तैत्तिरीयोपनिषद शिक्षावल्ली अनुवाक-10: Difference between revisions
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Revision as of 14:46, 11 September 2011
- तैत्तिरीयोपनिषद के शिक्षावल्ली का यह दसवाँ अनुवाक है।
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- इस अनुवाक में त्रिशंकु ऋषि अपने ज्ञान-अनुभव द्वारा स्वयं को ही अमृत-स्वरूप इस विश्व-रूपी वृक्ष के ज्ञाता सिद्ध करते हैं और अपने यश को सबसे ऊंचे गिरि शिखर से भी ऊंचा मानते हैं।
- वे स्वयं को अमृत-स्वरूप अन्नोत्पादक सूर्य में व्याप्त मानते हैं यहाँ ऋषि की स्थिति वही है, जब एक ब्रह्मवेत्ता, ब्रह्म से साक्षात्कार करने के उपरान्त स्वयं को ही 'अहम ब्रह्मास्मि', अर्थात 'मैं ही ब्रह्म हूं' कहने लगता है।
- अद्वैत भाव से वह 'ब्रह्म' से अलग नहीं होता।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
तैत्तिरीयोपनिषद ब्रह्मानन्दवल्ली |
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