स्वर्ण मंदिर: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
Line 19: Line 19:
==सम्बंधित लिंक==
==सम्बंधित लिंक==
{{पंजाब के पर्यटन स्थल}}
{{पंजाब के पर्यटन स्थल}}
[[Category:अमृतसर]]
[[Category:अमृतसर के पर्यटन स्थल]]
[[Category:पंजाब]]
[[Category:पंजाब के पर्यटन स्थल]]
[[Category:पंजाब के पर्यटन स्थल]]
[[Category:भारत के पर्यटन स्थल]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:पर्यटन कोश]]
[[Category:अमृतसर के पर्यटन स्थल]]
[[Category:अमृतसर]]
__INDEX__
__INDEX__
__NOTOC__
__NOTOC__

Revision as of 07:48, 3 August 2010

[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar-3.jpg|thumb|स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
Golden Temple, Amritsar]]

  • स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब या दरबार साहिब भी कहा जाता है। इसके आस पास के सुंदर परिवेश और स्वर्ण की पर्त के कारण स्वर्ण मंदिर कहते हैं।
  • यह अमृतसर (पंजाब) में स्थित सिक्खों का सबसे पवित्र मंदिर माना जाता है। यह मंदिर सिक्ख धर्म का सहनशीलता तथा स्वीकार्यता का संदेश अपनी वास्तुकला के माध्यम से प्रवर्तित करता है, जिसमें अन्य धर्मों के संकेत शामिल किए गए हैं।
  • दुनिया भर के सिक्ख अमृतसर आना चाहते हैं और श्री हरमंदिर साहिब में अपनी अरदास देकर अपनी श्रद्धा व्यक्त करना चाहते हैं।

इतिहास

सन 1589 ने गुरु अर्जुन देव के एक शिष्य शेखमियां मीर ने सरोवर के बीच में स्थित वर्तमान स्वर्ण-मन्दिर की नींव डाली। मन्दिर के चारों ओर चार दरवाज़ों का प्रबन्ध किया गया था। यह गुरु नानक के उदार धार्मिक विचारों का प्रतीक समझा गया। मन्दिर में गुरु-ग्रंथ-साहिब की, जिसका संग्रह गुरु अर्जुन देव ने किया था, स्थापना की गई थी। सरोवर को गहरा करवाने और परिवर्धित करने का कार्य बाबू बूढ़ा नामक व्यक्ति को सौंपा गया था और इन्हें ही ग्रंथ-साहब का प्रथम ग्रंथी बनाया गया। 1757 ई. में वीर सरदार बाबा दीपसिंह जी ने मुसलमानों के अधिकार से इस मन्दिर को छुड़ाया, किन्तु वे उनके साथ लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए। उन्होंने अपने अधकटे सिर को सम्भालते हुए अनेक शत्रुओं को मौत के घाट उतारा। उनकी दुधारी तलवार मन्दिर के संग्रहालय में सुरक्षित है। स्वर्ण-मन्दिर के निकट बाबा अटलराय का गुरुद्वारा है। ये छठे गुरु हरगोविन्द के पुत्र थे, और नौ वर्ष की आयु में ही सन्त समझे जाने लगे थे। उन्होंने इतनी छोटी-सी उम्र में एक मृत शिष्य को जीवन दान देने में अपने प्राण होम दिए थे। कहा जाता है, कि गुरुद्वारे की नौं मन्ज़िलें इस बालक की आयु की प्रतीक हैं। पंजाब-केसरी महाराज रणजीत सिंह ने स्वर्ण-मन्दिर को एक बहुमूल्य पटमण्डप दान में दिया था, जो संग्रहालय में है।

स्थापना

[[चित्र:Golden-Temple-Amritsar-2.jpg|thumb|स्वर्ण मंदिर, अमृतसर
Golden Temple, Amritsar|left]] गुरु अर्जन साहिब, पांचवें नानक, ने सिक्खों की पूजा के एक केन्द्रीय स्थल के सृजन की कल्पना की और उन्होंने स्वयं श्री हरमंदिर साहिब की वास्तुकला की संरचना की। पहले इसमें एक पवित्र तालाब (अमृतसर या अमृत सरोवर) बनाने की योजना गुरु अमरदास साहिब द्वारा बनाई गई थी, जो तीसरे नानक कहे जाते हैं किन्तु गुरु रामदास साहिब ने इसे बाबा बुद्ध जी के पर्यवेक्षण में निष्पादित किया। इस स्थल की भूमि मूल गांवों के जमींदारों से मुफ्त या भुगतान के आधार पर पूर्व गुरु साहिबों द्वारा अर्जित की गई थी। यहां एक कस्बा स्थापित करने की योजना भी बनाई गई थी। अत: सरोवर पर निर्माण कार्य के साथ कस्बों का निर्माण भी इसी के साथ 1570 में शुरू हुआ। दोनों परियोजनाओं का कार्य 1577 ए.डी. में पूरा हुआ था।

गुरु अर्जन साहिब ने लाहौर के मुस्लिम संत हजरत मियां मीर जी द्वारा इसकी आधारशिला रखवाई जो दिसम्बर 1588 में रखी गई। इसके निर्माण कार्य का पर्यवेक्षण गुरु अर्जन साहिब ने स्वयं किया और बाबा बुद्ध जी, भाई गुरुदास जी, भाई सहलो जी और अन्य कई समर्पित सिक्ख बंधुओं के द्वारा उन्हें सहायता दी गई। ऊँचे स्तर पर ढाँचे को खड़ा करने के विपरीत, गुरु अर्जन साहिब ने इसे कुछ निचले स्तर पर बनाया और इसे चारों ओर से खुला रखा। इस प्रकार उन्होंने एक नए धर्म सिक्ख धर्म का संकेत सृजित किया। गुरु साहिब ने इसे जाति, वर्ण, लिंग और धर्म के आधार पर किसी भेदभाव के बिना प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुगम्य बनाया।

स्वर्ण मंदिर निर्माण कार्य सितम्बर 1604 में पूरा हुआ। गुरु अर्जन साहिब ने नव सृजित गुरु ग्रंथ साहिब (सिक्ख धर्म की पवित्र पुस्तक) की स्थापना श्री हरमंदिर साहिब में की तथा बाबा बुद्ध जी को इसका प्रथम ग्रंथी अर्थात गुरु ग्रंथ साहिब का वाचक नियुक्त किया। इस कार्यक्रम के बाद 'अथ सत तीरथ' का दर्जा देकर यह सिक्ख धर्म का एक अपना तीर्थ बन गया।

धार्मिक महत्व

स्वर्ण मंदिर की वास्तु कला हिन्दू तथा मुस्लिम निर्माण कार्य के बीच एक अनोखे सौहार्द को प्रदर्शित करता है तथा स्वर्ण मंदिर को विश्वास के सर्वोत्तम वास्तु-कलात्म‍क नमूने के रूप में माना जा सकता है। यह कई बार कहा जाता है कि इस वास्तुकला से भारत के कला इतिहास में सिक्ख‍ संप्रदाय की एक स्वतंत्र वास्तुकला का सृजन हुआ है। यह मंदिर कलात्मक सौंदर्य और गहरी शांति का उल्लेखनीय संयोजन है। यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक सिक्ख का हृदय यहाँ बसता है।

सम्बंधित लिंक