वपुष्टमा: Difference between revisions
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*राजा ने अपनी रानी को पुन: ग्रहण कर लिया। | *राजा ने अपनी रानी को पुन: ग्रहण कर लिया। | ||
*इन्द्र जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण नहीं होने देना चाहते थे। क्योंकि उनके पूर्वकृत अनेकों यज्ञों से भयभीत थे। | *इन्द्र जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण नहीं होने देना चाहते थे। क्योंकि उनके पूर्वकृत अनेकों यज्ञों से भयभीत थे। | ||
*व्यास मुनि पहले ही जनमेजय को बता चुके थे कि, "जब-जब अश्वमेध यज्ञ हुआ है, तब-तब भयंकर नरसंहार हुआ है। अत: जनमेजय का यज्ञ पूर्ण नहीं होगा तथा उसके उपरान्त क्षत्रिय गण इस यज्ञ का परित्याग कर देंगे।"<ref>[[हरिवंश पुराण]], भविष्यपर्व, 2-5|</ref> | *[[व्यास|व्यास मुनि]] पहले ही जनमेजय को बता चुके थे कि, "जब-जब अश्वमेध यज्ञ हुआ है, तब-तब भयंकर नरसंहार हुआ है। अत: जनमेजय का यज्ञ पूर्ण नहीं होगा तथा उसके उपरान्त क्षत्रिय गण इस यज्ञ का परित्याग कर देंगे।"<ref>[[हरिवंश पुराण]], भविष्यपर्व, 2-5|</ref> | ||
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Revision as of 08:15, 23 November 2010
- वपुष्टमा काशीराज की कन्या तथा जनमेजय की पत्नी थी।
- एक बार जनमेजय ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया।
- यज्ञ में मारे गये अश्व के पास वपुष्टमा ने शास्त्रीय विधि से शयन किया।
- वपुष्टमा को प्राप्त करने के लिए इन्द्र लालायित थे, अत: वे मृत अश्व में आविष्ट होकर रानी के साथ संयुक्त हुए।
- फलस्वरूप जनमेजय ने अपनी रानी का त्याग कर दिया तथा कहा, "आज से क्षत्रिय अश्वमेध से इन्द्र का यजन नहीं करेंगे।"
- यह सुनकर गंधर्वराज विश्वावसु ने राजा से कहा, "तुम व्यर्थ में ही रानी का त्याग कर रहे हो। उस रात यज्ञशाला में रानी का रूप धरकर इन्द्र द्वारा प्रेषित रंभा नामक अप्सरा थी।
- राजा ने अपनी रानी को पुन: ग्रहण कर लिया।
- इन्द्र जनमेजय का अश्वमेध यज्ञ पूर्ण नहीं होने देना चाहते थे। क्योंकि उनके पूर्वकृत अनेकों यज्ञों से भयभीत थे।
- व्यास मुनि पहले ही जनमेजय को बता चुके थे कि, "जब-जब अश्वमेध यज्ञ हुआ है, तब-तब भयंकर नरसंहार हुआ है। अत: जनमेजय का यज्ञ पूर्ण नहीं होगा तथा उसके उपरान्त क्षत्रिय गण इस यज्ञ का परित्याग कर देंगे।"[1]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ हरिवंश पुराण, भविष्यपर्व, 2-5|