आलमगीर द्वितीय: Difference between revisions
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1756 ई. में [[अहमदशाह अब्दाली]] ने चौथी बार हिन्दुस्तान पर हमला किया और [[दिल्ली]] को लूटा। उसने [[सिन्ध]] पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपने बेटे [[तैमूर]] को वहाँ का शासन करने के लिए छोड़ दिया। | 1756 ई. में [[अहमदशाह अब्दाली]] ने चौथी बार हिन्दुस्तान पर हमला किया और [[दिल्ली]] को लूटा। उसने [[सिंध प्रांत|सिन्ध]] पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपने बेटे [[तैमूर]] को वहाँ का शासन करने के लिए छोड़ दिया। | ||
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इसके बाद ही [[मराठा|मराठों]] ने 1758 ई. में दिल्ली पर चढ़ाई की और [[पंजाब]] को जीतकर तैमूर को वहाँ से निकाल दिया। बादशाह आलमगीर इस सब घटनाओं का असहाय दर्शक बना रहा। जब उसने वज़ीर गाज़ीउद्दीन के नियंत्रण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया तो 1759 ई. में वज़ीर ने उसकी भी हत्या करवा दी। इससे पहले [[प्लासी की लड़ाई]] 1757 ई. में हो चुकी थी और उसमें [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की जीत हो चुकी थी। बादशाह आलमगीर द्वितीय [[बंगाल]] को मुग़लों के क़ब्ज़े में बनाये रखने और इस प्रकार [[भारत]] में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव न पड़ने देने के लिए कुछ न कर सका। | इसके बाद ही [[मराठा|मराठों]] ने 1758 ई. में दिल्ली पर चढ़ाई की और [[पंजाब]] को जीतकर तैमूर को वहाँ से निकाल दिया। बादशाह आलमगीर इस सब घटनाओं का असहाय दर्शक बना रहा। जब उसने वज़ीर गाज़ीउद्दीन के नियंत्रण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया तो 1759 ई. में वज़ीर ने उसकी भी हत्या करवा दी। इससे पहले [[प्लासी की लड़ाई]] 1757 ई. में हो चुकी थी और उसमें [[ईस्ट इंडिया कम्पनी]] की जीत हो चुकी थी। बादशाह आलमगीर द्वितीय [[बंगाल]] को [[मुग़ल|मुग़लों]] के क़ब्ज़े में बनाये रखने और इस प्रकार [[भारत]] में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव न पड़ने देने के लिए कुछ न कर सका। | ||
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आलमगीर द्वितीय 16वाँ मुग़ल बादशाह (1754-59) था। वह आठवें मुग़ल बादशाह जहाँदार शाह (1712-13) का बेटा था। उसके वज़ीर गाज़ीउद्दीन ने 1759 ई. में उसकी हत्या करवा दी।
गाज़ीउद्दीन की साज़िश
वज़ीर गाज़ीउद्दीन ने 15वें मुग़ल बादशाह अहमद शाह को अन्धा करके गद्दी से उतार दिया और 1754 ई. में आलमगीर द्वितीय को बादशाह बनाया। वह चाहता था कि बादशाह उसके हाथ की कठपुतली बना रहे। वह समय बड़ी उथल-पुथल का था।
अब्दाली का हमला
1756 ई. में अहमदशाह अब्दाली ने चौथी बार हिन्दुस्तान पर हमला किया और दिल्ली को लूटा। उसने सिन्ध पर क़ब्ज़ा कर लिया और अपने बेटे तैमूर को वहाँ का शासन करने के लिए छोड़ दिया।
आलमगीर की असहायता
इसके बाद ही मराठों ने 1758 ई. में दिल्ली पर चढ़ाई की और पंजाब को जीतकर तैमूर को वहाँ से निकाल दिया। बादशाह आलमगीर इस सब घटनाओं का असहाय दर्शक बना रहा। जब उसने वज़ीर गाज़ीउद्दीन के नियंत्रण से अपने को मुक्त करने का प्रयास किया तो 1759 ई. में वज़ीर ने उसकी भी हत्या करवा दी। इससे पहले प्लासी की लड़ाई 1757 ई. में हो चुकी थी और उसमें ईस्ट इंडिया कम्पनी की जीत हो चुकी थी। बादशाह आलमगीर द्वितीय बंगाल को मुग़लों के क़ब्ज़े में बनाये रखने और इस प्रकार भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की नींव न पड़ने देने के लिए कुछ न कर सका।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ