यू. यू. ललित: Difference between revisions

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==परिचय==
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Latest revision as of 05:43, 11 November 2022

यू. यू. ललित
पूरा नाम उदय उमेश ललित
जन्म 9 नवम्बर, 1957
जन्म भूमि सोलापुर, महाराष्ट्र
अभिभावक पिता- यू. आर. ललित
पति/पत्नी अमिता उदय ललित
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र भारतीय न्यायपालिका
शिक्षा लॉ ग्रेजुएट
विद्यालय गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, मुंबई
प्रसिद्धि 49वें मुख्य न्यायाधीश, भारत
नागरिकता भारतीय
संबंधित लेख भारत के मुख्य न्यायाधीश
पद मुख्य न्यायाधीश, भारत- 27 अगस्त, 2022 से 8 नवम्बर, 2022

न्यायाधीश, उच्चतम न्यायालय, भारत- 13 अगस्त, 2014 से 26 अगस्त, 2022

पूर्वाधिकारी एन. वी. रमण
उत्तराधिकारी डी. वाई. चन्द्रचूड़
भाषा अंग्रेज़ी, हिन्दी, मराठी
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उदय उमेश ललित (अंग्रेज़ी: Uday Umesh Lalit, जन्म- 9 नवम्बर, 1957) भारत के पूर्व 49वें मुख्य न्यायाधीश रहे हैं। उन्होंने पूर्व मुख्य न्ययाधीश एन. वी. रमण का स्थान लिया था। जस्टिस यू. यू. ललित ने 27 अगस्त, 2022 से भारत के मुख्य न्यायाधीश का पदभार ग्रहण किया और 8 नवम्बर, 2022 तक इस पद पर रहे। उनका कार्यकाल तीन महीने से भी कम समय का रहा। न्यायाधीश यू. यू. ललित कई हाई-प्रोफाइल केसेज़ से जुड़े रहे हैं। इसमें काला हिरण शिकार मामले में अभिनेता सलमान ख़ान का केस, भ्रष्टाचार के मामले में पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह का केस और अपनी जन्म तिथि से जुड़े एक मामले में पूर्व सेना प्रमुख जनरल वी. के. सिंह का केस भी शामिल है। यू. यू. ललित अमित शाह के वकील भी रह चुके हैं।

परिचय

9 नवंबर, 1957 में जन्म लेने वाले यू. यू. ललित 13 अगस्त, 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए थे। उससे पहले वह देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते थे। उन्हें सुप्रीम कोर्ट ने टू जी घोटाला मामले में विशेष पब्लिक प्रॉसिक्यूटर नियुक्त किया था। यू. यू. ललित के पिता यू. आर. ललित मुम्बई उच्च न्यायालय में अतिरिक्त जज रह चुके हैं। यू. आर. ललित देश के सबसे बड़े वकीलों में गिने जाते हैं। उनके दादा रंगनाथ ललित भी महाराष्ट्र के सोलापुर ज़िले के नामी वकीलों में से एक थे।

वकालत

जस्टिस यू. यू. ललित ने जून 1983 में वकालत की शुरुआत की थी। उन्होंने साल 1983 से साल 1985 तक मुम्बई उच्च न्यायालय में प्रैक्टिस की। साल 1986 से साल 1992 तक वह पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी के साथ भी काम कर चुके हैं। साल 2004 में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित किया।

यू. यू. ललित क्रिमिनल लॉ के स्पेशलिस्ट हैं। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत सभी 2जी मामलों में सीबीआई के पब्लिक प्रोसिक्यूटर के रूप में ट्रायल्स में हिस्सा लिया। इसके अलावा उन्होंने दो कार्यकालों के लिए सुप्रीम कोर्ट की लीगल सर्विस कमेटी के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। उन्हें 13 अगस्त, 2014 को सीधे बार से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया था। इसके बाद उन्हें मई 2021 में राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।[1]

कब आये चर्चा में

अपने कार्यकाल के दौरान जस्टिस यू. यू. ललित ने कई बार खुद को हाई-प्रोफाइल मामलों से अलग कर लिया। साल 2014 में उन्होंने याकूब मेनन की याचिका पर सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। इस याचिका में 1993 के मुंबई सीरियल ब्लास्ट मामले में मेनन की मौत की सजा को बरकरार रखने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश की समीक्षा की मांग की गई थी। साल 2015 में उन्होंने 2008 के मालेगांव विस्फोटों में निष्पक्ष सुनवाई की मांग करने वाली याचिका पर खुद को सुनवाई से अलग कर लिया, क्योंकि उन्होंने पहले एक आरोपी का बचाव किया था। साल 2016 में उन्होंने आसाराम बापू के मुकदमे में अभियोजन पक्ष के एक प्रमुख गवाह के लापता होने की जांच की मांग करने वाली याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया।

तीन तलाक को किया रद्द

सुप्रीम कोर्ट में अपने अब तक के कार्यकाल में जस्टिस यू. यू. ललित कई बड़े फैसलों के हिस्सा रहे हैं। 22 अगस्त, 2017 को 'तलाक-ए-बिद्दत' यानी एक साथ तीन तलाक बोलने की व्यवस्था को असंवैधानिक करार देने वाली पांच जजों की बेंच के वह सदस्य थे। इस मामले में जस्टिस रोहिंटन नरीमन के साथ लिखे साझा फैसले में उन्होंने कहा था कि इस्लाम में भी एक साथ तीन तलाक को गलत माना गया है। पुरुषों को हासिल एक साथ तीन तलाक बोलने का हक महिलाओं को गैर बराबरी की स्थिति में लाता है। ये महिलाओं के मौलिक अधिकार के खिलाफ है।[2]

राजद्रोह क़ानून पर नोटिस

30 अप्रैल, 2021 को जस्टिस ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर केंद्र को नोटिस जारी किया था। इस मामले में कोर्ट ने मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला की याचिका सुनने पर सहमति दी थी।

विजय माल्या को सज़ा

जस्टिस यू. यू. ललित ने अवमानना के मामले में भगोड़े कारोबारी विजय माल्या को 4 महीने की सज़ा दी थी। कोर्ट ने माल्या पर 2 हज़ार रुपए का जुर्माना भी लगाया था। यह भी कहा कि जुर्माना न चुकाने पर दो महीने की अतिरिक्त जेल काटनी होगी। बच्चों को यौन शोषण से बचाने पर भी जस्टिस ललित ने अहम आदेश दिया था। उनकी अध्यक्षता वाली बेंच ने माना कि सेक्सुअल मंशा से शरीर के सेक्सुअल हिस्से का स्पर्श पॉक्सो एक्ट का मामला है। यह नहीं कहा जा सकता कि कपड़े के ऊपर से बच्चे का स्पर्श यौन शोषण नहीं है।

आम्रपाली के फ्लैट खरीदारों को राहत

जस्टिस यू. यू. ललित उस बेंच में भी रहे जिसने 2019 में आम्रपाली के करीब 42,000 फ्लैट खरीदारों को बड़ी राहत दी थी। तब कोर्ट ने आदेश दिया था कि आम्रपाली के अधूरे प्रोजेक्ट को अब नेशनल बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन कॉरपोरेशन यानी एनबीसीसी पूरा करेगा। कोर्ट ने निवेशकों के साथ धोखाधड़ी करने वाले आम्रपाली ग्रुप की सभी बिल्डिंग कंपनियों का रेरा रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया। साथ ही, निवेशकों के पैसे के गबन और मनी लॉन्ड्रिंग की जांच का भी आदेश दिया था।[2]

एससी/एसटी एक्ट पर फैसला

अनुसूचित जाति/जनजाति उत्पीड़न एक्ट के तहत तुरंत गिरफ्तारी न करने का आदेश भी जस्टिस यू. यू. ललित की सदस्यता वाली बेंच ने दिया था। कोर्ट ने इस एक्ट के तहत आने वाली शिकायतों पर शुरुआती जांच के बाद ही मामला दर्ज करने का भी आदेश दिया था। हालांकि, बाद में केंद्र सरकार ने कानून में बदलाव कर तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान को दोबारा बहाल कर दिया था।

अयोध्या केस से खुद को किया अलग

10 जनवरी, 2019 को यू. यू. ललित ने खुद को अयोध्या मामले की सुनवाई कर रही पांच जजों की बेंच से खुद को अलग किया था। उन्होंने इस बात को आधार बनाया था कि करीब दो दशक पहले वह अयोध्या विवाद से जुड़े एक आपराधिक मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के लिए वकील के रूप में पेश हो चुके हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. कौन हैं जस्टिस यूयू ललित? (हिंदी) dnaindia.com। अभिगमन तिथि: 19 अगस्त, 2021।
  2. 2.0 2.1 यूयू ललित बने देश के 49वें चीफ जस्टिस (हिंदी) abplive.com। अभिगमन तिथि: 28 अगस्त, 2021।

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