अर्ज़ियाँ -कुलदीप शर्मा: Difference between revisions

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<poem> वह एक बड़ा अफसर है


डस बड़े से दफ्तर में
डस बड़े से दफ्तर में

Revision as of 15:04, 29 December 2011

अर्ज़ियाँ -कुलदीप शर्मा
कवि कुलदीप शर्मा
जन्म स्थान (ऊना, हिमाचल प्रदेश)
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची
कुलदीप शर्मा की रचनाएँ

 वह एक बड़ा अफसर है

डस बड़े से दफ्तर में

जहॉं बहुत सारे लोग

ताँता लगा देते हैं हर रोज़

अपनी अर्जियों के साथ

अर्जियों में भरपूर कोशिश से

लिखवाते हैं

अपनी दु:खभरी कहानियाँ

अपनी सारी व्यग्रता, सारा असंतोष

प्रार्थनाओं से भरा मन

उंडेल देते हैं अर्जियों में

देवता के यहां

मन्नत मांग कर आते हैं वे

अर्जियां देने से पहले

इस उम्मीद के साथ

कि पढ़ी जाएँगी वे सारी

और पढ़ी गई

तो यकीनन निजात पाएँगे

वे अपने दु:ख स़े

रूठी हुई खुषियों को पतियाकर

लौटा ही लाएंगे किसी तरह

वे समझते हैं

भाग्य बदलने के लिए जरूरी है

लिखी जाएं अर्जियां

अर्जियों से या

अर्जियों की ही तरह

लिखा जाता है भाग्य

बड़ा अफसर

इत्मीनान से पढ़ता हैं सारी अर्जियाँ

डतनी देर

एक ओर हाथ बाँधे खड़ा रहता है

सारा आक्रोश सारा असंतोष

समर्पण और जिज्ञासा की मुद्रा में

उतनी देर में जिमणू चपरासी

ढो चुका होता है

कितनी ही फाईलें

बराबर बुड़बुड़ाता हुआ

बड़ा अफसर

डसी बड़े मेज़ पर से

जारी करता है आदेष

कि दूर किये जाएँ सारे दु:ख़

मुश्किल यह है

कि उनके जीवन में

होता है जितना दु:ख

उतना लिख नहीं पाता है अर्जीनवीस

जितना लिख पाता है अर्जीनवीस

उतना पढ़ नहीं पाता है अफसर!

डसके बड़े से मेज़ पर

तरतीबदार रखी फाईलों से

थोड़ा छुपकर

घात लगाए

बैठा रहता है चालाक समय

और हर कार्रवाई पर बराबर

जमाए रखता है गिद्घदृष्टि

कि कब निकले फाईल

ओर कब झोंकूँ उसकी ऑंखों में धूल

यही है जो नहीं पढ़ने देता

अफसर को सारा दु:ख

इतने ताकतवर चश्मे के बावजूद

कि तब तक अर्जियों में

सपना डाल कर निकले लोग

जमा हो जाते हैं

चाय वाले रोशनू की रेहड़ी के गिर्द

अपनी अपनी अर्जियों की

ईबारतें दोहराते हुए मन ही मऩ

इन्हें खुश देख

रोशनू के हाथ तेज़ 2 चलते हैं

चाय के खौलते पानी की पतीली

और चीनी वाले डिब्बे के बीच़

अफसर पर एक निरापद

चुटकुला कसते हुए

उबलती चायपत्ती की महक से सराबोर

एक ठहाके के साथ

छिटका कर दूर गिरा देते है सारा तनाव

झटके के साथ लौट आते हैं

सहज मुद्रा में

अदालत में मनमर्र्जी की तारीख मिल जाने पर

रहते हैं उमंग में।

जैसे न्याय तक पहुँचाने वाले रास्ते का

मिल गया हो सुराग़

उन लोगों की जेब में हैं

कुछ गिने चुने षब्द

एक निश्छल दिल

थोड़े से पैसे

और नेक इरादे की खनक

इन से ही चलाएँगे

घर गृहस्थी और जीवऩ

जो जीवन भर उलीचते रहेंगे रेत

कि भाग्य की तरह निकलेगा पानी

मैंने कब कहा

कि इसके बाद नहीं लिखेंगे वे अर्जियाँ

इसी तरह लिखी जाएंगी वे

इसी तरह पढ़ी जाएंगी

इसी तरह बनता जाएगा

दु:ख का लम्बा इतिहास़


टीका टिप्पणी और संदर्भ

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