भारत भारती: Difference between revisions

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यह भाग भारतवर्ष के इतिहास पर गर्व करने को पूर्णत: विवश करता है। उस समय के दर्शन, धर्म-काल, प्राकृतिक संपदा, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक-व्यवस्था जैसे तत्त्वों को संक्षिप्त रूप से स्मरण करवाया गया है। अतिशयोक्ति से दूर इसकी सामग्री संलग्न दी गयी टीका-टिप्पणियों के प्रमाण के कारण सरलता से ग्राह्य हो जाती हैं। [[मेगस्थनीज]] से लेकर आर. सी. दत्त. तक के कथनों को प्रासंगिक ढंग से पाठकों के समक्ष रखना एक कुशल नियोजन का सूचक है। निरपेक्षता का ध्यान रखते हुए निन्दा और प्रशंसा के प्रदर्शन हुए है, जैसे [[मुग़ल काल]] के कुछ क्रूर शासकों की निंदा हुयी है तो [[अकबर]] जैसे [[मुग़ल]] शासक का बखान भी हुआ है। अंग्रेज़ों की उनके विष्कार और आधुनिकीकरण के प्रचार के कारण प्रशंसा भी हुई है।  
यह भाग भारतवर्ष के इतिहास पर गर्व करने को पूर्णत: विवश करता है। उस समय के दर्शन, धर्म-काल, प्राकृतिक संपदा, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक-व्यवस्था जैसे तत्त्वों को संक्षिप्त रूप से स्मरण करवाया गया है। अतिशयोक्ति से दूर इसकी सामग्री संलग्न दी गयी टीका-टिप्पणियों के प्रमाण के कारण सरलता से ग्राह्य हो जाती हैं। [[मेगस्थनीज]] से लेकर आर. सी. दत्त. तक के कथनों को प्रासंगिक ढंग से पाठकों के समक्ष रखना एक कुशल नियोजन का सूचक है। निरपेक्षता का ध्यान रखते हुए निन्दा और प्रशंसा के प्रदर्शन हुए है, जैसे [[मुग़ल काल]] के कुछ क्रूर शासकों की निंदा हुई है तो [[अकबर]] जैसे [[मुग़ल]] शासक का बखान भी हुआ है। अंग्रेज़ों की उनके विष्कार और आधुनिकीकरण के प्रचार के कारण प्रशंसा भी हुई है।  
[[चित्र:Bharat bharati.jpg|thumb|left|'भारत–भारती' पुस्तक का आवरण पृष्ठ]]
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<poem>भारतवर्ष के दर्शन पर वे कहते हैं-  
<poem>भारतवर्ष के दर्शन पर वे कहते हैं-  
पाये प्रथम जिनसे जगत ने दार्शनिक संवाद हैं-
पाये प्रथम जिनसे जगत् ने दार्शनिक संवाद हैं-
गौतम, कपिल, जैमिनी, पतंजली, व्यास और कणाद है।  
गौतम, कपिल, जैमिनी, पतंजली, व्यास और कणाद है।  
नीति पर उनके द्विपद ऐसे हैं-  
नीति पर उनके द्विपद ऐसे हैं-  
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दारिद्रय, नैतिक पतन, अव्यवस्था और आपसी भेदभाव से जूझते उस समय के देश की दुर्दशा को दर्शाते हुए, सामजिक नूतनता की माँग रखी गयी है।  
दारिद्रय, नैतिक पतन, अव्यवस्था और आपसी भेदभाव से जूझते उस समय के देश की दुर्दशा को दर्शाते हुए, सामजिक नूतनता की माँग रखी गयी है।  
<poem>अपनी हुयी आत्म-विस्मृति पर वे कहते हैं-  
<poem>अपनी हुई आत्म-विस्मृति पर वे कहते हैं-  
हम आज क्या से क्या हुए, भूले हुए हैं हम इसे,
हम आज क्या से क्या हुए, भूले हुए हैं हम इसे,
है ध्यान अपने मान का, हममें बताओ अब किसे!
है ध्यान अपने मान का, हममें बताओ अब किसे!

Latest revision as of 07:42, 7 November 2017

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रसिद्धी का मूलाधार भारत–भारती है। भारत–भारती उन दिनों राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम का घोषणापत्र बन गई थी। 'भारत-भारती', मैथिलीशरण गुप्तजी द्वारा स्वदेश प्रेम को दर्शाते हुए वर्तमान और भावी दुर्दशा से उबरने के लिए समाधान खोजने का एक सफल प्रयोग है। भारतवर्ष के संक्षिप्त दर्शन की काव्यात्मक प्रस्तुति 'भारत-भारती' निश्चित रूप से किसी शोध कार्य से कम नहीं है। गुप्तजी की सृजनता की दक्षता का परिचय देने वाली यह पुस्तक कई सामाजिक आयामों पर विचार करने को विवश करती है। यह सामग्री तीन भागों में बाँटीं गयी है।

अतीत-खंड
भारत–भारती, यह भाग भारतवर्ष के इतिहास पर गर्व करने को पूर्णत: विवश करता है। उस समय के दर्शन, धर्म-काल, प्राकृतिक संपदा, कला-कौशल, ज्ञान-विज्ञान, सामाजिक-व्यवस्था जैसे तत्त्वों को संक्षिप्त रूप से स्मरण करवाया गया है। अतिशयोक्ति से दूर इसकी सामग्री संलग्न दी गयी टीका-टिप्पणियों के प्रमाण के कारण सरलता से ग्राह्य हो जाती हैं। मेगस्थनीज से लेकर आर. सी. दत्त. तक के कथनों को प्रासंगिक ढंग से पाठकों के समक्ष रखना एक कुशल नियोजन का सूचक है। निरपेक्षता का ध्यान रखते हुए निन्दा और प्रशंसा के प्रदर्शन हुए है, जैसे मुग़ल काल के कुछ क्रूर शासकों की निंदा हुई है तो अकबर जैसे मुग़ल शासक का बखान भी हुआ है। अंग्रेज़ों की उनके विष्कार और आधुनिकीकरण के प्रचार के कारण प्रशंसा भी हुई है। thumb|left|'भारत–भारती' पुस्तक का आवरण पृष्ठ

भारतवर्ष के दर्शन पर वे कहते हैं-
पाये प्रथम जिनसे जगत् ने दार्शनिक संवाद हैं-
गौतम, कपिल, जैमिनी, पतंजली, व्यास और कणाद है।
नीति पर उनके द्विपद ऐसे हैं-
सामान्य नीति समेत ऐसे राजनीतिक ग्रन्थ हैं-
संसार के हित जो प्रथम पुण्याचरण के पंथ हैं।
सूत्रग्रंथ के सन्दर्भ में ऋषियों के विद्वता पर वे लिखते हैं-
उन ऋषि-गणों ने सूक्ष्मता से काम कितना है लिया,
आश्चर्य है, घट में उन्होंने सिन्धु को है भर दिया।

वर्तमान-खंड
दारिद्रय, नैतिक पतन, अव्यवस्था और आपसी भेदभाव से जूझते उस समय के देश की दुर्दशा को दर्शाते हुए, सामजिक नूतनता की माँग रखी गयी है।

अपनी हुई आत्म-विस्मृति पर वे कहते हैं-
हम आज क्या से क्या हुए, भूले हुए हैं हम इसे,
है ध्यान अपने मान का, हममें बताओ अब किसे!
पूर्वज हमारे कौन थे, हमको नहीं यह ज्ञान भी,
है भार उनके नाम पर दो अंजली जल-दान भी।

नैतिक और धार्मिक पतन के लिए गुप्तजी ने उपदेशकों, संत-महंतों और ब्राह्मणों की निष्क्रियता और मिथ्या-व्यवहार को दोषी मान शब्द बाण चलाये हैं। इस तरह कविवर की लेखनी सामाजिक दुर्दशा के मुख्य कारणों को खोज उनके सुधार की माँग करती है। हमारे सामाजिक उत्तरदायित्त्व की निष्क्रियता को उजागर करते हुए भी 'वर्तमान खंड' आशा की गाँठ को बाँधे रखती है।

भविष्यत्-खंड

अपने ज्ञान, विवेक और विचारों की सीमा को छूते हुए राष्ट्कवि ने समस्या समाधान के हल खोजने और लोगों से उसके के लिए आवाहन करने का भरसक प्रयास किया है ।

आर्य वंशज हिन्दुओं को देश पुनर्स्थापना के लिए प्रेरित करते हुए वे कहते हैं-
हम हिन्दुओं के सामने आदर्श जैसे प्राप्त हैं-
संसार में किस जाती को, किस ठौर वैसे प्राप्त हैं,
भव-सिन्धु में निज पूर्वजों के रीति से ही हम तरें,
यदि हो सकें वैसे न हम तो अनुकरण तो भी करें।

पुस्तक की अंत की दो रचनाएं शुभकामना और विनय कविवर की देशभक्ति की परिचायक है। तन में देश सद्भावना की ऊर्जा का संचार करने वाली यह दो रचनाएं किसी प्रार्थना से कम नहीं लगती।

वह अमर लेखनी ईश्वर से प्रार्थना करती है-
इस देश को हे दीनबन्धो!आप फिर अपनाइए,
भगवान्! भारतवर्ष को फिर पुण्य-भूमि बनाइये,
जड़-तुल्य जीवन आज इसका विघ्न-बाधा पूर्ण है,
हेरम्ब! अब अवलंब देकर विघ्नहर कहलाइए।[1]



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शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एस. तिवारी, अवनीश। मैथिलीशरण गुप्त और भारत-भारती (हि्न्दी) सृजनगाथा। अभिगमन तिथि: 25 जुलाई, 2010।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख