तात्या टोपे: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
(''''वीर केसरी तात्या टोपे / Tatya Topey'''<br /> {{incomplete}} सन 1857 के प्रथम ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
No edit summary |
||
Line 10: | Line 10: | ||
राजस्थान की भूमि में उसके जो शौर्य का परिचय दिया था वह अविस्मरणीय है। देश का दुर्भाग्य था कि राजस्थान के राजाओं ने उसका साथ नहीं दिया था। नाना साहब के साथ उसने 1 दिसम्बर से 6 दिसमबर 1857 तक कानपुर में अंग्रेजों के साथ घोर संग्राम किया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ भी वह कालपी में शत्रु सेना से लड़ा था। | राजस्थान की भूमि में उसके जो शौर्य का परिचय दिया था वह अविस्मरणीय है। देश का दुर्भाग्य था कि राजस्थान के राजाओं ने उसका साथ नहीं दिया था। नाना साहब के साथ उसने 1 दिसम्बर से 6 दिसमबर 1857 तक कानपुर में अंग्रेजों के साथ घोर संग्राम किया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ भी वह कालपी में शत्रु सेना से लड़ा था। | ||
इसी वीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि मानसिंह ने तात्या के साथ धोखा करके उसे अंग्रेजों को सुपुर्द कर दिया था। अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया था। लेकिन खोज से ये ज्ञात हुआ है कि फाँसी पर लटकाये जाने वाला दूसरा व्यक्ति था। असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहा। शोध से ज्ञात हुआ है कि 1862-82 की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम का सेनानी तात्या टोपे नारायण स्वामी के रूप में गोकुलपुर [[आगरा]] में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई मास रहा था। | इसी वीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि मानसिंह ने तात्या के साथ धोखा करके उसे अंग्रेजों को सुपुर्द कर दिया था। अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया था। लेकिन खोज से ये ज्ञात हुआ है कि फाँसी पर लटकाये जाने वाला दूसरा व्यक्ति था। असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहा। शोध से ज्ञात हुआ है कि 1862-82 की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम का सेनानी तात्या टोपे नारायण स्वामी के रूप में गोकुलपुर [[आगरा]] में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई मास रहा था। ये सभी तथ्य विवादास्पद हैं। | ||
[[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]] | [[Category:स्वतन्त्रता संग्राम 1857]] | ||
[[Category:इतिहास_कोश]] | [[Category:इतिहास_कोश]] | ||
[[Category:महाराष्ट्र]] | [[Category:महाराष्ट्र]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 07:01, 19 April 2010
वीर केसरी तात्या टोपे / Tatya Topey
40px | पन्ना बनने की प्रक्रिया में है। आप इसको तैयार करने में सहायता कर सकते हैं। |
सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के अग्रणीय वीरों में तात्या-टोपे को बड़ा उच्च स्थान प्राप्त है। इस वीर ने कई स्थानों पर अपने सैनिक अभियानों में उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात में अंग्रेजी सेनाओं से टक्कर ली थी और उन्हें परेशान कर दिया था। गोरिल्ला युद्ध प्रणाली को अपनाते हुए तात्या ने अंग्रेजी सेनाओं के कई स्थानों पर छक्के छुड़ा दिये थे।
महान वीर देशभक्त तात्या टोपे का जन्म सन 1814 नासिक, महाराष्ट्र में हुआ था। उसका असली नाम रामचन्द्र पांडुरंग था। तात्या शब्द का प्रयोग और अधिक प्यार के लिये होता था। पेशवा बाजीराम द्बितीय के यहाँ अपके पिता पुरोहित थे। उसका बालकाल बिठुर में पेशवा के दत्तक पुत्र नाना साहब और झाँसी की वीरांगन रानी लक्ष्मीबाई के साथ व्यतीत हुआ था। आगे चलकर 1857 में देश की स्वाधीनता के लिए तीनों ने जो आत्मोत्सर्ग किया था वह हमारे स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है।
सन 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के विस्फोट होने पर तात्या भी समरांगण में कूद गया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई और नाना साहब के प्रति अंग्रेजों ने जो अन्याय किये थे, उनकी उसके हृदय मे एक टीस थी। उसने उत्तरी भारत में शिवराजपुर, कानपुर, कालपी और ग्वालियर आदि अनेक स्थानों में अंग्रेजों की सेनाओं से कई बार लोहा लिया था। सन 1857 के स्वातंत्र्य योद्धाओं में वही ऐसा तेजस्वी वीर था जिसने विद्युत गति के समान अपनी गतिविधियों से शत्रु को आश्चर्य में ड़ाल दिया था। वही एकमात्र एसा चमत्कारी स्वतन्त्रता सेनानी था जिसमे पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के सैनिक अभियानों में फिरंगी अंग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये थे।
राजस्थान की भूमि में उसके जो शौर्य का परिचय दिया था वह अविस्मरणीय है। देश का दुर्भाग्य था कि राजस्थान के राजाओं ने उसका साथ नहीं दिया था। नाना साहब के साथ उसने 1 दिसम्बर से 6 दिसमबर 1857 तक कानपुर में अंग्रेजों के साथ घोर संग्राम किया था। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के साथ भी वह कालपी में शत्रु सेना से लड़ा था।
इसी वीर के सम्बन्ध में कहा जाता है कि मानसिंह ने तात्या के साथ धोखा करके उसे अंग्रेजों को सुपुर्द कर दिया था। अंग्रेजों ने उसे फांसी पर लटका दिया था। लेकिन खोज से ये ज्ञात हुआ है कि फाँसी पर लटकाये जाने वाला दूसरा व्यक्ति था। असली तात्या टोपे तो छद्मावेश में शत्रुओं से बचते हुए स्वतन्त्रता संग्राम के कई वर्ष बाद तक जीवित रहा। शोध से ज्ञात हुआ है कि 1862-82 की अवधि में स्वतन्त्रता संग्राम का सेनानी तात्या टोपे नारायण स्वामी के रूप में गोकुलपुर आगरा में स्थित सोमेश्वरनाथ के मन्दिर में कई मास रहा था। ये सभी तथ्य विवादास्पद हैं।