राधाकमल मुखर्जी: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 39: Line 39:
पी.एच.डी. करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक [[लाहौर]] के एक कॉलेज में और उसके बाद 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में अध्यापन कार्य किया। [[1921]] में वे समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष पद पर '[[लखनऊ विश्वविद्यालय]]' में आ गए। [[1952]] में इस पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे [[1955]] से [[1957]] तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।
पी.एच.डी. करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक [[लाहौर]] के एक कॉलेज में और उसके बाद 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में अध्यापन कार्य किया। [[1921]] में वे समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष पद पर '[[लखनऊ विश्वविद्यालय]]' में आ गए। [[1952]] में इस पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे [[1955]] से [[1957]] तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।
==लोकप्रियता==
==लोकप्रियता==
अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र आदि विषयों में उनकी गहरी रुचि थी। [[कला]] का अध्ययन भी उनका प्रिय विषय था। उनकी विद्वता ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था। [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] के प्रमुख विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहाँ भाषण देने के लिए आमंत्रित करते रहते थे। भारतीय कलाओं के प्रति अपने अनुराग के कारण ही वे कई वर्षों तक [[लखनऊ]] के प्रसिद्ध 'भातखंडे संगीत महाविद्यालय' और प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। [[1955]] में [[लंदन]] के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था। 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन' में भी उन्होंने [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया। 'लखनऊ विश्वविद्यालय' के 'जे. के. इंस्टीटयूट' के निदेशक तो वे जीवन भर रहे।
अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र आदि विषयों में उनकी गहरी रुचि थी। [[कला]] का अध्ययन भी उनका प्रिय विषय था। उनकी विद्वता ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था। [[यूरोप]] और [[अमेरिका]] के प्रमुख विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहाँ भाषण देने के लिए आमंत्रित करते रहते थे। भारतीय कलाओं के प्रति अपने अनुराग के कारण ही वे कई वर्षों तक [[लखनऊ]] के प्रसिद्ध 'भातखंडे संगीत महाविद्यालय' और प्रदेश [[ललित कला अकादमी]] के अध्यक्ष भी रहे। [[1955]] में [[लंदन]] के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था। 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन' में भी उन्होंने [[भारत]] का प्रतिनिधित्व किया। 'लखनऊ विश्वविद्यालय' के 'जे. के. इंस्टीटयूट' के निदेशक तो वे जीवन भर रहे।
==रचना कार्य==
==रचना कार्य==
डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने विविध विषयों में 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की। उनमें से कुछ प्रमुख हैं-
डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने विविध विषयों में 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की। उनमें से कुछ प्रमुख हैं-
Line 53: Line 53:
[[हिन्दू धर्म]] के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ '[[श्रीमद्भागवत|भगवदगीता]]' पर भी उन्होंने एक भाष्य की रचना की थी।
[[हिन्दू धर्म]] के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ '[[श्रीमद्भागवत|भगवदगीता]]' पर भी उन्होंने एक भाष्य की रचना की थी।
==राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान==
==राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान==
'ललित कला अकादमी' के द्वितीय अध्यक्ष डॉ. राधाकमल मुखर्जी का योगदान अकादमी के लिये अविस्मरणीय है। राधाकमल मुखर्जी का देहावसान अकादमी परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए हुआ था। ऐसे महान पुरूष की स्मृति में वर्ष [[1970]] से प्रतिवर्ष 'डॉ. राधाकमल मुखर्जी व्याख्यानमाला' का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत देश के ख्याति प्राप्त कलाकार, इतिहासकार तथा कला समीक्षकों को आमंत्रित किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.upculture.org/Static/lalit_kala_8.aspx|title= राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान|accessmonthday=08 मई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
'[[ललित कला अकादमी]]' के द्वितीय अध्यक्ष डॉ. राधाकमल मुखर्जी का योगदान अकादमी के लिये अविस्मरणीय है। राधाकमल मुखर्जी का देहावसान अकादमी परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए हुआ था। ऐसे महान पुरूष की स्मृति में वर्ष [[1970]] से प्रतिवर्ष 'डॉ. राधाकमल मुखर्जी व्याख्यानमाला' का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत देश के ख्याति प्राप्त कलाकार, इतिहासकार तथा कला समीक्षकों को आमंत्रित किया जाता है।<ref>{{cite web |url=http://www.upculture.org/Static/lalit_kala_8.aspx|title= राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान|accessmonthday=08 मई|accessyear= 2013|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिन्दी}}</ref>
==निधन==
==निधन==
राधाकमल मुखर्जी का देहावसान 'ललित कला अकादमी' परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए [[24 अगस्त]], [[1968]] में हुआ। डॉ. राधाकमल मुखर्जी की मान्यता थी कि ज्ञान का अत्यधिक विखंडन समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए अहितकर है। वे प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विचार धाराओं में समन्वय के समर्थक थे।
राधाकमल मुखर्जी का देहावसान 'ललित कला अकादमी' परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए [[24 अगस्त]], [[1968]] में हुआ। डॉ. राधाकमल मुखर्जी की मान्यता थी कि ज्ञान का अत्यधिक विखंडन समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए अहितकर है। वे प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विचार धाराओं में समन्वय के समर्थक थे।

Revision as of 09:52, 8 May 2013

राधाकमल मुखर्जी
पूरा नाम डॉ. राधाकमल मुखर्जी
जन्म 7 दिसम्बर, 1889 ई.
जन्म भूमि पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत
मृत्यु 24 अगस्त, 1968
कर्म भूमि भारत
कर्म-क्षेत्र अध्यापन तथा लेखन
मुख्य रचनाएँ 'द सोशल स्ट्रक्चर ऑफ़ वैल्यूज', 'द फ़िलासाफ़ी ऑफ़ सोशल साइन्सेज', 'कास्टिक आर्ट ऑफ़ इंडिया', 'द वननेस ऑफ़ मैनकाइंड' आदि।
भाषा हिन्दी, अंग्रेज़ी
विद्यालय 'कोलकाता विश्वविद्यालय'
शिक्षा पी.एच.डी.
प्रसिद्धि समाजशास्त्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी 1955 में लंदन के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था।
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

राधाकमल मुखर्जी (अंग्रेज़ी: Radhakamal Mukerjee; जन्म- 7 दिसम्बर, 1889 ई., पश्चिम बंगाल, ब्रिटिश भारत; मृत्यु- 24 अगस्त, 1968 ई.) आधुनिक भारतीय संस्कृति और समाजशास्त्र के विख्यात विद्वान थे। उनकी अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र आदि विषयों में गहरी रुचि थी। डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने विविध विषयों में 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की थी। वे प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विचार धाराओं में समन्वय के समर्थक थे।

जन्म तथा शिक्षा

भारतीय संस्कृति और समाजशास्त्र के विख्यात विद्वान डॉ. राधाकमल मुखर्जी का जन्म 7 दिसम्बर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद ज़िले में एक प्रतिष्ठित ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता बहरामपुर में बैरिस्टर थे। राधाकमल मुखर्जी ने 'कोलकाता विश्वविद्यालय' से पी.एच.डी. की डिग्री प्राप्त की थी।

व्यावसायिक जीवन

पी.एच.डी. करने के बाद इन्होंने कुछ समय तक लाहौर के एक कॉलेज में और उसके बाद 'कोलकाता विश्वविद्यालय' में अध्यापन कार्य किया। 1921 में वे समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफ़ेसर और अध्यक्ष पद पर 'लखनऊ विश्वविद्यालय' में आ गए। 1952 में इस पद से अवकाश ग्रहण करने के बाद वे 1955 से 1957 तक इस विश्वविद्यालय के कुलपति पद पर भी रहे।

लोकप्रियता

अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, नीतिशास्त्र, दर्शनशास्त्र, सौंदर्यशास्त्र आदि विषयों में उनकी गहरी रुचि थी। कला का अध्ययन भी उनका प्रिय विषय था। उनकी विद्वता ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया था। यूरोप और अमेरिका के प्रमुख विश्वविद्यालय उन्हें अपने यहाँ भाषण देने के लिए आमंत्रित करते रहते थे। भारतीय कलाओं के प्रति अपने अनुराग के कारण ही वे कई वर्षों तक लखनऊ के प्रसिद्ध 'भातखंडे संगीत महाविद्यालय' और प्रदेश ललित कला अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। 1955 में लंदन के प्रसिद्ध प्रकाशन संस्थान मैकमिलन ने डॉ. मुखर्जी के सम्मान में एक अभिनंदन ग्रंथ का प्रकाशन किया था। 'अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन' में भी उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया। 'लखनऊ विश्वविद्यालय' के 'जे. के. इंस्टीटयूट' के निदेशक तो वे जीवन भर रहे।

रचना कार्य

डॉ. राधाकमल मुखर्जी ने विविध विषयों में 50 से अधिक ग्रंथों की रचना की। उनमें से कुछ प्रमुख हैं-

  1. 'द सोशल स्ट्रक्चर ऑफ़ वैल्यूज'
  2. 'द सोशल फ़शन्स ऑफ़ आर्ट'
  3. 'द डाइनानिक्स ऑफ़ मौरल्स'
  4. 'द फ़िलासाफ़ी ऑफ़ पर्सनेल्टी'
  5. 'द फ़िलासाफ़ी ऑफ़ सोशल साइन्सेज'
  6. 'द वननेस ऑफ़ मैनकाइंड'
  7. 'द फ़्लावरिंग ऑफ़ इंडियन आर्ट'
  8. 'कास्टिक आर्ट ऑफ़ इंडिया'

हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथ 'भगवदगीता' पर भी उन्होंने एक भाष्य की रचना की थी।

राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान

'ललित कला अकादमी' के द्वितीय अध्यक्ष डॉ. राधाकमल मुखर्जी का योगदान अकादमी के लिये अविस्मरणीय है। राधाकमल मुखर्जी का देहावसान अकादमी परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए हुआ था। ऐसे महान पुरूष की स्मृति में वर्ष 1970 से प्रतिवर्ष 'डॉ. राधाकमल मुखर्जी व्याख्यानमाला' का आयोजन किया जा रहा है। इसके अन्तर्गत देश के ख्याति प्राप्त कलाकार, इतिहासकार तथा कला समीक्षकों को आमंत्रित किया जाता है।[1]

निधन

राधाकमल मुखर्जी का देहावसान 'ललित कला अकादमी' परिसर में ही सामान्य सभा की बैठक की अध्यक्षता करते हुए 24 अगस्त, 1968 में हुआ। डॉ. राधाकमल मुखर्जी की मान्यता थी कि ज्ञान का अत्यधिक विखंडन समाज की सर्वांगीण प्रगति के लिए अहितकर है। वे प्राच्य और पाश्चात्य दोनों विचार धाराओं में समन्वय के समर्थक थे।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. राधाकमल मुकर्जी व्याख्यान (हिन्दी)। । अभिगमन तिथि: 08 मई, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख