अनुग्रह नारायण सिंह: Difference between revisions

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==आधुनिक बिहार के निर्माता==
==आधुनिक बिहार के निर्माता==
[[बिहार]] के विकास में डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का योगदान अतुलनीय है। बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करना का काम अनुग्रह बाबू  ने किया था।प्रभावशाली पद पर होने के बावजूद उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया।बिहार के लिए उन्होंने बहुत से ऐसे काम किये थे, जिन्हें कभी भुलाया नही जा सकता है। उनके कार्यकाल में [[बिहार]] में उद्योग -धंधे का जाल बिछा। अनुग्रह बाबू ने राज्य के उप [[मुख्यमंत्री]] सह वित्त मंत्री  के रूप मे 13 वर्षो तक बिहार की अनवरत सेवा की।अनुग्रह बाबू का जीवन बहुत सादगी था।
[[बिहार]] के विकास में डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का योगदान अतुलनीय है। बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करना का काम अनुग्रह बाबू  ने किया था।प्रभावशाली पद पर होने के बावजूद उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया। उनके कार्यकाल में [[बिहार]] में उद्योग -धंधे का जाल बिछा। अनुग्रह बाबू ने राज्य के उप [[मुख्यमंत्री]] सह वित्त मंत्री  के रूप मे 13 वर्षो तक बिहार की अनवरत सेवा की।अनुग्रह नारायण सिंह घोर मानवतावादी प्रगतिशील विचारक एवं दलितों के उत्थान के प्रबल समर्थक और आधुनिक भारत के निर्माताआें में से एक थे। उनका जीवन दर्शन देश की अखंडतास्वतंत्रता और नवनिर्माण की भावनाआ से शराबोर रहा है। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख्सियत बिहार के जनगणमन पर अधिकार किए हुए था|वे शरीर से दुर्बल, कृषकाय थे, पर इस अर्थ में महाप्राण कोई संकट उनके ओठों की मुस्कुराहट नहीं छीन सका। उनमें शक्ति और शील एकाकार हो गये थे और इसीलिए वे बुद्धिजीवियों को विशेष प्रिय थे।


==स्वतंत्रता संग्राम==
==प्रारंभिक जीवन==
{{बाँयाबक्सा|पाठ="मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था।मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए काया] में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी होती गई।"- ''' देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद'''|विचारक=}}
अनुग्रह बाबू का जन्म औरंगाबाद जिले के पोईअवा नामक गांव में १८ जून १८८७ को हुआ । उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे। पांच बसंत जब वे पार कर गये तो उनकी शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। सन्‌ १९०० में औरंगाबाद मिडिल स्कूल,१९०४ में गया जिला स्कूल और १९०८ में पटना कॉलेज में प्रविष्ट हुए। जिस समय ये पटना कॉलेज में आये उस समय देश के शिक्षित व्यक्तियों के हृदय में परतंत्रता की वेदना का अनुभव होने लगा था। गुलामी की जंजीर में जक़डी हुई मानवता का चित्कार अब उन्हें सुनायी प़डने लगा था। वे उस जंजीर को त़ोड फेंकने के लिए व्याकुल होने लगे थे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद ऐसे महान आत्माआे का प्रादुर्भाव हो चुका था । इन महान आत्माआ के कार्य कलापों तथा व्याख्यानों का समुचित प्रभाव अनुग्रह बाबू के हृदय पर प़डा। उनका हृदय भी भारतमाता की सेवा के लिए त़डप उठा और वे उस पावन मार्ग पर अग्रसर हो गये। सर्फूद्दीन के नेतृत्व में ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न डॉ राजेन्द्र बाबू ऐसे मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।
[[चित्र:Champaran Satyagraha.jpg|thumb|220px|चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान डॉ. [[राजेन्द्र प्रसाद]] और अनुग्रह नारायण सिन्हा]]
इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध [[चम्पारण]] से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।बिहार-विभूति का [[भारत]] की आजादी में सहभागिता रही थी। उन्होंने [[महात्मा गांधी]] एवं डा. [[राजेन्द्र प्रसाद]] के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थे। अनुग्रह बाबू ने 34 दिनों तक साइकिल यात्रा करके नीलहों के खिलाफ किसानों को गोलबंद किया थाजिसका लोहा अंग्रेजों को मानना पड़ा।गांधी जी ने अपना प्रथम प्रयोग बिहार के चम्पारन ज़िले में किया जहाँ कृषकों की दशा बहुत ही दयनीय थी। ब्रिटिश लोगों ने बहुत सारी धरती पर नील की खेती आरम्भ कर दी थी जो उनके लिये लाभदायक थी। भूखे, नंगे, कृषक किरायेदार को नील उगाने के लिये ज़बरदस्ती की जाती। यदि वे उनकी आज्ञा नहीं मानते तो उन पर जुर्माना किया जाता और क्रूरता से यातनाएँ दी जाती एवं उनके खेत और घरों का नष्ट कर दिया जाता था।[[महात्मा गांधी]]जी को चम्पारन में हो रहे दमन पर विश्वास नहीं हुआ और वास्तविकता का पता लगाने वह कलकत्ता अधिवेशन के बाद स्वयं बिहार गये।डा अनुग्रह नारायण सिन्हा [[बिहार]] के निर्माता थे।वे देश के उन गिने-चुने सर्वाधिक लोकप्रिय नेताओं में से थे जिन्होंने अपने छात्र जीवन से लेकर अंतिम दिनों तक राष्ट्र और समाज की सेवा की। उन्होंने आधुनिक बिहार के निर्माण के लिए जो कार्य किया, उसके कारण लोग उन्हें प्यार से ''बिहार विभूति'' के नाम से पूकारते हैं। अनुग्रह बाबू [[बिहार]] [[विधानसभा]]  में 1937 से  लेकर 1957 तक कांग्रेस [[विधायक]] दल के उप नेता थे। प्रथम मुख्यमंत्री [[श्रीकृष्ण सिंह]] एवं उनकी जोड़ी मिसाल मानी जाती है। आजादी की लड़ाई में उनकी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। आजादी के बाद बिहार के विकास में उन्होंने महथी भूमिका निभाई। बिहार के निर्माण में उनका योगदान सराहनीय रहा है। अनुग्रह बाबू  [[2 जनवरी]], [[1946]] से अपनी मृत्यु तक बिहार के उप [[मुख्यमंत्री]] सह वित्त मंत्री  रहे।


==भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन==
{{बाँयाबक्सा|पाठ="मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था।मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए काया] में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी होती गई।"- ''' देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद'''|विचारक=}}इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध [[चम्पारण]] से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।अनुग्रह बाबू के हृदय में सेवा की उच्च भावना तो बाल्यकाल से ही था, उसे कार्य रूप में परिणत करने तथा उसे पूर्ण रूप से विकसित करने का सुअवसर भी उन्हें इस संगठन में प्रविष्ट होने पर मिल गया। सन्‌ १९१० में आई ए की परीक्षा भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की फिर बीए में प्रवेश किया। उसी वर्ष महामना पोलक साहब जो महात्मा गांधी के सहकर्मी थे, पटना पधारे, अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों के बारे में जो उनका व्याख्यान हुआ। उससे अनुग्रह बाबू बहुत प्रभावित हुए। उसी वर्ष प्रयाग में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन हुआ, जिसमें वे अपनी उत्साही सहपाठियों के साथ गये। उस अधिवेशन में महामना गोखले आदि विद्वान राष्ट्रभक्तों के भाषणों को सुनने का स्वर्ण अवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ, जिससे वे ब़डे प्रभावित हुए।अनुग्रह बाबू विद्यार्थी जीवन में ही संगठनशक्ति तथा कार्य संचालन की काबिलियत हासिल कर ली थी। सन्‌ १९१४ में इतिहास से एमए करने के बाद १९१५ में बी एल की परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भागलपुर के तेजनारायण जुविल कॉलेज में इतिहास के एक प्रोफेसर की आवश्यकता हुई। अपने साथियों के परामर्श करने के पश्चात तुरंत उन्होंने अपना आवेदन पत्र भेज दिया और उस पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। वर्ष १९१६ में उन्होंने कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पटना हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ कर दी। वकालत के सिलसिले में सरलता की मूर्ति देशरत्न राजेन्द्र बाबू के संसर्ग में अधिक रहने का सुअवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ और उनसे पेशे को उन्नत करने की प्रेरणा भी मिली। कलकत्ते में भी उन्हें राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में रहने का स्वर्ण अवसर मिला था। जिस समय राजेन्द्र बाबू लॉ कॉलेज में अध्यापक थे, उसी समय उसी कॉलेज में वे एक विद्यार्थी थे। इसलिये वे राजेन्द्र बाबू की प्रतिष्ठा किया करते थे। उन्होंने [[महात्मा गांधी]] एवं डा. [[राजेन्द्र प्रसाद]] के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
== गांधीजी का सत्याग्रह==
उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि चम्पारण में नील आंदोलन उठ ख़डा हुआ । इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। चम्पारण के किसानों की तबाही का समाचार जब [[महात्मा गांधी]] से सुने तो वे करुणा से विचलित हो उठे। मुजफ्फरपुर के कमिश्नर की राय के विरुद्ध गांधीजी चम्पारण गये और जांच कार्य प्रारंभ कर दिया।
[[चित्र:Champaran Satyagraha.jpg|thumb|220px|चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान डॉ. [[राजेन्द्र प्रसाद]] और अनुग्रह नारायण सिन्हा]] अत्याचारों की जांच प्रारंभ हुई । इसमें कुछ ऐसे वकीलों की आवश्यकता थी, जो निर्भीकता पूर्वक कार्य कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें। इस विकट कार्य के लिए वृज किशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेन्द्र बाबू के साथ ही अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये। उन्होंने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की कि उनका पेशा नया है और उन्हें भारी क्षति उठानी प़ड सकती है। एक बार जो त्याग के मार्ग पर आगे ब़ढ चुका है, उसे भला इन तुच्छ चीजों का क्या भय हो सकता है। चम्पारण का किसान आंदोलन ४५ महीनों तक जोरशोर से चलता रहा। अनुग्रह बाबू बराबर उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे । स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें गांधीजी के आश्रम में ही रहकर प़ढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार १९१७ में पटना आये। बापू के साथ रहने से उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल बना। सन्‌ १९२० के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया। सन्‌ १९२९ के दिसंबर में सरदार पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे। २६ जनवरी १९३० को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा प़ढी गई। अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषण पत्र प़ढना प़ढा । कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। उस सिलसिले में उन्हें चम्पारण, मुजफ्फरपुर आदि स्थानों का दौरा करना प़डा । २६ जनवरी, १९३३ को जब पटना में घोषणा प़ढ रहे थे, उसी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पंद्रह मास की सजा हुई और उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया। जिस समय वे जेल में थे, बिहार में इतिहास विख्यात प्रलयंकारी भूकंप आया। हृदय विदारक समाचारों को प़ढकर उनका हृदय दर्द से कराह उठा। चहारदीवारी के अंदर बंद रहने के कारण ये कोई राहत कार्य नहीं कर सकते थे। लेकिन सरकार ने तीन हफ्तों के बाद इन्हें छ़ोड दिया। छूटते ही अनुग्रह बाबू राहत कार्य में संलग्न हो गये। राजेन्द्र बाबू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन्होंने अथक परिश्रम के साथ पी़डत मानवता की सेवा की। मुजफ्फरपुर, मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया । इसके लिये राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसके उपाध्यक्ष अनुग्रह बाबू ही चुने गये तथा खूब लगन के साथ सेवा कार्य किया।सन्‌ १९४० को मार्च महीने में अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन रामग़ढ में हुआ। अधिवेशन का संपूर्ण भार अनुग्रह बाबू के कंधे पर था। उसमें जो अपनी तत्परता दिखलाई उसके फलस्वरूप ही कांग्रेस का अधिवेशन सफल हुआ। देश की परिस्थिति को देखते हुए जब गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह अपनाया तब उनके प्रिय सहयोगी अनुग्रह बाबू कब चूकने वाले थे। फलस्वरूप १९४० को वह गिरफ्तार कर लिये गये और अगस्त १९४१ में रिहा हुए। गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा बुलंद हुआ। ७ अगस्त, १९४२ को गांधीजी गिरफ्तार किये गये। सारे देश में एक बार ही बिजली की तरह आंदोलन की आग फैल गई। कांग्रेस कमिटियां जब्त कर ली गई और कांग्रेस नेता जहां के तहां गिरफ्तार कर लिये गये। १० अगस्त को अनुग्रह बाबू भी जब अपने मित्रों से मिलने गये, एकाएक मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये। सन्‌ १९४४ में जब सारे कांग्रेसी नेता जेल से मुक्त किये जाने लगे, तो अनुग्रह बाबू भी कारावास की कैद से आजाद कर दिये गये।
==संदर्भ==
==संदर्भ==
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Revision as of 06:41, 19 June 2011

अनुग्रह नारायण सिंह
पूरा नाम अनुग्रह नारायण सिंह
अन्य नाम अनुग्रह बाबू
जन्म 18 जून ,1887
जन्म भूमि बिहार
मृत्यु 05 जुलाई,1957
मृत्यु स्थान पटना
नागरिकता भारतीय
पार्टी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस
पद बिहार के प्रथम उप मुख्यमंत्री
कार्य काल 2 जनवरी, 1946 से 05 जुलाई,1957
शिक्षा स्नातक, बी. एल., क़ानून में मास्टर डिग्री और डॉक्टरेट
विद्यालय कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रेसीडेंसी कॉलेज (कलकत्ता)
भाषा हिन्दी,अंग्रेज़ी
पुरस्कार-उपाधि बिहार विभूति
विशेष योगदान भारत की स्वतन्त्रता, अहिंसक आन्दोलन, सत्याग्रह
संबंधित लेख असहयोग आंदोलन, नमक सत्याग्रह आदि

डा अनुग्रह नारायण सिंह एक भारतीय राजनेता और बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री (1946-1957) थे। अनुग्रह बाबू (1887-1957) भारत के स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक तथा राजनीतिज्ञ रहे हैं। लोकप्रियता के कारण उन्हें बिहार विभूति के रूप में जाना जाता था।वह स्वाधीनता आंदोलन के महान योद्धा थे।स्वाधीनता के बाद राष्ट्र निर्माण व जनकल्याण के कार्यो में उन्होंने सक्रिय योगदान दिया। अनुग्रह बाबू का निधन उनके निवास स्थान पटना मे बीमारी के कारण हुआ। उनके सम्मान मे तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सात दिन का राजकीय शोक घोषित किया, उनके अन्तिम संस्कार में विशाल जनसमूह उपस्थित था।

आधुनिक बिहार के निर्माता

बिहार के विकास में डा अनुग्रह नारायण सिन्हा का योगदान अतुलनीय है। बिहार के प्रशासनिक ढांचा को तैयार करना का काम अनुग्रह बाबू ने किया था।प्रभावशाली पद पर होने के बावजूद उन्होंने अपना पूरा जीवन सादगी से बिताया। उनके कार्यकाल में बिहार में उद्योग -धंधे का जाल बिछा। अनुग्रह बाबू ने राज्य के उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री के रूप मे 13 वर्षो तक बिहार की अनवरत सेवा की।अनुग्रह नारायण सिंह घोर मानवतावादी प्रगतिशील विचारक एवं दलितों के उत्थान के प्रबल समर्थक और आधुनिक भारत के निर्माताआें में से एक थे। उनका जीवन दर्शन देश की अखंडतास्वतंत्रता और नवनिर्माण की भावनाआ से शराबोर रहा है। उनका सौभ्य, स्निग्ध, शीतल, परोपकारी, अहंकारहीन और दर्पोदीप्त शख्सियत बिहार के जनगणमन पर अधिकार किए हुए था|वे शरीर से दुर्बल, कृषकाय थे, पर इस अर्थ में महाप्राण कोई संकट उनके ओठों की मुस्कुराहट नहीं छीन सका। उनमें शक्ति और शील एकाकार हो गये थे और इसीलिए वे बुद्धिजीवियों को विशेष प्रिय थे।

प्रारंभिक जीवन

अनुग्रह बाबू का जन्म औरंगाबाद जिले के पोईअवा नामक गांव में १८ जून १८८७ को हुआ । उनके पिता ठाकुर विशेश्वर दयाल सिंह जी अपने इलाके के एक वीर पुरुष थे। पांच बसंत जब वे पार कर गये तो उनकी शिक्षा का श्रीगणेश हुआ। सन्‌ १९०० में औरंगाबाद मिडिल स्कूल,१९०४ में गया जिला स्कूल और १९०८ में पटना कॉलेज में प्रविष्ट हुए। जिस समय ये पटना कॉलेज में आये उस समय देश के शिक्षित व्यक्तियों के हृदय में परतंत्रता की वेदना का अनुभव होने लगा था। गुलामी की जंजीर में जक़डी हुई मानवता का चित्कार अब उन्हें सुनायी प़डने लगा था। वे उस जंजीर को त़ोड फेंकने के लिए व्याकुल होने लगे थे। सुरेन्द्रनाथ बनर्जी तथा योगिराज अरविंद ऐसे महान आत्माआे का प्रादुर्भाव हो चुका था । इन महान आत्माआ के कार्य कलापों तथा व्याख्यानों का समुचित प्रभाव अनुग्रह बाबू के हृदय पर प़डा। उनका हृदय भी भारतमाता की सेवा के लिए त़डप उठा और वे उस पावन मार्ग पर अग्रसर हो गये। सर्फूद्दीन के नेतृत्व में ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ नामक संस्था संगठित की गई, जिसमें देशरत्न डॉ राजेन्द्र बाबू ऐसे मेधावी छात्रों को कार्य करने तथा नेतृत्व करने का सुअवसर प्राप्त हुआ।

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन

चित्र:Blockquote-open.gif "मेरा परिचय अनुग्रह बाबू से बिहारी छात्र सम्मेलन में ही पहले पहल हुआ था।मैं उनकी संगठन शक्ति और हाथ में आए हुए काया] में उत्साह देखकर मुग्ध हो गया और वह भावना समय बीतने से कम न होकर अधिक गहरी होती गई।"- देशरत्न डॉ. राजेन्द्र प्रसाद चित्र:Blockquote-close.gif

इन्होंने अंग्रेजों के विरूद्ध चम्पारण से अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।अनुग्रह बाबू के हृदय में सेवा की उच्च भावना तो बाल्यकाल से ही था, उसे कार्य रूप में परिणत करने तथा उसे पूर्ण रूप से विकसित करने का सुअवसर भी उन्हें इस संगठन में प्रविष्ट होने पर मिल गया। सन्‌ १९१० में आई ए की परीक्षा भी उन्होंने प्रथम श्रेणी में पास की फिर बीए में प्रवेश किया। उसी वर्ष महामना पोलक साहब जो महात्मा गांधी के सहकर्मी थे, पटना पधारे, अफ्रीका के प्रवासी भारतीयों के बारे में जो उनका व्याख्यान हुआ। उससे अनुग्रह बाबू बहुत प्रभावित हुए। उसी वर्ष प्रयाग में अखिल भारतीय कांग्रेस अधिवेशन हुआ, जिसमें वे अपनी उत्साही सहपाठियों के साथ गये। उस अधिवेशन में महामना गोखले आदि विद्वान राष्ट्रभक्तों के भाषणों को सुनने का स्वर्ण अवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ, जिससे वे ब़डे प्रभावित हुए।अनुग्रह बाबू विद्यार्थी जीवन में ही संगठनशक्ति तथा कार्य संचालन की काबिलियत हासिल कर ली थी। सन्‌ १९१४ में इतिहास से एमए करने के बाद १९१५ में बी एल की परीक्षा में भी सफलता प्राप्त की। भागलपुर के तेजनारायण जुविल कॉलेज में इतिहास के एक प्रोफेसर की आवश्यकता हुई। अपने साथियों के परामर्श करने के पश्चात तुरंत उन्होंने अपना आवेदन पत्र भेज दिया और उस पद पर उनकी नियुक्ति हो गई। वर्ष १९१६ में उन्होंने कॉलेज की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और पटना हाईकोर्ट में वकालत प्रारंभ कर दी। वकालत के सिलसिले में सरलता की मूर्ति देशरत्न राजेन्द्र बाबू के संसर्ग में अधिक रहने का सुअवसर भी इन्हें प्राप्त हुआ और उनसे पेशे को उन्नत करने की प्रेरणा भी मिली। कलकत्ते में भी उन्हें राजेन्द्र बाबू के सम्पर्क में रहने का स्वर्ण अवसर मिला था। जिस समय राजेन्द्र बाबू लॉ कॉलेज में अध्यापक थे, उसी समय उसी कॉलेज में वे एक विद्यार्थी थे। इसलिये वे राजेन्द्र बाबू की प्रतिष्ठा किया करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी एवं डा. राजेन्द्र प्रसाद के साथ राष्ट्रीय आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

गांधीजी का सत्याग्रह

उन्हें वकालत करते हुए अभी एक वर्ष भी नहीं बीता था कि चम्पारण में नील आंदोलन उठ ख़डा हुआ । इस आंदोलन ने उनके जीवन की धारा ही बदल दी। चम्पारण के किसानों की तबाही का समाचार जब महात्मा गांधी से सुने तो वे करुणा से विचलित हो उठे। मुजफ्फरपुर के कमिश्नर की राय के विरुद्ध गांधीजी चम्पारण गये और जांच कार्य प्रारंभ कर दिया। [[चित्र:Champaran Satyagraha.jpg|thumb|220px|चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और अनुग्रह नारायण सिन्हा]] अत्याचारों की जांच प्रारंभ हुई । इसमें कुछ ऐसे वकीलों की आवश्यकता थी, जो निर्भीकता पूर्वक कार्य कर सकें और समय आने पर जेल जाने के लिए भी तैयार रहें। इस विकट कार्य के लिए वृज किशोर बाबू के प्रोत्साहन पर राजेन्द्र बाबू के साथ ही अनुग्रह बाबू भी तत्पर हो गये। उन्होंने इसकी तनिक भी चिंता नहीं की कि उनका पेशा नया है और उन्हें भारी क्षति उठानी प़ड सकती है। एक बार जो त्याग के मार्ग पर आगे ब़ढ चुका है, उसे भला इन तुच्छ चीजों का क्या भय हो सकता है। चम्पारण का किसान आंदोलन ४५ महीनों तक जोरशोर से चलता रहा। अनुग्रह बाबू बराबर उसमें काम करते रहे और आखिर तक डटे रहे । स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का पाठ उन्हें गांधीजी के आश्रम में ही रहकर प़ढने का सुअवसर प्राप्त हुआ। अनुग्रह बाबू ने चम्पारण के नील आंदोलन में गांधीजी के साथ लगन और निर्भीकता के साथ काम किया और आंदोलन को सफल बनाकर उनके आदेशानुसार १९१७ में पटना आये। बापू के साथ रहने से उन्हें जो आत्मिक बल प्राप्त हुआ, वही इनके जीवन का संबल बना। सन्‌ १९२० के दिसंबर में नागपुर में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन हुआ, जिसमें अनुग्रह बाबू ने भी भाग लिया। सन्‌ १९२९ के दिसंबर में सरदार पटेल ने किसान संगठन के सिलसिले में मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया, तब अनुग्रह बाबू सभी जगह उनके साथ थे। २६ जनवरी १९३० को सारे देश में स्वतंत्रता की घोषणा प़ढी गई। अनुग्रह बाबू को भी कई स्थानों में घोषण पत्र प़ढना प़ढा । कुछ दिनों के बाद महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह आंदोलन शुरू कर दिया। उस सिलसिले में उन्हें चम्पारण, मुजफ्फरपुर आदि स्थानों का दौरा करना प़डा । २६ जनवरी, १९३३ को जब पटना में घोषणा प़ढ रहे थे, उसी समय उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें पंद्रह मास की सजा हुई और उन्हें हजारीबाग जेल भेज दिया गया। जिस समय वे जेल में थे, बिहार में इतिहास विख्यात प्रलयंकारी भूकंप आया। हृदय विदारक समाचारों को प़ढकर उनका हृदय दर्द से कराह उठा। चहारदीवारी के अंदर बंद रहने के कारण ये कोई राहत कार्य नहीं कर सकते थे। लेकिन सरकार ने तीन हफ्तों के बाद इन्हें छ़ोड दिया। छूटते ही अनुग्रह बाबू राहत कार्य में संलग्न हो गये। राजेन्द्र बाबू के साथ कंधे से कंधा मिलाकर इन्होंने अथक परिश्रम के साथ पी़डत मानवता की सेवा की। मुजफ्फरपुर, मुंगेर आदि शहरों का दौरा किया । इसके लिये राजेन्द्र बाबू की अध्यक्षता में एक कमेटी बनी, जिसके उपाध्यक्ष अनुग्रह बाबू ही चुने गये तथा खूब लगन के साथ सेवा कार्य किया।सन्‌ १९४० को मार्च महीने में अखिल भारतीय कांग्रेस का अधिवेशन रामग़ढ में हुआ। अधिवेशन का संपूर्ण भार अनुग्रह बाबू के कंधे पर था। उसमें जो अपनी तत्परता दिखलाई उसके फलस्वरूप ही कांग्रेस का अधिवेशन सफल हुआ। देश की परिस्थिति को देखते हुए जब गांधीजी ने व्यक्तिगत सत्याग्रह अपनाया तब उनके प्रिय सहयोगी अनुग्रह बाबू कब चूकने वाले थे। फलस्वरूप १९४० को वह गिरफ्तार कर लिये गये और अगस्त १९४१ में रिहा हुए। गांधीजी का ‘करो या मरो’ का नारा बुलंद हुआ। ७ अगस्त, १९४२ को गांधीजी गिरफ्तार किये गये। सारे देश में एक बार ही बिजली की तरह आंदोलन की आग फैल गई। कांग्रेस कमिटियां जब्त कर ली गई और कांग्रेस नेता जहां के तहां गिरफ्तार कर लिये गये। १० अगस्त को अनुग्रह बाबू भी जब अपने मित्रों से मिलने गये, एकाएक मार्ग में ही गिरफ्तार कर लिये गये। सन्‌ १९४४ में जब सारे कांग्रेसी नेता जेल से मुक्त किये जाने लगे, तो अनुग्रह बाबू भी कारावास की कैद से आजाद कर दिये गये।


संदर्भ

  1. REDIRECT साँचा:टिप्पणीसूची

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