नैमिषारण्य: Difference between revisions
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Revision as of 13:32, 20 January 2011
नैमिषारण्य, उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले में गोमती नदी का तटवर्ती एक प्राचीन तीर्थस्थल है।
नैमिष नामकरण
इस तीर्थस्थल के बारे में कहा जाता है कि महर्षि शौनक के मन में दीर्घकालव्यापी ज्ञानसत्र करने की इच्छा थी। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु भगवान ने उन्हें एक चक्र दिया और कहा कि इसे चलाते हुए चले जाओ; जहाँ पर इस चक्र की नेमि (परिधि) गिर जाए, उसी स्थल को पवित्र समझना और वहीं आश्रम बनाकर ज्ञानसत्र करना। शौनक के साथ अठासी (88) सहस्र ऋषि थे। वे सब उस चक्र के पीछे घूमने लगे। गोमती नदी के किनारे एक वन में चक्र की नेमि गिर गई और वहीं पर वह चक्र भूमि में प्रवेश कर गया। चक्र की नेमि गिरने से वह क्षेत्र नैमिष कहा गया। इसी को नैमिषारण्य कहते हैं।
प्राचीन स्थिति
पुराणों में नैमिषारण्य तीर्थ का बहुधा उल्लेख मिलता है। जब भी कोई धार्मिक समस्या उत्पन्न होती थी, उसके समाधान के लिए ऋषिगण यहाँ एकत्र होते थे। वैदिक ग्रन्थों के कतिपय उल्लेखों में प्राचीन नैमिष वन की स्थिति सरस्वती नदी के तट पर कुरुक्षेत्र के समीप भी मानी गई है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
(पुस्तक 'हिन्दू धर्मकोश') पृष्ठ संख्या-376