प्रार्थना समाज: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
No edit summary |
व्यवस्थापन (talk | contribs) m (Text replace - "{{लेख प्रगति" to "{{प्रचार}} {{लेख प्रगति") |
||
Line 3: | Line 3: | ||
ब्राह्म समाजियों के विपरीत प्रार्थना समाज के सदस्य अपने को हिन्दू मानते थे। वे [[एकेश्वरवाद]] में विश्वास करते थे और महाराष्ट्र के [[तुकाराम]] तथा [[रामदास]] जैसे महान संतों की परम्परा के अनुयायी थे। उन्होंने अपना मुख्य ध्यान हिन्दुओं में समाज सुधार के कार्यों, जैसे सहभोज, अंतजार्तीय विवाह, विधवा विवाह, अछूतोद्धार आदि में लगाया। प्रार्थना समाज ने बहुत से समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें जस्टिस [[महादेव गोविन्द रानाडे]] भी थे। मुख्य रूप से उनके प्रयत्न से प्रार्थना समाज की ओर से '''दक्कन एजुकेशन सोसाइटी''' (दक्षिण शिक्षा समिति) जैसी लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना की गई। | ब्राह्म समाजियों के विपरीत प्रार्थना समाज के सदस्य अपने को हिन्दू मानते थे। वे [[एकेश्वरवाद]] में विश्वास करते थे और महाराष्ट्र के [[तुकाराम]] तथा [[रामदास]] जैसे महान संतों की परम्परा के अनुयायी थे। उन्होंने अपना मुख्य ध्यान हिन्दुओं में समाज सुधार के कार्यों, जैसे सहभोज, अंतजार्तीय विवाह, विधवा विवाह, अछूतोद्धार आदि में लगाया। प्रार्थना समाज ने बहुत से समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें जस्टिस [[महादेव गोविन्द रानाडे]] भी थे। मुख्य रूप से उनके प्रयत्न से प्रार्थना समाज की ओर से '''दक्कन एजुकेशन सोसाइटी''' (दक्षिण शिक्षा समिति) जैसी लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना की गई। | ||
{{प्रचार}} | |||
{{लेख प्रगति | {{लेख प्रगति | ||
|आधार=आधार1 | |आधार=आधार1 |
Revision as of 12:54, 10 January 2011
प्रार्थना समाज इसकी स्थापना 1867 ई. में ब्रह्मसमाज के नेता केशवचन्द सेन के निर्देशन में महाराष्ट्र में की गई।
विचार एवं कर्तव्य
ब्राह्म समाजियों के विपरीत प्रार्थना समाज के सदस्य अपने को हिन्दू मानते थे। वे एकेश्वरवाद में विश्वास करते थे और महाराष्ट्र के तुकाराम तथा रामदास जैसे महान संतों की परम्परा के अनुयायी थे। उन्होंने अपना मुख्य ध्यान हिन्दुओं में समाज सुधार के कार्यों, जैसे सहभोज, अंतजार्तीय विवाह, विधवा विवाह, अछूतोद्धार आदि में लगाया। प्रार्थना समाज ने बहुत से समाज सुधारकों को अपनी ओर आकर्षित किया, जिसमें जस्टिस महादेव गोविन्द रानाडे भी थे। मुख्य रूप से उनके प्रयत्न से प्रार्थना समाज की ओर से दक्कन एजुकेशन सोसाइटी (दक्षिण शिक्षा समिति) जैसी लोकोपकारी संस्थाओं की स्थापना की गई।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ