत इसी प्रकार है जिस प्रकार राहुल सांकृत्यायन ने सरहपा सिद्ध के चर्यागीतों से हिन्दी का आरम्भ होना माना है अथवा जिस प्रकार से असमिया एवं ओड़िया के विद्वान इन चर्यागीतों अथवा चर्यापदों से अपनी अपनी भाषा का आरम्भ होना मानते हैं। प्रोफेसर जैन ने “अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण काल की रचनाएँ” शीर्षक लेख में स्पष्ट किया है कि "सिद्ध साहित्य की भाषा का स्वरूप आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की प्रकृति का न होकर अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की भाषा का है। इस कारण हम डॉ. सुकुमार सेन के मत से सहमत नहीं हो सकते। बांग्ला के प्रथम कवि बोरु चंडीदास हैं और इनकी रचना-कृति का नाम ‘श्री कृष्ण कीर्तन’ है। चैतन्य-चरितामृत एवं चैतन्यमंगल से यह प्रमाणित होता है कि बोरु चंडीदास चैतन्यदेव के पूर्ववर्ती थे तथा चैतन्य महाप्रभु इनकी रचनाएँ सुनकर प्रसन्न होते थे"। इसके बाद विद्यापति और चंडीदास की काव्य रचमाएँ मिलती हैं।मालाधार  बसु और कीर्तिबास ने भागवत पुराण और रामायण का बंगाली में अनुवाद किया।  
[[सुकुमार सेन|डॉ.  सुकुमार सेन]] ने [[साहित्य अकादमी]] से प्रकाशित बांग्ला साहित्य का इतिहास ग्रंथ में बंगाली विद्वान् हर प्रसाद शास्त्री द्वारा बीसवीं सदी के आरम्भ में खोजी गई पाण्डुलिपि में संग्रहीत आठवीं से बारहवीं सदी के बीच विभिन्न बौद्ध वज्रयानी सिद्धों के चर्यागीतों से बांग्ला का आरम्भ माना है। इस सम्बंध में प्रोफेसर महावीर सरन जैन का मत भिन्न है। उनका कथन है कि डॉ. सुकुमार सेन का मत इसी प्रकार है जिस प्रकार राहुल सांकृत्यायन ने सरहपा सिद्ध के चर्यागीतों से हिन्दी का आरम्भ होना माना है अथवा जिस प्रकार से असमिया एवं ओड़िया के विद्वान् इन चर्यागीतों अथवा चर्यापदों से अपनी अपनी भाषा का आरम्भ होना मानते हैं। प्रोफेसर जैन ने “अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण काल की रचनाएँ” शीर्षक लेख में स्पष्ट किया है कि "सिद्ध साहित्य की भाषा का स्वरूप आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की प्रकृति का न होकर अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की भाषा का है। इस कारण हम डॉ. सुकुमार सेन के मत से सहमत नहीं हो सकते। बांग्ला के प्रथम कवि बोरु चंडीदास हैं और इनकी रचना-कृति का नाम ‘श्री कृष्ण कीर्तन’ है। चैतन्य-चरितामृत एवं चैतन्यमंगल से यह प्रमाणित होता है कि बोरु चंडीदास चैतन्यदेव के पूर्ववर्ती थे तथा चैतन्य महाप्रभु इनकी रचनाएँ सुनकर प्रसन्न होते थे"। इसके बाद विद्यापति और चंडीदास की काव्य रचमाएँ मिलती हैं।मालाधार  बसु और कीर्तिबास ने भागवत पुराण और रामायण का बंगाली में अनुवाद किया।  
==परवर्ती चैतन्य वैष्णव साहित्य==
==परवर्ती चैतन्य वैष्णव साहित्य==
इनमें शामिल हैं: गौड़ीय वैष्णव विद्वान कवियों द्वारा चैतन्य की जीवनी और वैष्णव पदावली।  
इनमें शामिल हैं: गौड़ीय वैष्णव विद्वान् कवियों द्वारा चैतन्य की जीवनी और वैष्णव पदावली।  
==मंगलकाव्य==  
==मंगलकाव्य==  
मंगल - काव्या 13 वीं सदी और 18 वीं सदी के बीच की रचनाओं का एक समूह है।
मंगल - काव्या 13 वीं सदी और 18 वीं सदी के बीच की रचनाओं का एक समूह है।
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[[बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय]] (1838-1894) बांग्ला साहित्य के  19 वीं सदी के प्रमुख बंगाली उपन्यासकार और निबंधकार माने जाते हैं।
[[बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय]] (1838-1894) बांग्ला साहित्य के  19 वीं सदी के प्रमुख बंगाली उपन्यासकार और निबंधकार माने जाते हैं।
==रवीन्द्रनाथ टैगोर युग==
==रवीन्द्रनाथ टैगोर युग==
[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] संभवतः बंगाली में सबसे उर्वर लेखक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।  पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में आपने बांग्ला संस्कृति को परिभाषित करने में एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया।  गीतांजलि को सन् 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।। काजी नजरुल इस्लाम भी बोंग्ला देश और भारत दोनों दोशों में सम्मानित हुए। नजरूल गीति और " नजरूल संगीत " के रूप में 3,000 गाने  शामिल हैं।
[[रवीन्द्रनाथ टैगोर]] संभवतः बंगाली में सबसे उर्वर लेखक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।  पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में आपने बांग्ला संस्कृति को परिभाषित करने में एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया।  गीतांजलि को सन् 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।। क़ाज़ी नजरुल इस्लाम भी बोंग्ला देश और भारत दोनों दोशों में सम्मानित हुए। नजरूल गीति और " नजरूल संगीत " के रूप में 3,000 गाने  शामिल हैं।


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पूर्व चैतन्य वैष्णव साहित्य

डॉ. सुकुमार सेन ने साहित्य अकादमी से प्रकाशित बांग्ला साहित्य का इतिहास ग्रंथ में बंगाली विद्वान् हर प्रसाद शास्त्री द्वारा बीसवीं सदी के आरम्भ में खोजी गई पाण्डुलिपि में संग्रहीत आठवीं से बारहवीं सदी के बीच विभिन्न बौद्ध वज्रयानी सिद्धों के चर्यागीतों से बांग्ला का आरम्भ माना है। इस सम्बंध में प्रोफेसर महावीर सरन जैन का मत भिन्न है। उनका कथन है कि डॉ. सुकुमार सेन का मत इसी प्रकार है जिस प्रकार राहुल सांकृत्यायन ने सरहपा सिद्ध के चर्यागीतों से हिन्दी का आरम्भ होना माना है अथवा जिस प्रकार से असमिया एवं ओड़िया के विद्वान् इन चर्यागीतों अथवा चर्यापदों से अपनी अपनी भाषा का आरम्भ होना मानते हैं। प्रोफेसर जैन ने “अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण काल की रचनाएँ” शीर्षक लेख में स्पष्ट किया है कि "सिद्ध साहित्य की भाषा का स्वरूप आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं की प्रकृति का न होकर अपभ्रंश एवं आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के संक्रमण-काल की भाषा का है। इस कारण हम डॉ. सुकुमार सेन के मत से सहमत नहीं हो सकते। बांग्ला के प्रथम कवि बोरु चंडीदास हैं और इनकी रचना-कृति का नाम ‘श्री कृष्ण कीर्तन’ है। चैतन्य-चरितामृत एवं चैतन्यमंगल से यह प्रमाणित होता है कि बोरु चंडीदास चैतन्यदेव के पूर्ववर्ती थे तथा चैतन्य महाप्रभु इनकी रचनाएँ सुनकर प्रसन्न होते थे"। इसके बाद विद्यापति और चंडीदास की काव्य रचमाएँ मिलती हैं।मालाधार बसु और कीर्तिबास ने भागवत पुराण और रामायण का बंगाली में अनुवाद किया।

परवर्ती चैतन्य वैष्णव साहित्य

इनमें शामिल हैं: गौड़ीय वैष्णव विद्वान् कवियों द्वारा चैतन्य की जीवनी और वैष्णव पदावली।

मंगलकाव्य

मंगल - काव्या 13 वीं सदी और 18 वीं सदी के बीच की रचनाओं का एक समूह है। 19 वीं सदी का बंग्ला-साहित्य इस अवधि के दौरान फोर्ट विलियम कॉलेज के निर्देशन में बंगाली पंडितों ने बंगाली में पाठ्य पुस्तकों का अनुवाद किया। बंगाली गद्य के विकास की पृष्ठभूमि बनी। 1814 में, राजा राम मोहन राय कलकत्ता पहुंचे और साहित्यिक गतिविधियों में संलग्न हुए।

माइकल मधुसूदन दत्त

माइकल मधुसूदन दत्त (1824-1873) का पहला महाकाव्य तिलोत्तमा तथा इसके बाद सन् 1861 में दो भागों में मेघनाथ प्रकाशित हुआ।

बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय

बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय (1838-1894) बांग्ला साहित्य के 19 वीं सदी के प्रमुख बंगाली उपन्यासकार और निबंधकार माने जाते हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर युग

रवीन्द्रनाथ टैगोर संभवतः बंगाली में सबसे उर्वर लेखक तथा नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में आपने बांग्ला संस्कृति को परिभाषित करने में एक निर्णायक भूमिका का निर्वाह किया। गीतांजलि को सन् 1913 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।। क़ाज़ी नजरुल इस्लाम भी बोंग्ला देश और भारत दोनों दोशों में सम्मानित हुए। नजरूल गीति और " नजरूल संगीत " के रूप में 3,000 गाने शामिल हैं।

अन्य उल्लेखनीय नाम

आधुनिक एवं समकालीन युग

कवि

इस युग के कवियों में जीबनानन्द, सुधीनद्रनाथ दत्ता (1901-1960), विष्णु डे (1909-1982), अमिय चक्रवर्ती (1901-1986), अजीत दत्ता आदि के नाम प्रसिद्ध हैं।

उपन्यासकार

ताराशंकर बंदोपाध्याय, विभूतिभूषण बंदोपाध्याय, माणिक बंद्योपाध्याय के उपन्यास बहुत प्रसिद्ध हुए। अन्य बंगाली उपन्यासकारों में हुमायूं अहमद, जगदीश गुप्ता, सतीनाथ भादुड़ी, बलाई चंद मुखोपाध्याय, वनफूल, उस्मान, बंदोपाध्याय, कमल कुमार मजूमदार, सुनील गंगोपाध्याय, सैयद शम्सुल हक, एलियास, संदीपन चट्टोपाध्याय के नाम आते हैं। बिमल मित्रा, बिमल कार, समरेश बसु, मणिशंकर मुखर्जी ( शंकर ), अमर मित्रा आदि सबसे लोकप्रिय बंगाली लेखक हैं।

लघु कहानी लेखक

बंगाली साहित्य के प्रसिद्ध लघु कहानी लेखकों में रवीन्द्रनाथ टैगोर, माणिक बंद्योपाध्याय, जगदीश गुप्ता, ताराशंकर बंदोपाध्याय, विभूति भूषण बंदोपाध्याय, राजशेखर बसु ( परशुराम ), प्रमेंद्र मित्रा, कमल कुमार मजूमदार, बंदोपाध्याय, सुबोध घोष, नरेंद्रनाथ मित्रा, नंदी, बिमल कार, नारायण गंगोपाध्याय, कुमार मित्रा, संतोष घोष, सैयद मुस्तफा सिराज, देबेश रॉय, अनीश देब, रायचौधरी, सत्यजीत रे, लीला मजुमदार, रतन लाल बसु, संदीपन चट्टोपाध्याय, बासुदेव दास गुप्ता आदि हैं। आजादी के बाद पश्चिम बंगाल की लघु कहानी लेखकों में जगदीश गुप्ता (1886-1957), ताराशंकर बंद्योपाध्याय (1889-1971), विभूतिभूषण बंद्योपाध्याय (1894-1950), प्रमेंद्र मित्रा (1904-1988), माणिक बंद्योपाध्याय (1908 - 1956), बालचंद मुखोपाध्याय ( बनफूलl ) ( 1899-1979 ), विभूति भूषण मुखोपाध्याय ( 1894-1987 ), शरदेन्दु बंद्योपाध्याय ( 1899-1970 ) के नाम प्रसिद्ध हैं।

नाटककार

इस युग के प्रमुख नाटककार हैं- चौधरी (1889-1948), मन्मथ रॉय (1899-1988), सचिन सेनगुप्ता (1892-1961), महेंद्र गुप्ता (1910-1984), भट्टाचार्य (1907-1986) और तुलसी लाहिड़ी ( 1897-1959 )।

निबंध एवं अन्य गद्य विधाएँ

इस उम्र के प्रमुख गद्य लेखक अतुल चंद्र गुप्ता (1884-1961), श्रीकुमार बंद्योपाध्याय (1892-1970), सुनीति कुमार चट्टोपाध्याय (1890-1977) आदि हैं।


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