त्रिदिब मित्रा: Difference between revisions
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'''त्रिदिब मित्रा''' ([[ | '''त्रिदिब मित्रा''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Tridib Mitra'', जन्म- [[31 दिसम्बर]], [[1940]]) [[बांग्ला साहित्य]] के 'भूखी पीढ़ी' (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात [[कवि]] थे। वह और उनकी पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भूखी पीढ़ी आंदोलन की दो पत्रिकायें चलाया करते थे। [[अंग्रेज़ी]] में 'वेस्ट्पेपर' एवं बांग्ला में 'उन्मार्ग'।<br /> | ||
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*बचपन में स्कूली परीक्षा के बाद त्रिदिब मित्रा एक बार घर से सात महीने के लिये भाग गये। उस दौरान उन्हें जो जीवन व्यतीत करना पडा, उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देता है। | *बचपन में स्कूली परीक्षा के बाद त्रिदिब मित्रा एक बार घर से सात महीने के लिये भाग गये। उस दौरान उन्हें जो जीवन व्यतीत करना पडा, उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देता है। |
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thumb|200px|त्रिदिब मित्रा
त्रिदिब मित्रा (अंग्रेज़ी: Tridib Mitra, जन्म- 31 दिसम्बर, 1940) बांग्ला साहित्य के 'भूखी पीढ़ी' (हंगरी जेनरेशन) आंदोलन के प्रख्यात कवि थे। वह और उनकी पत्नी आलो मित्रा दोनों मिलकर भूखी पीढ़ी आंदोलन की दो पत्रिकायें चलाया करते थे। अंग्रेज़ी में 'वेस्ट्पेपर' एवं बांग्ला में 'उन्मार्ग'।
- बचपन में स्कूली परीक्षा के बाद त्रिदिब मित्रा एक बार घर से सात महीने के लिये भाग गये। उस दौरान उन्हें जो जीवन व्यतीत करना पडा, उसका असर उनके और उनके लेखन में दिखायी देता है।
- त्रिदिब मित्रा द्वारा सम्पादित लघु पत्रिकाओं के नाम से ही पता चल जाता है कि उनके मन में क्या प्रभाव रहा होगा। भूखी पीढ़ी अंदोलन में योग देने के पश्चात ही वह यातनामय स्मृति से उभर पाये थे। उनके लेखन में वह क्रोध झलकता है।
- बांग्ला संस्कृति में एक नयी आयाम का अनुप्रवेश त्रिदिब मित्रा ने घटाया था। श्मशान, कब्रगाह, बाज़ार, रेलवे-स्टेशन, खालसिटोला के मद्यपों के बीच कविता पढने और ग्रन्थों का उन्मोचन करने का जो सिलसिला भूखी पीढ़ी अंदोलन के बाद शुरू हुये, उस प्रक्रिया के जनक त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा थे।
- इन दोनों के कविता पठन कार्यक्रम में काफ़ी भीड़ आया करती थी। क्योंकि आम आदमी के बीच में कविता को प्रथम बार ले जाया गया था।
- भूखी पीढ़ी ने जो 'मुखौटा' कार्यक्रम शुरू किया था, उसको अंजाम भी त्रिदिब मित्रा और आलो मित्रा ने दिये। ऊँचे पद पर बैठे हुए लोगों के ऑफिस में यही दोनों मुखौटा पहुँचाया करते थे। राक्षस, जानवर तथा जोकर आदि के मुखौटे पर लिखा होता था कि- 'कृपया अपना मुखौटा उतारें'। इस कार्यक्रम के कारण ही कोलकाता का प्रशासन इनके खिलाफ खफा हो गया था।
- त्रिदिब मित्रा देखने में बहुत सुन्दर थे। यही कारण था कि उन्हें 'भूखी पीढ़ी का राजकुमार' कहा जाता था।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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