भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान मार्क III: Difference between revisions

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'''भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान मार्क III''' अथवा '''जीएसएलवी-III''' भारतीय अनुसंधान संगठन द्वारा संप्रति विकासाधीन एक [[प्रमोचन यान]] है। [[इसरो]] के 4500 से 5000 कि.ग्रा. भार वाले इन्सैट-4 श्रेणी के भारी संचार उपग्रहों के प्रमोचन के लिए जीएसएलवी मार्क III की परिकल्पना और डिज़ाइन तैयार की गई है।
'''भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान मार्क III''' अथवा '''जीएसएलवी-III''' [[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]] द्वारा संप्रति विकासाधीन एक [[प्रमोचन यान]] है। [[इसरो]] के 4500 से 5000 कि.ग्रा. भार वाले इन्सैट-4 श्रेणी के भारी संचार उपग्रहों के प्रमोचन के लिए जीएसएलवी मार्क III की परिकल्पना और डिज़ाइन तैयार की गई है।
* यह अरबों डालर के व्यापारिक प्रमोचन बाज़ार में सक्षम प्रतियोगी के रूप में देश की क्षमता में भी वृद्धि करता है। यह यान जी.टी.ओ., एल.ई.ओ., ध्रुवीय और मध्यवर्ती वृत्तीय कक्षा के लिए मल्टी-मिशन प्रमोचन क्षमता परिकल्पित करता है।
* यह अरबों डालर के व्यापारिक प्रमोचन बाज़ार में सक्षम प्रतियोगी के रूप में देश की क्षमता में भी वृद्धि करता है। यह यान जी.टी.ओ., एल.ई.ओ., ध्रुवीय और मध्यवर्ती वृत्तीय कक्षा के लिए मल्टी-मिशन प्रमोचन क्षमता परिकल्पित करता है।
* जीएसएलवी-मार्क III को 630 टन उत्थापन भार व 42.4 मी. लंबाई सहित तीन चरण यान के रूप में अभिकल्पित किया गया है।  
* जीएसएलवी-मार्क III को 630 टन उत्थापन भार व 42.4 मी. लंबाई सहित तीन चरण यान के रूप में अभिकल्पित किया गया है।  
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* बृहत् नीतभार फेयरिंग का व्यास 5 मी. है और यह 100 क्यू. मी. आयतन के पेलोड को समायोजित कर सकता है।
* बृहत् नीतभार फेयरिंग का व्यास 5 मी. है और यह 100 क्यू. मी. आयतन के पेलोड को समायोजित कर सकता है।
* 2012 में प्रमोचन के लिए समय सारणी के अनुसार मार्क III का विकास कार्य प्रगति पर है।
* 2012 में प्रमोचन के लिए समय सारणी के अनुसार मार्क III का विकास कार्य प्रगति पर है।
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|+ जीएसएलवी मार्क III के प्रतिनिधिक प्राचल
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==समाचार==
==समाचार==
; 18 दिसम्बर, 2014
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====सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण====
====सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण====
[[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]] (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को [[आंध्र प्रदेश]] में [[श्रीहरिकोटा]] स्थित [[सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र]] से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले [[24 सितंबर]], [[2014]] को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन [[ठोस]], [[द्रव]] और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए [[बंगाल की खाड़ी]] में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक [[के. राधाकृष्णन]] ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक [[कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन|डॉ. कस्तूरीरंगन]] भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद [[भारत]] इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।
[[भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन]] (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को [[आंध्र प्रदेश]] में [[श्रीहरिकोटा]] स्थित [[सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र]] से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले [[24 सितंबर]], [[2014]] को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन [[ठोस]], [[द्रव]] और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए [[बंगाल की खाड़ी]] में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक [[के. राधाकृष्णन]] ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक [[कृष्णास्वामी कस्तूरीरंगन|डॉ. कस्तूरीरंगन]] भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद [[भारत]] इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।
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[[चित्र:Launch Vehicles.jpg|thumb|विभिन्न प्रमोचन यान|350px]] भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचन यान मार्क III अथवा जीएसएलवी-III भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा संप्रति विकासाधीन एक प्रमोचन यान है। इसरो के 4500 से 5000 कि.ग्रा. भार वाले इन्सैट-4 श्रेणी के भारी संचार उपग्रहों के प्रमोचन के लिए जीएसएलवी मार्क III की परिकल्पना और डिज़ाइन तैयार की गई है।

  • यह अरबों डालर के व्यापारिक प्रमोचन बाज़ार में सक्षम प्रतियोगी के रूप में देश की क्षमता में भी वृद्धि करता है। यह यान जी.टी.ओ., एल.ई.ओ., ध्रुवीय और मध्यवर्ती वृत्तीय कक्षा के लिए मल्टी-मिशन प्रमोचन क्षमता परिकल्पित करता है।
  • जीएसएलवी-मार्क III को 630 टन उत्थापन भार व 42.4 मी. लंबाई सहित तीन चरण यान के रूप में अभिकल्पित किया गया है।
  • प्रथम चरण में 200 टन ठोस नोदक सहित दो एकसमान एस200 बृहत् ठोस बूस्टोर (एल.एस.बी.) समाहित हैं, जिन्हें द्वितीय चरण, एल110 पुन: प्रारंभ योग्य द्रव चरण पर स्ट्रेप ऑन किए गए हैं। तृतीय चरण सी25 एलओएक्स / एलएच 2 निम्नतापीय चरण है।
  • बृहत् नीतभार फेयरिंग का व्यास 5 मी. है और यह 100 क्यू. मी. आयतन के पेलोड को समायोजित कर सकता है।
  • 2012 में प्रमोचन के लिए समय सारणी के अनुसार मार्क III का विकास कार्य प्रगति पर है।
जीएसएलवी मार्क III के प्रतिनिधिक प्राचल
उत्थापन भार 630 टन
नीतभार भू-तुल्यकाली अंतरण कक्षा (जी.टी.ओ.) में 4 टन
ऊँचाई 49 मीटर

समाचार

thumb|250px|जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट

गुरुवार, 18 दिसम्बर, 2014

सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी मार्क-3 का सफल प्रक्षेपण

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने अब तक के सबसे भारी रॉकेट जीएसएलवी-एमके 3 को आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया है। इसरो ने इससे पहले 24 सितंबर, 2014 को मंगलयान को सफलतापूर्वक उसकी कक्षा में स्थापित किया था। जीएसएलवी-एमके3 में सी-25 इंजन लगाया गया है। इसकी ऊंचाई 43.43 मीटर है। इस यान के तीन स्तरों पर तीन तरह के ईंधन ठोस, द्रव और क्रायोजनिक का इस्तेमाल किया गया है। जीएसएलवी-एमके3 रॉकेट के निर्माण पर कुल 140 करोड़ रुपये की लागत आई है। क्रू माड्यूल के निर्माण पर 15 करोड़ रुपये ख़र्च हुए हैं। इस सबसे भारी रॉकेट के प्रक्षेपण के साथ ही इसरो इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले 3.65 टन वजनी क्रू माड्यूल का परीक्षण भी कर रहा है। यह माड्यूल को रॉकेट में लगाया गया था। इसे पैराशूट के जरिए बंगाल की खाड़ी में सफलतापूर्वक उतारा गया है। इस परीक्षण की सफलता की जानकारी इसरो निदेशक के. राधाकृष्णन ने दी। इस मौके पर इसरो के पूर्व निदेशक डॉ. कस्तूरीरंगन भी मौज़ूद थे। जीएसएलवी-एमके 3 के प्रक्षेपण का उद्देश्य इनसेट-4 जैसे भारी संचार उपग्रहों के प्रक्षेपण में भारत को पूरी तरह आत्मनिर्भर बनाना है। इस सफलता के बाद भारत इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह प्रक्षेपित करने में सक्षम हो गया है। इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह का वजन 4500-5000 किलोग्राम तक होता है। इस श्रेणी के उपग्रहों को अंतरिक्ष में भेजने के लिए भारत अब तक दूसरे देशों पर निर्भर था। इससे भारत अरबों डॉलर के व्यावसायिक बाज़ार में भी अपनी दावेदारी मज़बूत करेगा और दूसरे देशों के इनसैट-4 श्रेणी के उपग्रह अंतरिक्ष में भेज पाएगा।

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