सिंहनिका कर: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
रिंकू बघेल (talk | contribs) No edit summary |
गोविन्द राम (talk | contribs) |
||
Line 15: | Line 15: | ||
{{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=कौटिलीय अर्थशास्त्रम् |लेखक=वाचस्पति गैरोला|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=158|url=}} | {{पुस्तक संदर्भ |पुस्तक का नाम=कौटिलीय अर्थशास्त्रम् |लेखक=वाचस्पति गैरोला|अनुवादक= |आलोचक= |प्रकाशक=चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश|संकलन= भारत डिस्कवरी पुस्तकालय|संपादन= |पृष्ठ संख्या=158|url=}} | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{कर व्यवस्था}} | |||
[[Category:कर व्यवस्था]][[Category:अर्थव्यवस्था]] | [[Category:कर व्यवस्था]][[Category:अर्थव्यवस्था]][[Category:इतिहास कोश]] | ||
__INDEX__ | __INDEX__ |
Revision as of 12:44, 26 April 2018
सिंहानिका प्राचीन भारत की शासन व्यवस्था में लिया जाने वाला कर था, जिसका वर्णन कौटिल्य ने अपने अर्थशास्त्र में किया है।
- कौटिल्य के अनुसार कूट-पीस कर, छान-बीन कर, सत्तू पीस कर, गन्ना आदि को पेर कर, आटा पीस कर, तिलों का तेल निकाल कर, भेड़ों के बाल काटकर और गुड़, राव, शक्कर आदि पर आजीविका निर्भर करने वाले लोगों से जो कर लिया जाता था, उसे सिंहानिका कर कहा जाता था।
- इस धान्य को एकत्र करने वाले अधिकारी को 'सीताध्यक्ष' कहा जाता था।
- कौटिल्य के अनुसार कोष्ठागार के अध्यक्ष को चहिए कि वह शुद्ध और पूरा सीता कर लेकर उसको व्यवस्था से रखे।
- प्राचीन भारतीय अर्थव्यवस्था में निम्नांकित कर भी प्रचलित थे-
- सीता कर
- राष्ट्र कर
- सिंहनिका कर
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
कौटिलीय अर्थशास्त्रम् |लेखक: वाचस्पति गैरोला |प्रकाशक: चौखम्बा विधाभवन, चौक (बैंक ऑफ़ बड़ौदा भवन के पीछे , वाराणसी 221001, उत्तर प्रदेश |संकलन: भारत डिस्कवरी पुस्तकालय |पृष्ठ संख्या: 158 |