आनन्द मोहन बोस: Difference between revisions

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'''मृत्यु से कुछ महीने पूर्व उनका''' अन्तिम सार्वजनिक कार्य, 16 अक्टूबर, [[1905]] ई. को कलकत्ता में फ़ेडरेशन हॉल का शिलान्यास करना था। शिक्षाविद के रूप में उन्होंने देश की जो सेवा की, कलकत्ता का सिटी कॉलेज और मेमनसिंह स्थित आनन्द मोहन कॉलेज उसका साक्षी है। वे अत्यधिक धर्मभीरु और बुद्धिवादी दृष्टिकोण से सम्पन्न व्यक्ति थे। जीवन के आरम्भिक दिनों में वे ब्रह्मसमाजी हो गए थे, उन्होंने ब्रह्मसमाज आन्दोलन के विकास में प्रमुख भाग लिया। वे साधारण [[ब्रह्मसमाज]] के प्रथम अध्यक्ष भी हुए और इस संगठन का लोकतान्त्रिक विधान उन्हीं की देन है।  
'''मृत्यु से कुछ महीने पूर्व उनका''' अन्तिम सार्वजनिक कार्य, 16 अक्टूबर, [[1905]] ई. को कलकत्ता में फ़ेडरेशन हॉल का शिलान्यास करना था। शिक्षाविद के रूप में उन्होंने देश की जो सेवा की, कलकत्ता का सिटी कॉलेज और मेमनसिंह स्थित आनन्द मोहन कॉलेज उसका साक्षी है। वे अत्यधिक धर्मभीरु और बुद्धिवादी दृष्टिकोण से सम्पन्न व्यक्ति थे। जीवन के आरम्भिक दिनों में वे ब्रह्मसमाजी हो गए थे, उन्होंने 'ब्रह्मसमाज आन्दोलन' के विकास में प्रमुख भाग लिया। वे साधारण [[ब्रह्मसमाज]] के प्रथम अध्यक्ष भी हुए और इस संगठन का लोकतान्त्रिक विधान उन्हीं की देन है।  
 
 


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(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-299
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Revision as of 05:48, 5 February 2011

आनन्द मोहन बोस (1847-1906 ई.) अपने समय के प्रमुख जनसेवी थे। मेमनसिंह ज़िले के मध्यवर्गीय हिन्दू परिवार में इनका जन्म हुआ था।

शिक्षा

इनकी शिक्षा प्रेसीडेन्सी कॉलेज कलकत्ता में हुई। 1867 ई. में गणित में प्रथम श्रेणी में स्थान प्राप्त कर इन्होंने 'प्रेमचन्द रायचन्द छात्रवृत्ति' पाई। आनन्द मोहन बोस कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में 1873 ई. में रैंगलर होने वाले प्रथम भारतीय व्यक्ति थे। 1874 ई. में वह बैरिस्टर बनकर स्वदेश लौट आए। भारत लौट आने पर इन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा को राजनीतिज्ञ, शिक्षाविद और धार्मिक सुधार के रूप में देश की सेवा में उत्सर्ग कर दिया। वे इण्डियन एसोसियेशन के, जिसकी स्थापना कलकत्ता में 1876 ई. में की गई थी, प्रथम संस्थापक सचिव थे।

कांग्रेस अधिवेशन

1883 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन कलकत्ता में सम्पन्न कराने में उन्होंने अपना प्रमुख योगदान किया था। जिससे 1885 ई. में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना का मार्ग प्रशस्त हुआ। वे आजीवन कांग्रेस के प्रमुख सदस्य रहे और 1898 ई. में मद्रास में होने वाले कांग्रेस के चौदहवें अधिवेशन की अध्यक्षता उन्होंने ही की थी। उन्होंने बंग-भंग विरोधी आन्दोलन में प्रमुख भाग लिया और स्वदेशी आन्दोलन चलाने का सुझाव देने वालों में वे अग्रणी थे।

देश सेवा

मृत्यु से कुछ महीने पूर्व उनका अन्तिम सार्वजनिक कार्य, 16 अक्टूबर, 1905 ई. को कलकत्ता में फ़ेडरेशन हॉल का शिलान्यास करना था। शिक्षाविद के रूप में उन्होंने देश की जो सेवा की, कलकत्ता का सिटी कॉलेज और मेमनसिंह स्थित आनन्द मोहन कॉलेज उसका साक्षी है। वे अत्यधिक धर्मभीरु और बुद्धिवादी दृष्टिकोण से सम्पन्न व्यक्ति थे। जीवन के आरम्भिक दिनों में वे ब्रह्मसमाजी हो गए थे, उन्होंने 'ब्रह्मसमाज आन्दोलन' के विकास में प्रमुख भाग लिया। वे साधारण ब्रह्मसमाज के प्रथम अध्यक्ष भी हुए और इस संगठन का लोकतान्त्रिक विधान उन्हीं की देन है।  


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

(पुस्तक 'भारतीय इतिहास कोश') पृष्ठ संख्या-299