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*पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार [[भारत]] में कांच निर्माण के प्राचीनतम प्रमाण यहीं से प्राप्त होते हैं। इसके अंतर्गत एक स्तूपाकार निर्माण के एक सिरे से [[आग]] लगाई जाती है और दूसरे सिरे से सिलिका ढाला जाता है।  
*पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार [[भारत]] में कांच निर्माण के प्राचीनतम प्रमाण यहीं से प्राप्त होते हैं। इसके अंतर्गत एक स्तूपाकार निर्माण के एक सिरे से [[आग]] लगाई जाती है और दूसरे सिरे से सिलिका ढाला जाता है।  
*डॉ.कानूनगो के अनुसार, उत्तर [[भारत]] कांच निर्माण के क्षेत्र में ज़्यादा विकसित था। ई.पू. 400 से 300 ई. के दौरान कोपिया इसका महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इसके उत्पाद दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में निर्यात होते थे।  
*डॉ.कानूनगो के अनुसार, उत्तर [[भारत]] कांच निर्माण के क्षेत्र में ज़्यादा विकसित था। ई.पू. 400 से 300 ई. के दौरान कोपिया इसका महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इसके उत्पाद दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में निर्यात होते थे।  
*कोपिया गाँव का कांच उद्योग पहली सदी में [[रोम]] के कांच उद्योग जितना उन्नत था। डॉ. कानूनगो के शुरुआती निष्कर्ष इस प्रचलित अवधारणा का खण्डन करते हैं कि भारत का प्राचीन कांच उद्योग दक्षिण भारतीय क्षेत्रों, खासकर अरिकमेडु जैसी जगहों पर था। जिसके रोम के सम्पर्क के प्रमाण मिलते हैं।
*कोपिया गाँव का कांच उद्योग पहली सदी में [[रोम]] के कांच उद्योग जितना उन्नत था। डॉ. कानूनगो के शुरुआती निष्कर्ष इस प्रचलित अवधारणा का खण्डन करते हैं कि भारत का प्राचीन कांच उद्योग दक्षिण भारतीय क्षेत्रों, ख़ासकर अरिकमेडु जैसी जगहों पर था। जिसके रोम के सम्पर्क के प्रमाण मिलते हैं।
*कोपिया गाँव के उत्खनन से प्राप्त सिक्कों तथा मिट्टी के बर्तनों पर कुषाण शासक [[विम कडफ़ाइसिस]] का प्रयुक्त ‘नंदीपद’ (ऊँ) जैसी आकृति भी अंकित है। इसके अलावा [[टेराकोटा]] और धातुनिर्मित सामग्री मिली है तथा दो दर्जन से अधिक कांच के मनके भी प्राप्त हुए हैं।  
*कोपिया गाँव के उत्खनन से प्राप्त सिक्कों तथा मिट्टी के बर्तनों पर कुषाण शासक [[विम कडफ़ाइसिस]] का प्रयुक्त ‘नंदीपद’ (ऊँ) जैसी आकृति भी अंकित है। इसके अलावा [[टेराकोटा]] और धातुनिर्मित सामग्री मिली है तथा दो दर्जन से अधिक कांच के मनके भी प्राप्त हुए हैं।  



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  • कोपिया गाँव उत्तर प्रदेश में संत कबीरनगर ज़िले में खलीलाबाद से 12 किलोमीटर उत्तर में स्थित में है।
  • कोपिया गाँव में पुणे स्थित पुरातात्त्विक अध्ययन के प्रमुख केन्द्र डेक्कन कॉलेज के सहयोग से डॉ. आलोक कानूनगो के नेतृत्व में उत्खनन कार्य से इस स्थल पर प्रकाश पड़ा।
  • अब तक प्राप्त जानकारी के आधार पर कहा जा सकता है कि कोलिया गाँव एक विकसित स्थल था। खुदाई के दौरान बड़ी मात्रा में मिले कांच के टुकड़े, चूड़ियों के टुकड़े धातु गलाने वाले पात्र, जिसमें शीशापड़ा हुआ मिला है। इस बात से प्रमाण हैं कि यहाँ कांच उद्योग फल-फूल रहा था।
  • पुरातत्त्ववेत्ताओं के अनुसार भारत में कांच निर्माण के प्राचीनतम प्रमाण यहीं से प्राप्त होते हैं। इसके अंतर्गत एक स्तूपाकार निर्माण के एक सिरे से आग लगाई जाती है और दूसरे सिरे से सिलिका ढाला जाता है।
  • डॉ.कानूनगो के अनुसार, उत्तर भारत कांच निर्माण के क्षेत्र में ज़्यादा विकसित था। ई.पू. 400 से 300 ई. के दौरान कोपिया इसका महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। इसके उत्पाद दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों में निर्यात होते थे।
  • कोपिया गाँव का कांच उद्योग पहली सदी में रोम के कांच उद्योग जितना उन्नत था। डॉ. कानूनगो के शुरुआती निष्कर्ष इस प्रचलित अवधारणा का खण्डन करते हैं कि भारत का प्राचीन कांच उद्योग दक्षिण भारतीय क्षेत्रों, ख़ासकर अरिकमेडु जैसी जगहों पर था। जिसके रोम के सम्पर्क के प्रमाण मिलते हैं।
  • कोपिया गाँव के उत्खनन से प्राप्त सिक्कों तथा मिट्टी के बर्तनों पर कुषाण शासक विम कडफ़ाइसिस का प्रयुक्त ‘नंदीपद’ (ऊँ) जैसी आकृति भी अंकित है। इसके अलावा टेराकोटा और धातुनिर्मित सामग्री मिली है तथा दो दर्जन से अधिक कांच के मनके भी प्राप्त हुए हैं।



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