वात्सीपुत्रीय निकाय: Difference between revisions
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "Category:दर्शन" to "") |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "==सम्बंधित लिंक==" to "==संबंधित लेख==") |
||
Line 1: | Line 1: | ||
[[बौद्ध धर्म]] में वात्सीपुत्रीय निकाय [[अठारह बौद्ध निकाय|अठारह निकायों]] में से एक है:-<br /> | [[बौद्ध धर्म]] में वात्सीपुत्रीय निकाय [[अठारह बौद्ध निकाय|अठारह निकायों]] में से एक है:-<br /> | ||
स्थविरवादी संघ से जो सर्वप्रथम निकाय भेद विकसित हुआ, वह वात्सीपुत्रीय निकाय ही है। स्थविरों से इनका सैद्धान्तिक मतभेद था। ये लोग पुद्गलास्तित्ववादी थे। अर्थात ये पुद्गल के द्रव्यत: अस्तित्व के पक्षपाती थे और उसे अनिर्वचनीय कहते थें यह निकाय स्थविरवादियों का प्रमुख प्रतिपक्ष रहा है। यही कारण है कि तृतीय संगीति के अवसर पर जो सम्राट् [[अशोक]] के काल में [[पाटलिपुत्र]] ([[पटना]]) में आयोजित हुई थी, उसमें मुद्गलीपुत्र तिष्य ने स्वविरवाद से भिन्न सत्रह निकायों का खण्डन करते हुए जिस 'कथावत्थु' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, उस ग्रन्थ में उन्होंने सर्वप्रथम पुद्गलवादी वात्सीपुत्रीयों का ही खण्डन किया। इससे यह भी निष्कर्ष प्रतिफलित होता है कि तृतीय संगीति से पूर्व ही इनका अस्तित्व था। [[कौशाम्बी]] [[मथुरा]] तथा [[अवंती]] आदि इनके प्रमुख केन्द्र थे। | स्थविरवादी संघ से जो सर्वप्रथम निकाय भेद विकसित हुआ, वह वात्सीपुत्रीय निकाय ही है। स्थविरों से इनका सैद्धान्तिक मतभेद था। ये लोग पुद्गलास्तित्ववादी थे। अर्थात ये पुद्गल के द्रव्यत: अस्तित्व के पक्षपाती थे और उसे अनिर्वचनीय कहते थें यह निकाय स्थविरवादियों का प्रमुख प्रतिपक्ष रहा है। यही कारण है कि तृतीय संगीति के अवसर पर जो सम्राट् [[अशोक]] के काल में [[पाटलिपुत्र]] ([[पटना]]) में आयोजित हुई थी, उसमें मुद्गलीपुत्र तिष्य ने स्वविरवाद से भिन्न सत्रह निकायों का खण्डन करते हुए जिस 'कथावत्थु' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, उस ग्रन्थ में उन्होंने सर्वप्रथम पुद्गलवादी वात्सीपुत्रीयों का ही खण्डन किया। इससे यह भी निष्कर्ष प्रतिफलित होता है कि तृतीय संगीति से पूर्व ही इनका अस्तित्व था। [[कौशाम्बी]] [[मथुरा]] तथा [[अवंती]] आदि इनके प्रमुख केन्द्र थे। | ||
== | ==संबंधित लेख== | ||
{{अठारह बौद्ध निकाय}} | {{अठारह बौद्ध निकाय}} | ||
[[Category:दर्शन कोश]] [[Category:बौद्ध दर्शन]] [[Category:बौद्ध धर्म]] [[Category:बौद्ध धर्म कोश]]__INDEX__ | [[Category:दर्शन कोश]] [[Category:बौद्ध दर्शन]] [[Category:बौद्ध धर्म]] [[Category:बौद्ध धर्म कोश]]__INDEX__ |
Revision as of 19:04, 14 September 2010
बौद्ध धर्म में वात्सीपुत्रीय निकाय अठारह निकायों में से एक है:-
स्थविरवादी संघ से जो सर्वप्रथम निकाय भेद विकसित हुआ, वह वात्सीपुत्रीय निकाय ही है। स्थविरों से इनका सैद्धान्तिक मतभेद था। ये लोग पुद्गलास्तित्ववादी थे। अर्थात ये पुद्गल के द्रव्यत: अस्तित्व के पक्षपाती थे और उसे अनिर्वचनीय कहते थें यह निकाय स्थविरवादियों का प्रमुख प्रतिपक्ष रहा है। यही कारण है कि तृतीय संगीति के अवसर पर जो सम्राट् अशोक के काल में पाटलिपुत्र (पटना) में आयोजित हुई थी, उसमें मुद्गलीपुत्र तिष्य ने स्वविरवाद से भिन्न सत्रह निकायों का खण्डन करते हुए जिस 'कथावत्थु' नामक ग्रन्थ की रचना की थी, उस ग्रन्थ में उन्होंने सर्वप्रथम पुद्गलवादी वात्सीपुत्रीयों का ही खण्डन किया। इससे यह भी निष्कर्ष प्रतिफलित होता है कि तृतीय संगीति से पूर्व ही इनका अस्तित्व था। कौशाम्बी मथुरा तथा अवंती आदि इनके प्रमुख केन्द्र थे।