Difference between revisions of "गांधारी से संवाद (1) -कुलदीप शर्मा"

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पर अगर लड़ो तो
 
पर अगर लड़ो तो
 
निश्चय ही अंत में जीत  
 
निश्चय ही अंत में जीत  
तुम्हारे पक्ष में चली आती है
+
तुम्हारे पक्ष में चली आती है।
'''(2)'''
 
तुामने तो की थी प्रतिज्ञा
 
कि लड़ोगे तुम
 
अन्तिम कारण तक
 
उन सबके लिए
 
जो लड़ना और जीना भूल चुके हैं
 
जो न परास्त हुए न मरे हैं
 
अद्र्घ विक्षिप्त से रणभूमि के किनारे
 
कनकौए की तरह खड़े हैं
 
जिनके अधिकार और हथियार
 
पहले ही छिन चुके हैं
 
लोकतन्त्र के इस जंगल में
 
जिन एकलव्यों के अंगूठे कट चुके हैं
 
जिनका जीवित सर
 
बीरबल की तरह युद्घभूमि के किनारे
 
बांस के खम्भे पर टांग दिया गया है
 
जिन्हें भाषा और धर्म
 
रंग और जात के नाम पर
 
अलग अलग बांट दिया गया है
 
 
 
तुमने तो कहा था   
 
तुमने तो कहा था-
 
हम लड़ेंगे अन्तिम सॉंस तक
 
न्याय के लिए़
 
तुमने तिरंगे तले की थी घोषणा
 
कि तमाम खतरों के बावजूद
 
जिन्दा रहेगा सच
 
तुमने लिया था संकल्प
 
कि अपनी आत्मा की अस्मिता
 
रखोगे अक्षुण्ण
 
रक्त की अन्तिम बूंद तक़
 
 
 
पर तुम्हीं ने बांध ली
 
आंखों पर पटृी
 
और चुन लिया अपने लिए अंधेरा
 
ताकि देखना न पड़े
 
न्याय के लिए जूझते
 
दम तोड़ते आदमी का चेहरा
 
 
 
तुम्हें पता था
 
न्याय और जीवन के लिए
 
लड़ते आदमी का चेहरा देखना
 
सचमुच मुष्किल होता है
 
तब और भी ज्यादा
 
जब तुम अन्धेरे में हो
 
और चेहरा मशाल की तरह जल रहा हो़
 
तब और भी ज्यादा
 
जब तुम खड़े हो
 
मूक दर्शकों की पंक्ति में
 
 
 
तुम देखते हो और ओढ़ लेते हो मौन
 
मक्कारी में डूबे पूछते हो
 
आराम में खलल डालता यह आदमी
 
आखिर है कौन
 
उधर अदालत की चौखट पर
 
सर पटकती है
 
न्याय की उम्मीद
 
भीतर बेसाख्ता झूठ बोलता है चश्मदीद़
 
वहां हथौड़े की ठक ठक के नीचे
 
कराहता है आहत सच
 
और सहम कर वहीं दुबक जाता है
 
असहाय सा कोने में
 
 
 
काले कव्वे से नहीं डरता है झूठ
 
काले कव्वे की षह पर
 
इतराता है, गुर्राता है
 
कानून की किसी उपधारा को
 
ढाल बनाकर निकल जाता है
 
प्रजातन्त्र के जंगल में
 
नए तरीके के साथ नए शिकार पऱ
 
 
 
क्या तुमने सुना है
 
सिसक- सिसक कर रोता सच
 
अदालत के उठ जाने के बाद
 
वहीं किसी अंधेरे कोने में
 
पत्थर पर सिर टिकाए
 
दीवारों में तलाशता हुआ संवेदना ?
 
 
 
जहाँ तुम जाते हो न्याय की उम्मीद में
 
वहाँ धृतराष्टृ की बगल में
 
सदियों से खड़ी है गांधारी
 
अंधी मर्यादा में गर्वोन्नत
 
देखती नहीं कुछ
 
सुनती है बस
 
पर फर्क नहीं कर सकती
 
घायल की कराहट
 
और अपराधी की गुर्राहट के बीच़
 
रेवड़ियां बाँटती है खैरात में
 
पर अपना ही कुनबा
 
आ जाता है सामने हरबाऱ
 
 
 
सदियों से खड़ी है गांधारी
 
जिसकी आंखों पर पटृी
 
हाथ में तराजू है
 
और तोलने को कुछ भी नहीं
 
संविधान की आड़ी तिरछी रेखाओं ने
 
जिसे  ऊँची कुर्सी पर टॉंग रखा है
 
उसके एक हाथ में
 
मरी हुई परिभाषाओं से भरी
 
एक भारी किताब है
 
दूसरे हाथ में लकड़ी का हथौड़ा है
 
जिसे दिन दिहाड़े धर दबोचा चौक पर
 
कानून उस पर बरसता संवैधानिक कोड़ा है
 
यहां हर नागरिक लकड़ी का घोड़ा है़
 
वह गूँगा नहीं है
 
नक्कारखाने में उसका मौन
 
एक लाचारी है
 
जिस अपराधी के पक्ष में
 
एक डरी हुई चुप्पी है
 
डसके लिए हथौड़े की ठक- ठक कर
 
ऑर्डर-ऑर्डर कहता जज
 
महज़ डुगडुगी बजाता मदारी है़
 
 
 
जिन्दा आदमी के जले गोष्त की
 
गन्ध से घबराई ज़ाहिरा
 
एक और बुर्का ओढ़ लेती है झूठ का
 
जब मोदी पूछता है
 
अलग अलग करके बताओ
 
कितने हिन्दू हैं मरने वालों में
 
कितने मुस्व्लमान ?
 
संसद की दीर्घा में बैठा प्रहरी
 
कुछ और पसर जाता है आराम से
 
जब समवेत स्वर में कहते हैं सभी
 
जैसिका को किसी ने नहीं मारा
 
जैसिका कभी मरी ही नहीं
 
उसे दफन किया गया है फाईलों में जिन्दा़
 
 
 
गांधारी के शब्दकोष में आदमी
 
न जिंदा है न मरा है
 
अदालत का एक कटघरा है
 
जहां उसका सच सलीब पर तुलता है
 
गवाह और अपराधी के बीच
 
एक अदालती रिश्ता है
 
जो सच की कब्र पर
 
फूल की तरह खिलता है़
 
 
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Revision as of 18:01, 1 January 2012

gaandhari se sanvad (1) -kuladip sharma
kavi kuladip sharma
janm sthan (oona, himachal pradesh)
bahari k diyaan adhikarik vebasait
inhean bhi dekhean kavi soochi, sahityakar soochi

 
     (1)
ab jabaki bilkul nihatthe ho ge ho tum
aur shatru kar chuka hai jayaghosh
l dana aur bhi jaroori ho gaya hai
ab jabaki khand khand giri p di hai asmita
aur sara yuddh kshetr
ho gaya hai unake adhikar mean
jabaki koee bhi paksh nahian bacha hai
jahaan se l da ja sake
apane paksh mean
l dana aur bhi jaroori ho gaya hai
ab jabaki lagata hai
ki l daee ka nahian hai koee arth
n koee karan shesh
jabaki lahuluhan sach
vigalit ho p da hai
ranabhoomi ke bichoanbich
jabaki sare yodgha sir jhukae
guzar ge haian
ahat adhamare saty ke samane se
mere bhaee! l dana aur bhi zaroori ho gaya hai

isalie l do ki l daee
tumhare bhitar hai kahian
tumhara shatru bhi chhupa hai
tumhare hi astitv mean
isalie l do ki
is haharate aandhakar ko
nialamil ujale mean badalane ke lie
zaroori hai l dana
beshak badal die hai unhone
ratoan rat yuddh ke sare niyam
apane paksh mean kar lie haian sare shastr
ghoshana kar di hai unhoanne
ki bina l de bhi
jiti ja sakati hai l daee
tum sach mano
ki l dana aur bhi jaroori ho gaya hai
aur yah bhi ki
har l daee jit ke lie nahian l di jati
par agar l do to
nishchay hi aant mean jit
tumhare paksh mean chali ati hai.


tika tippani aur sandarbh

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