तंजावुर: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "नक्काशी" to "नक़्क़ाशी") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 24: | Line 24: | ||
सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। | सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार= | |आधार= |
Revision as of 12:25, 10 January 2011
तमिलनाडु के पूर्वी मध्यकाल में तंजौर या तंजावूर नगरी चोल साम्राज्य की राजधानी के रुप में काफ़ी विख्यात थी। तंजौर को मन्दिरों की नगरी कहना उपयुक्त होगा क्योंकि यहाँ पर 75 छोटे-बड़े मन्दिर हैं।
स्थिति
वर्तमान में यह नगर चैन्नई से लगभग 218 मील दक्षिण-पश्चिम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है।
इतिहास
चोल वंश ने 400 वर्ष से भी अधिक समय तक तमिलनाडु पर राज किया। इस दौरान तंजावुर ने बहुत उन्नति की। इसके बाद नायक और मराठों ने यहाँ शासन किया। वे कला और संस्कृति के प्रशंसक थे। कला के प्रति उनका लगाव को उनके द्वारा बनवाई गई उत्कृष्ट इमारतों से साफ झलकता है।
- मन्दिर
तंजौर चोल शासक राजराज (985-1014ई.) द्वारा निर्मित भव्य वृहदेश्वर मन्दिर के लिए प्रसिद्ध है। इसका शिखर 190 फुट ऊँचा है। शिखर पर पहुँचने के लिए 14 मंज़िले हैं। यह मन्दिर भारतीय स्थापत्य का अदभुत नमूना है। यह चारों ओर से लम्बी परिखा से परिवेष्ठित है। इसमें एक विशाल शिवलिंग है। पत्थर का बनाया गया एक विशाल नंदी मन्दिर के सामने प्रतिष्ठित है। मन्दिर में विशाल तोरण एवं मण्डप हैं। यह वृहद् भवन आधार से चोटी तक नक़्क़ाशी और अलंकृत ढाँचों से सुसज्जित हैं। यह मन्दिर अन्य सहायक मन्दिरों के साथ एक प्रांगण के केन्द्र में स्थित है, किंतु सम्पूर्ण क्षेत्र उच्च शिखर द्वारा प्रभावित है। इसे राजराजेश्वर मन्दिर के नाम से भी जाना जाता है।
- चोल शासक
चोल शासकों के हाथों से कालांतर में तंजौर होयसल एवं पांड्य राज्यों के शासनाधीन हो गया। अलाउद्दीन खलजी के नायक मलिक काफूर ने इस पर आक्रमण कर लूटा। तदनंतर तंजौर विजय नगर साम्राज्य का अंग बन गया 16वीं शताब्दी में यहाँ नायक वंश ने अपना राज्य स्थापित कर लिया। फिर 1674ई. में मराठों ने इस पर अधिकार कर लिया। यहाँ से विभिन्न शासकों के अभिलेख, मुद्राएँ आदि प्राप्त हुई हैं। होयसल नरेश सोमेश्वर एवं रामनाथ के अभिलेख तंजौर से प्राप्त हुए हैं।
परिवहन
- हवाई मार्ग
यहाँ का निकटतम हवाई अड्डा त्रिची है जो यहाँ से 65 किमी. दूर है। इसके अलावा चैन्नई के रास्ते भी यहाँ पहुँच सकते हैं।
- सड़क मार्ग
तंजावुर तमिलनाडु के सभी प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है। इसके अतिरिक्त कोच्चि, एर्नाकुलम, तिरुवनंतपुरम और बैंगलोर से यहाँ सड़क मार्ग से पहुँचा जा सकता है।
- रेल मार्ग
तंजावुर का रेलवे जंक्शन त्रिची, चेन्नई और नागौर से सीधी रेलसेवा द्वारा जुड़ा हुआ है।
पर्यटन
- ब्रगदीश्वर मंदिर
यह मंदिर भारतीय शिल्प और वास्तु कला का अदभूत उदाहरण है। मंदिर के दो तरफ खाई है और एक ओर अनाईकट नदी बहती है। अन्य मंदिरों से अलग इस मंदिर में गर्भगृह के ऊपर बड़ी मीनार है जो 216 फुट ऊंची है। मीनार के ऊपर कांसे का स्तूप है। मंदिर की दीवारों पर चोल और नायक काल के चित्र बने हैं जो अजंता की गुफाओं की याद दिलाते हैं। मंदिर के अंदर नंदी बैल की विशालकाय प्रतिमा है। यह मूर्ति 12 फीट ऊंची है और इसका वजन 25 टन है।
- सरस्वती महल पुस्तकालय
इस पुस्तकालय में पांडुलिपियों का महत्त्वपूर्ण संग्रह है। इसकी स्थापना 1700 ईसवी के आस-पास की गई थी। इस संग्रहालय में भारतीय और यूरोपीयन भाषाओं में लिखी हुई 44000 से ज्यादा ताम्रपत्र और कागज़ की पांडुलिपियां देखने को मिलती हैं।
- महल
सुंदर और भव्य इमारतों की इस श्रृंखला में से कुछ का निर्माण नायक वंश ने 1550 ई. के आसपास कराया था और कुछ का निर्माण मराठों ने कराया था। दक्षिण में आठ मंजिला गुडापुरम है जो 190 फीट ऊंचा है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ