पान: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
m (श्रेणी:नया पन्ना (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 31: | Line 31: | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 11:44, 5 May 2011
पान, इसी नाम की लताविशेष का पत्ता है, जो भारत में सर्वत्र अतिथि की अभ्यर्थना का अत्यंत प्रचलित साधन है। यह अनुमान है कि पान का प्रसार जावा से हुआ। इसकी पैदावार उष्ण देश में सीली जमीन पर होती है। पान की कृषि भारत, श्रीलंका और बर्मा में होती है। इसमें ताप और जल का समान महत्त्व है। भारत के विभिन्न प्रदेशों में इसकी खेती की विभिन्न विधियाँ हैं।
लताओं की देखभाल
पान की लताओं की बड़ी सावधानी के साथ देखभाल करनी पड़ती है। इनमें कई प्रकार के रोग लग जाते हैं।
रोग
- पान के पत्तों पर काले दाग पड़ जाते हैं तथा इनका आकार धीरे-धीरे बढ़ता है और पत्ते नष्ट हो जाते हैं।
- पान के डंठलों का काला पड़ना और अंत में पत्तों का झड़ जाना।
- पत्तों का सूखकर मुरझाना।
- पत्तों के किनारे-किनारे लाली पड़ना।
- किनारों पर पत्तों का मुड़ना।
- अंगारी- यह रोग संक्रामक है। यह लता की गाँठ में होता है जिससे लता सूखकर काली हो जाती है। लता में रोग होते ही उसे उखाड़ फेंकना चाहिए और जड़ की काफ़ी मिट्टी भी फेंक देनी चाहिए, नहीं तो अन्य लताओं में भी रोग हो जाता है।
- गांदी- जिसमें लता की जड़ लाल हो जाती है और लता सूखने लगती है। इन रोगों में लता की मिट्टी में लहसुन का रस देना लाभदायक होता है।
लाभ
पान के अनेक लाभ हैं। यह सुगंधित, वायुहारी, धारक और उत्तेजक होता है। नि:श्वास को सुगंधित करता है और मुख के विकार नष्ट करता है। अनेक औषधों के अनुपान में पान का रस काम अता है। सिर के दर्द में पान के पत्तों को भिगो कर कनपटी पर रखना लाभदायक होता है। बच्चों के गुदा भाग में प्रयोग करने पर उनकी कोष्ठबद्धता दूर करता है।
हानिकारक
पान अधिक खाना हानिकारक है। अधिक पान मंदाग्निकारक है और दाँत, कान, केश, दृष्टि और शरीरबल का क्षयकारक है एवं पित्त और वायु की वृद्धि करता है। गाल और गले की सूजन में और फोड़ों पर तथा अनेक अन्य रोगों पर वैद्यक में पान का प्रयोग विहित है।
रस का सेवन
पान सुपारी के सेवन से पहली बार बना हुआ रस विषतुल्य है, दूसरी बार भेदक और दुर्जर है तथा तीसरी बार बना हुआ रस अमृतोपम रसायन होता है। अतएव पान का वही रस सेवन करना चाहिए जो तीसरी बार चबाने पर निकलता है। प्रात:काल के पान में सुपारी अधिक, दोपहर के समय कत्था अधिक और रात में चूना अधिक खाना चाहिए।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ