चिकनकारी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 1: Line 1:
{{पुनरीक्षण}}
[[चित्र:Chikan-Embroidery.jpg|thumb|250px|चिकनकारी]]
[[चित्र:Chikan-Embroidery.jpg|thumb|250px|चिकनकारी]]
'''चिकनकारी''' [[भारत]] में की जाने वाली उत्कृष्ट व महीन कसीदाकारी का एक प्रकार है, जो सामान्यतः सादे मलमल पर [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] सूती धागे से की जाती है।  
'''चिकनकारी''' [[भारत]] में की जाने वाली उत्कृष्ट व महीन कसीदाकारी का एक प्रकार है, जो सामान्यतः सादे मलमल पर [[सफ़ेद रंग|सफ़ेद]] सूती धागे से की जाती है।
*इस शैली की उत्पत्ति अनिश्चित है, किंतु यह ज्ञात है कि 18वीं शताब्दी में यह [[बंगाल]] राज्य (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) से [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] पहुंची, जो 20वीं [[सदी]] से अब तक इसके उत्पादन का मुख्य केंद्र है।
 
*इस शैली की उत्पत्ति अनिश्चित है, किंतु यह ज्ञात है कि 18वीं [[शताब्दी]] में यह बंगाल राज्य (वर्तमान [[बांग्लादेश]]) से [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] पहुंची, जो 20वीं [[सदी]] से अब तक इसके उत्पादन का मुख्य केंद्र है।
*[[अवध]] के [[नवाब|नवाबों]] के संरक्षण में चिकनकारी ने दुर्लभ श्रेष्ठता प्राप्त की थी।  
*[[अवध]] के [[नवाब|नवाबों]] के संरक्षण में चिकनकारी ने दुर्लभ श्रेष्ठता प्राप्त की थी।  
*प्रभावोत्पादकता के लिए यह डिज़ाइन की सादकी पर निर्भर है, प्रतीकों की संख्या सीमित है और कार्य की उत्तमता बारीक व एकरूप कसीदाकारी से आंकी जाती है।  
*प्रभावोत्पादकता के लिए यह डिज़ाइन की सादकी पर निर्भर है, प्रतीकों की संख्या सीमित है और कार्य की उत्तमता बारीक व एकरूप कसीदाकारी से आंकी जाती है।  
*टांकों की संख्या भी सीमित है। सबसे अधिक प्रचलित हैं- रफू का टांका, उल्टा साटिन टांका, लंबा साटिक टांका, जाली का काम और दरज़ का काम।  
*टांकों की संख्या भी सीमित है। सबसे अधिक प्रचलित हैं- रफू का टांका, उल्टा साटिन टांका, लंबा साटिक टांका, जाली का काम और दरज़ का काम।
*इस कला पर ख़त्म हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा था। किंतु 20वीं शताब्दी में बढ़ी मांग ने इसके पुनरुत्थान में योगदान दिया।
*चिकनकारी कला पर ख़त्म हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा था, किंतु 20वीं शताब्दी में बढ़ी मांग ने इसके पुनरुत्थान में योगदान दिया।


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1|माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
==वीथिका==
==वीथिका==
<gallery>
<gallery>
Line 16: Line 16:
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
<references/>
==बाहरी कड़ियाँ==
==संबंधित लेख==
==संबंधित लेख==
{{हस्तशिल्प उद्योग}}
{{हस्तशिल्प उद्योग}}
[[Category:लखनऊ]]
[[Category:लखनऊ]][[Category:उत्तर प्रदेश]][[Category:उत्तर प्रदेश की संस्कृति]]
[[Category:उत्तर प्रदेश]]
[[Category:हस्तशिल्प कला]][[Category:हस्तशिल्प उद्योग]][[Category:कला कोश]][[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]]
[[Category:उत्तर प्रदेश की संस्कृति]]
[[Category:हस्तशिल्प कला]]
[[Category:हस्तशिल्प उद्योग]]
[[Category:कला कोश]]
[[Category:वाणिज्य व्यापार कोश]]
[[Category:नया पन्ना फ़रवरी-2012]]
 
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Latest revision as of 09:25, 4 August 2014

thumb|250px|चिकनकारी चिकनकारी भारत में की जाने वाली उत्कृष्ट व महीन कसीदाकारी का एक प्रकार है, जो सामान्यतः सादे मलमल पर सफ़ेद सूती धागे से की जाती है।

  • इस शैली की उत्पत्ति अनिश्चित है, किंतु यह ज्ञात है कि 18वीं शताब्दी में यह बंगाल राज्य (वर्तमान बांग्लादेश) से लखनऊ, उत्तर प्रदेश पहुंची, जो 20वीं सदी से अब तक इसके उत्पादन का मुख्य केंद्र है।
  • अवध के नवाबों के संरक्षण में चिकनकारी ने दुर्लभ श्रेष्ठता प्राप्त की थी।
  • प्रभावोत्पादकता के लिए यह डिज़ाइन की सादकी पर निर्भर है, प्रतीकों की संख्या सीमित है और कार्य की उत्तमता बारीक व एकरूप कसीदाकारी से आंकी जाती है।
  • टांकों की संख्या भी सीमित है। सबसे अधिक प्रचलित हैं- रफू का टांका, उल्टा साटिन टांका, लंबा साटिक टांका, जाली का काम और दरज़ का काम।
  • चिकनकारी कला पर ख़त्म हो जाने का ख़तरा मंडरा रहा था, किंतु 20वीं शताब्दी में बढ़ी मांग ने इसके पुनरुत्थान में योगदान दिया।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख