छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-2 खण्ड-24: Difference between revisions

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Revision as of 14:58, 8 September 2011

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  • यज्ञ के तीन काल
  • इस खण्ड में यज्ञ के तीन-प्राप्त:, मध्याह्न और सांय- सवनों के माध्यम से जीवन के तीन कालों में किये गये साधनात्मक पुरुषार्थ का उल्लेख है।
  • ब्रह्मवादी कहते हैं कि प्रात:काल का सवन वसुगणों का है, मध्याह्न का रुद्रगणों का और सन्ध्या का आदित्यगणों का तथा विश्वदेवों का है। प्रात:काल यजमान गार्हयत्याग्नि के पीछे उत्तराभिमुख बैठकर वसुदेवों के साम का गान करता है-'हे अग्निदेव!आप हमें लौकिक सम्पदा प्रदान करें, आप हमें यह लोक प्राप्त करायें। आप हमें मृत्यु के पश्चात पुण्यलोक को प्राप्त करायें।'
  • इस प्रकार यजमान स्वर्ग, अन्तरिक्ष, अन्तरिक्ष की विभूतियां तथा पुण्यलोक की प्राप्ति की कामना करता है। यही यजमानलोक है। स्वर्गलोक की प्राप्ति हेतु सभी सीमाओं को प्राप्त करने की प्रार्थना यजमान करता है और 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के अनुरूप ज्ञान और प्रेरणा का संचार करता है।


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