तिरुमंत्रम्: Difference between revisions
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शैव संतों द्वारा रचित | शैव संतों द्वारा रचित भक्ति साहित्य को 'स्तोत्र ग्रंथ' कहते हैं। इनकी संख्या 12 है। | ||
*शैव धर्म के दार्शनिक आचार्यो द्वारा रचे गए ग्रंथ 'शास्त्र ग्रंथ' कहलाते हैं। इन शास्त्र ग्रंथों में [[आत्मा]], परमात्मा, पंचभूतों तथा कर्म आदि का विवेचन किया गया है। | *शैव धर्म के दार्शनिक आचार्यो द्वारा रचे गए ग्रंथ 'शास्त्र ग्रंथ' कहलाते हैं। इन शास्त्र ग्रंथों में [[आत्मा]], परमात्मा, पंचभूतों तथा कर्म आदि का विवेचन किया गया है। | ||
*स्तोत्र ग्रंथों को शैव तिरुमुरै भी कहते है। तेरारम्, तिरुवाचागम् तिरुमंगम् आदि तिरुमुरे के अंतर्गत आते है। | *स्तोत्र ग्रंथों को शैव तिरुमुरै भी कहते है। तेरारम्, तिरुवाचागम् तिरुमंगम् आदि तिरुमुरे के अंतर्गत आते है। |
Revision as of 09:58, 23 June 2020
तिरुमंत्रम् शैव स्तोत्र ग्रंथ है, जिसके रचियता शैव संत तिरुमूलर थे।
- शैव भक्ति साहित्य दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- 'स्तोत्र ग्रंथ'
- 'शास्त्र ग्रंथ'
शैव संतों द्वारा रचित भक्ति साहित्य को 'स्तोत्र ग्रंथ' कहते हैं। इनकी संख्या 12 है।
- शैव धर्म के दार्शनिक आचार्यो द्वारा रचे गए ग्रंथ 'शास्त्र ग्रंथ' कहलाते हैं। इन शास्त्र ग्रंथों में आत्मा, परमात्मा, पंचभूतों तथा कर्म आदि का विवेचन किया गया है।
- स्तोत्र ग्रंथों को शैव तिरुमुरै भी कहते है। तेरारम्, तिरुवाचागम् तिरुमंगम् आदि तिरुमुरे के अंतर्गत आते है।
- तिरुमंत्रम् के रचियता शैव संत तिरुमूलर थे। उन्होंने इस ग्रंथ में 3000 पद्य लिखे हैं। समस्त ग्रंथ नौ तंत्रों में विभाजित हैं। ग्रंथ का प्रमुख विषय भक्ति है। किंतु इसमें भक्ति के साथ साथ दार्शनिक तत्वों का भी विशद विश्लेषण किया गया है।
- तमिल की सुप्रसिद्ध भक्त कवयित्री औवयार ने तिरुक्कुलर, तेवारम् और तिरुवाचगम् के वर्ग में तिरुमूलर के तिरुमंत्रम् को भी महत्वपूर्ण स्थान दिया है।
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