छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-12: Difference between revisions
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एक बार बकदालभ्य अथवा ग्लाब मैत्रेय स्वाध्याय के लिए जलाशय के निकट गये। वहां निर्मल श्वान का प्रकटीकरण हुआ। उससे कुछ अन्य विकारग्रस्त श्वान कहने लगे कि वे भूखे हैं। उनके लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करें। उसने सभी को प्रात:काल आने के लिए कहकर भेज दिया। दूसरे दिन प्रात:काल उनके आने पर सभी मिलकर प्रार्थना करने लगे- | |||
एक बार बकदालभ्य अथवा ग्लाब मैत्रेय स्वाध्याय के लिए जलाशय के निकट गये। वहां निर्मल श्वान का प्रकटीकरण हुआ। उससे कुछ अन्य विकारग्रस्त श्वान कहने लगे कि वे भूखे हैं। उनके लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करें। उसने सभी को प्रात:काल आने के लिए कहकर भेज दिया। दूसरे दिन प्रात:काल उनके आने पर सभी मिलकर प्रार्थना करने लगे- "ॐ हम भक्षण करें। ॐ हम पान करें। ॐ देव [[वरुण देवता|वरुण]], प्रजापति, [[सूर्यदेव]] यहाँ अन्न लाये हैं, अन्नपते! यहाँ अन्न लायें, यहाँ अन्न लायें।" | |||
Latest revision as of 12:54, 13 August 2016
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-12
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विवरण | 'छान्दोग्य उपनिषद' प्राचीनतम दस उपनिषदों में नवम एवं सबसे बृहदाकार है। नाम के अनुसार इस उपनिषद का आधार छन्द है। |
अध्याय | प्रथम |
कुल खण्ड | 13 (तेरह) |
सम्बंधित वेद | सामवेद |
संबंधित लेख | उपनिषद, वेद, वेदांग, वैदिक काल, संस्कृत साहित्य |
अन्य जानकारी | सामवेद की तलवकार शाखा में छान्दोग्य उपनिषद को मान्यता प्राप्त है। इसमें दस अध्याय हैं। इसके अन्तिम आठ अध्याय ही छान्दोग्य उपनिषद में लिये गये हैं। |
छान्दोग्य उपनिषद के अध्याय प्रथम का यह बारहवाँ खण्ड है। इस खण्ड में 'शौव' (शौवन) उद्गीथ का वर्णन है। 'शौवन' का अर्थ 'श्वान' (कुत्ता) से है, परन्तु यहाँ श्वान का अर्थ कुत्ते से नहीं, गतिशीलता से है। यह गतिशीलता ही 'प्राण' है।
- इस प्रसंग में ऋषिपुत्र स्वाध्याय प्रकृति के मध्य श्वेत (निर्मल) श्वान (प्राण-प्रवाह) से साक्षात्कार करते हैं। शुद्ध श्वान (प्राण) को उद्गीथ मानकर की गयी साधना फलित होती है।
- प्रसंग इस प्रकार है-
एक बार बकदालभ्य अथवा ग्लाब मैत्रेय स्वाध्याय के लिए जलाशय के निकट गये। वहां निर्मल श्वान का प्रकटीकरण हुआ। उससे कुछ अन्य विकारग्रस्त श्वान कहने लगे कि वे भूखे हैं। उनके लिए वे ईश्वर से प्रार्थना करें। उसने सभी को प्रात:काल आने के लिए कहकर भेज दिया। दूसरे दिन प्रात:काल उनके आने पर सभी मिलकर प्रार्थना करने लगे- "ॐ हम भक्षण करें। ॐ हम पान करें। ॐ देव वरुण, प्रजापति, सूर्यदेव यहाँ अन्न लाये हैं, अन्नपते! यहाँ अन्न लायें, यहाँ अन्न लायें।"
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 |
खण्ड-1 | खण्ड-2 | खण्ड-3 | खण्ड-4 | खण्ड-5 | खण्ड-6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 | खण्ड-10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 | खण्ड-14 | खण्ड-15 | खण्ड-16 | खण्ड-17 | खण्ड-18 | खण्ड-19 | खण्ड-20 | खण्ड-21 | खण्ड-22 | खण्ड-23 | खण्ड-24 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-3 |
खण्ड-1 से 5 | खण्ड-6 से 10 | खण्ड-11 | खण्ड-12 | खण्ड-13 से 19 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-4 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-5 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-6 |
खण्ड-1 से 2 | खण्ड-3 से 4 | खण्ड-5 से 6 | खण्ड-7 | खण्ड-8 | खण्ड-9 से 13 | खण्ड-14 से 16 |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-7 | |
छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-8 |