थानेश्वर: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 12: | Line 12: | ||
*तृतीय मराठा युद्ध के उपरान्त यह भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग हो गया। | *तृतीय मराठा युद्ध के उपरान्त यह भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग हो गया। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार=आधार1 | |आधार=आधार1 |
Revision as of 12:30, 10 January 2011
- थानेश्वर संस्कृत साहित्य में वर्णित एक प्रख्यात प्राचीन नगर है।
- यह आधुनिक दिल्ली तथा प्राचीन इंद्रप्रस्थ नगर के उत्तर में अम्बाला और करनाल के बीच स्थित था।
- यह ब्रह्मावर्त क्षेत्र का केन्द्रबिन्दु था, जहाँ भारतीय आर्यों का सबसे पहले विस्तार हुआ।
- इसी के निकट ही कुरुक्षेत्र स्थित है। जहाँ पर कौरवों तथा पाण्डवों के बीच अठारह दिनों तक विश्व प्रसिद्ध युद्ध हुआ था, जो महाभारत महाकाव्य का प्रमुख विषय है।
- थानेश्वर को 'स्थानेश्वर' भी कहते हैं, जो कि शिव का पवित्र स्थान था।
- छठी शताब्दी के अन्त में यह पुष्यभूति वंश की राजधानी बना और इसके शासक प्रभाकरनवर्धन ने इसे एक विशाल साम्राज्य, जिसके अंतर्गत मालवा, उत्तर-पश्चिम पंजाब और राजपूताना का कुछ भाग आता था, केन्द्रीय नगर बनाया।
- प्रभाकरनवर्धन के छोटे पुत्र हर्षवर्धन के काल (606-647) में इसका महत्व घट गया। उसने अपने अपेक्षाकृत अधिक विशाल साम्राज्य की राजधानी कन्नौज को बनाया।
- सातवीं और आठवीं शताब्दी में हूण आक्रमणों के फलस्वरूप इस नगर का तेज़ी से पतन हो गया। फिर भी यह हिन्दुओं का पवित्र तीर्थ स्थान बना रहा।
- 1014 ई0 में यह सुल्तान महमूद द्वारा लूटा तथा नष्ट कर दिया गया और अन्तत: पंजाब के गजनवी राज्य का एक अंग हो गया।
- यह दिल्ली जाने वाली सड़क पर स्थित है।
- इसके इर्द-गिर्द क्षेत्र में तराइन के दो तथा पानीपत के तीन युद्ध हुए, जिन्होंने कई बार भारत के भाग्य का निर्णय किया।
- तृतीय मराठा युद्ध के उपरान्त यह भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य का अंग हो गया।
|
|
|
|
|