प्रयोग:कविता बघेल 2: Difference between revisions
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Revision as of 10:34, 29 November 2016
कविता बघेल 2
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पूरा नाम | बसंत कुमार दास |
जन्म | 2 नवम्बर, 1883 |
जन्म भूमि | सिलहट ज़िला |
मृत्यु | 1960 |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | बसंत कुमार दास 1937 में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने। इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोगतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया। |
बसंत कुमार दास (अंग्रेज़ी: Basanta Kumar Das, जन्म: 2 नवम्बर, 1883, सिलहट ज़िला; मृत्यु: 1960) असम के प्रमुख राजनैतिक नेता तथा गृहमंत्री थे। ये अधिवक्ता भी थे परंतु ये अपनी वकालत छोड़ कर आंदोलन में सम्मिलित हो गयें। जिस कारण ये जेल भी गये।[1]
परिचय
असम के प्रमुख राजनैतिक नेता बसंत कुमार दास का जन्म 2 नवम्बर,1883 ई. को सिलहट ज़िले के एक गरीब परिवार में हुआ था। इन्होंने अपने परिश्रम से वकालत की परीक्षा उत्तीर्ण की और सिलहट में वकालत करने लगे।
आंदोलन में भाग
बसंत कुमार दास ने अपनी वकालत छोड़ कर 1921 में कांग्रेस में सम्मिलित हो गये और असहयोग आंदोलन में भाग लिया। इसके बाद ये 1923 में पं. मोतीलाल नेहरू और सी. आर. दास की 'स्वराज्य पार्टी' में सम्मिलित हो गए। स्वराज्य पार्टी के टिकट पर 1926 से 1929 तक असम कौंसिल के सदस्य रहें और फिर कांग्रेस के निश्चय पर त्यागपत्र दे दिया। 1932 में इन्हें गिफ्तार कर लिया गया और दो वर्ष की सजा हुई।
राजनीतिक जीवन
बसंत कुमार दास 1937 में असम असेम्बली के सदस्य चुने गए और कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में उसके स्पीकार बने। इस पद पर उन्होंने दलीय पक्षपात की बजाय संसदीय लोगतंत्र की परंपरा का निर्वाह किया। इसके लिए कुछ लोंगों ने इनकी आलोचना भी की थी। 1946 में ये असम के गृहमंत्री थे। उसी समय सिलहट में 'जनमत संग्रह' हुआ कि यह ज़िला भारत में बना रहेगा या पाकिस्तान में जाएगा। जब जनमत संग्रह का परिणाम पाकिस्तान के पक्ष में गया तो गृहमंत्री के रूप में फिर बसंत कुमार दास की आलोचना हुई। बाद में पता चला कि कांग्रेस का उच्च नेतृत्व पहले ही 'सिलहट' को भारत से अलग करने के लिए मन बना चुका था। असम के बहुत से नेता भी, असम में बंगालियों का प्रभाव कम करने के लिए 'सिलहट' के अलग होने के पक्ष में थे। विभाजन के बाद, अन्य नेताओं की भाँति, बसंत कुमार दास भारत नहीं आए। ये हिन्दू अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए पूर्वी पाकिस्तान में ही रहे। वहां की राजनीति में इन्होंने सक्रिय भाग लिया। ये ईस्ट पाकिस्तान नेशनल कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए और वहां की विधान सभा में कुछ समय तक विरोधी दल के नेता रहे। फिर वित्त मंत्री तथा शिक्षा और श्रम मंत्री बने। 1958 में ये अंतर्राष्ट्रीय श्रम संघ के अध्यक्ष चुने गए। 1960 ई. में इनका देहांत हो गया।
- ↑ भारतीय चरित कोश |लेखक: लीलाधर शर्मा 'पर्वतीय' |प्रकाशक: शिक्षा भारती, मदरसा रोड, कश्मीरी गेट, दिल्ली |पृष्ठ संख्या: 517 |