कर्मकाण्ड: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
प्रीति चौधरी (talk | contribs) ('{{पुनरीक्षण}} '''कर्मकाण्ड''' का मूलत: सम्बन्ध मानव के सभ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
प्रीति चौधरी (talk | contribs) m (Adding category Category:हिन्दू कर्मकाण्ड (को हटा दिया गया हैं।)) |
||
Line 28: | Line 28: | ||
[[Category:धर्म कोश]] | [[Category:धर्म कोश]] | ||
[[Category:नया पन्ना अप्रॅल-2012]] | [[Category:नया पन्ना अप्रॅल-2012]] | ||
[[Category:हिन्दू कर्मकाण्ड]] | |||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 06:53, 12 April 2012
चित्र:Icon-edit.gif | इस लेख का पुनरीक्षण एवं सम्पादन होना आवश्यक है। आप इसमें सहायता कर सकते हैं। "सुझाव" |
कर्मकाण्ड का मूलत: सम्बन्ध मानव के सभी प्रकार के कर्मों से है, जिनमें धार्मिक क्रियाएँ भी सम्मिलित हैं। स्थूल रूप से धार्मिक क्रियाओं को ही 'कर्मकाण्ड' कहते हैं, जिससे पौरोहित्य का घना सम्बन्ध है। कर्मकाण्ड के भी दो प्रकार हैं-
- इष्ट
- पूर्त
- सम्पूर्ण वैदिक धर्म तीन काण्डों में विभक्त है-
- ज्ञान काण्ड,
- उपासना काण्ड
- कर्म काण्ड
- यज्ञ-यागादि, अदृष्ट और अपूर्व के ऊपर आधारित कर्मों को इष्ट कहते हैं। लोक-हितकारी दृष्ट फल वाले कर्मों को पूर्त कहते हैं। इस प्रकार कर्मकाण्ड के अंतर्गत लोक-परलोक-हितकारी सभी कर्मों का समावेश है।
- कर्मकाण्ड वेदों के सभी भाष्यकार इस बात से सहमत हैं कि चारों वेदों में प्रधानत: तीन विषयों; कर्मकाण्ड, ज्ञान- काण्ड एवं उपासनाकाण्ड का प्रतिपादन है।
- कर्मकाण्ड अर्थात् यज्ञकर्म वह है जिससे यजमान को इस लोक में अभीष्ट फल की प्राप्ति हो और मरने पर यथेष्ट सुख मिले। यजुर्वेद के प्रथम से उंतालीसवें अध्याय तक यज्ञों का ही वर्णन है। अंतिम अध्याय(40 वाँ) इस वेद का उपसंहार है, जो 'ईशावास्योपनिषद्' कहलाता है।
- वेद का अधिकांश कर्मकाण्ड और उपासना से परिपूर्ण है, शेष अल्पभाग ही ज्ञानकाण्ड है।
- कर्मकाण्ड कनिष्ठ अधिकारी के लिए है। उपासना और कर्म मध्यम के लिए। कर्म, उपासना और ज्ञान तीनों उत्तम के लिए हैं। पूर्वमीमांसाशास्त्र कर्मकाण्ड का प्रतिपादन है।
- इसका नाम 'पूर्वमीमांसा' इस लिए पड़ा कि कर्मकाण्ड मनुष्य का प्रथम धर्म है, ज्ञानकाण्ड का अधिकार उसके उपरांत आता है।
- पूर्व आचरणीय कर्मकाण्ड से सम्बन्धित होने के कारण इसे पूर्वमीमांसा कहते हैं। ज्ञानकाण्ड-विषयक मीमांसा का दूसरा पक्ष 'उत्तरमीमांसा' अथवा वेदान्त कहलाता है।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख