छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-7: Difference between revisions

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*इस खण्ड में अध्यात्मिक उपासना का वर्णन है।
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*यही ब्रह्म है, यही आदित्य के मध्य स्थित पुरुष है, यही मनुष्य की समस्त कामनाओं को अपने अधीन रखता है, जो इस रहस्य को जानकर गायन करते हैं, वे इसी पुरुष (ब्रह्म) का गायन करते हैं। इसी के द्वारा उद्गाता सभी लोकों के समस्त भोगों की प्राप्त करता है।
*यही ब्रह्म है, यही आदित्य के मध्य स्थित पुरुष है, यही मनुष्य की समस्त कामनाओं को अपने अधीन रखता है, जो इस रहस्य को जानकर गायन करते हैं, वे इसी पुरुष (ब्रह्म) का गायन करते हैं। इसी के द्वारा उद्गाता सभी लोकों के समस्त भोगों की प्राप्त करता है।


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Latest revision as of 13:54, 12 August 2016

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-7
विवरण 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है।
अध्याय प्रथम
कुल खण्ड 13 (तेरह)
सम्बंधित वेद सामवेद
संबंधित लेख उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य
अन्य जानकारी सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं।

छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह सातवाँ खण्ड है। इसमें बताया गया है कि "अध्यात्मिक उपासना क्या है?"

  • इस खण्ड में अध्यात्मिक उपासना का वर्णन है।
  • वाणी-रूप ऋक् में प्राण-रूप साम, चक्षु-रूप ऋक् में आत्मा-रूप साम, श्रोत-रूप ऋक् में मन-रूप साम, नेत्रों की श्वेत आभा-रूप ऋक् में नील आभायुक्त स्याम-रूप साम, नेत्रों के मध्य स्थित पुरुष ही ऋक् और साम है।
  • यही ब्रह्म है, यही आदित्य के मध्य स्थित पुरुष है, यही मनुष्य की समस्त कामनाओं को अपने अधीन रखता है, जो इस रहस्य को जानकर गायन करते हैं, वे इसी पुरुष (ब्रह्म) का गायन करते हैं। इसी के द्वारा उद्गाता सभी लोकों के समस्त भोगों की प्राप्त करता है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1

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छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8

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