सूर्य (तारा): Difference between revisions

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*सूर्य [[सौरमण्डल]] का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है।
* सूर्य सौर मंडल मे सबसे बड़ा पिण्ड है। सूर्य का व्यास 1390000 किमी तथा द्र्व्यमान 1.989e30 किलो है। सौर मंडल के द्रव्यमान का कुल 99.8% द्रव्यमान सूर्य का है। बाकि बचे मे अधिकतर में बृहस्पति का द्रव्यमान है। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किमी. है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है, और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है। सूर्य के प्रकाश को [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] तक पहुँचने में 8 मिन्ट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है।
*दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 250 किमी./से. की [[गति]] से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 25 करोड़ वर्ष है। जिसे [[ब्रह्माण्ड]] वर्ष (Cosmos Year) कहते हैं।
* हमारा सूर्य आकाशगंगा के 100 अरब से अधिक तारो मे से एक सामान्य मुख्य क्रम का G2 श्रेणी का साधारण तारा है। यह अक्सर कहा जाता है कि सूर्य एक साधारण तारा है। यह इस तरह से सच है कि सूर्य के जैसे लाखों तारे है। लेकिन सूर्य से बड़े तारो की तुलना मे छोटे तारे ज्यादा है। सूर्य द्रव्यमान से शीर्ष 10% तारो मे है । हमारी आकाशगंगा में सितारों का औसत द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के आधे से भी कम है।
*सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है। इसका मध्य भाग 25 दिनों में व ध्रवीय भाग 35 दिनों में एक धूर्णन करता है।
* सूर्य पौराणिक कथाओं में एक मुख्य देवता रहा है, वेदो मे कई मंत्र सूर्य के लिये है, यूनानियों ने इसे हेलियोस कहा है और रोमनो ने सोल।
*सूर्य एक [[गैस|गैसीय]] गोला है, जिसमें [[हाइड्रोजन]] 71%, [[हीलियम]] 26.5% एवं अन्य [[तत्व]] 2.5% होता है।  
* सूर्य [[सौरमण्डल]] का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 250 किमी./से. की [[गति]] से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 25 करोड़ वर्ष है। जिसे [[ब्रह्माण्ड]] वर्ष (Cosmos Year) कहते हैं।
*सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड (Core) कहलाता है, जिसका [[ताप]] 1.5×107 ºC होता है तथा सूर्य के बाहरी सतह का तापमान 6000 डिग्री c है।
* सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है। सूर्य की बाहरी परते भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों मे एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन है। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे ठोस नहीं है। इसी तरह का प्रभाव गैस ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।
*हैंस बेथ (Hans Bethe) ने बताया कि 107 ºC ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चारों हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है। अर्थात् सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की [[ऊर्जा]] का स्रोत है।  
* सूर्य एक [[गैस|गैसीय]] गोला है, वर्तमान में सूर्य के द्रव्यमान का 71% [[हाइड्रोजन]] 26.5% [[हीलियम]] और 2.5% अन्य धातु/तत्व है। यह अनुपात धीमे धीमे बदलता है क्योंकि सूर्य हायड्रोजन को जलाकर हिलियम बनाता है। हैंस बेथ (Hans Bethe) ने बताया कि 107 ºC ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चारों हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है। अर्थात् सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की [[ऊर्जा]] का स्रोत है।
*सूर्य की दीप्तीमान सतह को प्रकाश मण्डल (Photo sphere) कहते हैं। प्रकाश मण्डल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमण्डल प्रकाश का [[अवशोषण]] कर लेता है। इसे वर्ण मण्डल (Chromosphere) कहते हैं। यह काले रंग का होता है।  
* सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड (Core) (कुल अंतः त्रिज्या का 25%) कहलाता है, अपने चरम तापमान पर है; यहां तापमान 15600000 डिग्री केल्विन (1.5×107 ºC) है और दबाव 250 बिलियन वायुमंडलीय दबाव है। सूर्य के केंद्र पर घनत्व पानी के घनत्व से 150 गुना से अधिक है।
*सूर्यग्रहण के समय दिखाई देने वाले भाग को सूर्य–किरीट (corona) कहते हैं। सूर्य–किरीट एक्स–रे उत्सर्जित करता है। इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है। पूर्ण सूर्य–ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है।  
सूर्य की शक्ति (386 अरब डॉलर मेगावाट/सेकंड) नाभिकीय संलयन द्वारा निर्मित है। हर सेकंड  700,000,000 टन की हाइड्रोजन 695000000 टन मे परिवर्तित हो जाती है शेष 5,000,000 टन गामा किरणो के रूप मे उर्जा मे परिवर्तित हो जाती है। यह उर्जा जैसे जैसे केंद्र से सतह की तरह बढती है विभिन्न परतो द्वारा अवशोषित हो कर कम तापमान पर उत्सर्जित होती है। सतह पर यह मुख्य रूप मे प्रकाश किरणो के रूप मे उत्सर्जित होती है। इस तरह से केंद्र में निर्मित कुल उर्जा का 20% भाग ही उत्सर्जित होता है।
*सूर्य की उम्र—5 बिलियन वर्ष है।
* सूर्य की सतह, जो दीप्तीमान रहता हैं, जिसे प्रकाश मण्डल (Photo sphere) कहा जाता है का तापमान 5800 डिग्री केल्वीन (6000 ºC) है। प्रकाश मण्डल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमण्डल प्रकाश का [[अवशोषण]] कर लेता है। इसे वर्ण मण्डल (Chromosphere) कहते हैं। यह काले रंग का होता है। फोटोस्फीयर से उपर का क्षेत्र क्रोमोस्फियर कहलाता है। क्रोमोस्फीयर के उपर का क्षेत्र जिसे सूर्य–किरीट (corona) कहते है अंतरिक्ष मे लाखों किमी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र का तापमान 1,000,000 डीग्री केल्वीन तक होता है। यह क्षेत्र केवल सूर्य ग्रहण के समय दिखायी देता है। सूर्य–किरीट एक्स–रे उत्सर्जित करता है। इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है। पूर्ण सूर्य–ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं।  
*भविष्य में सूर्य के द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 1011 प्रकाशवर्ष है।
* सूर्य, गर्मी और प्रकाश के अलावा इलेक्ट्रान और प्रोटॉन की एक धारा जिसे सौर वायू कहते है का भी उत्सर्जन करता है जो 450 किमी/सेकंड की रफ्तार से बहती है। सौर वायु और सौर ज्वाला के द्वारा अधिक उर्जा के कणो का प्र्वाह होता है जिससे पृथ्वी पर बिजली की लाईनो के अलावा संचार उपग्रह और संचार माध्यमो पर प्रभाव पडता है। इसी से ध्रुविय क्षेत्रो मे सुंदर अरोरा बनते है।
*सूर्य के प्रकाश को [[पृथ्वी ग्रह|पृथ्वी]] तक पहुँचने में 8 मिन्ट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है।
* सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो (चलते हुए गेसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रो से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफी बड़े हो सकते है, इनका व्यास 50000 किमी हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकिय क्षेत्रो मे परिवर्तन से बनते है। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत (Magnetic Storms) उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टलीविजन, बिजली चालित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मजबूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है।
*सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं।  
* वह सूर्य का निरंतर उर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा मे नही होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधी। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध मे सूर्य धब्बे अपने न्युनतम पर थे। इसी समय मे युरोप मे ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य उर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।
*सूर्य के धब्बे (चलते हुए गेसों के खोल) का तापमान आसपास के तापमान से 1500 ºC कम होता है। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत (Magnetic Storms) उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टलीविजन, बिजली चालित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है।
* पृथ्वी से चंद्रमा और सूर्य एक ही आकार के दिखाई देते है। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा उसी प्रतल मे करता है जिस प्रतल मे पृथ्वी सूर्य परिक्रमा करती है। इस कारण कभी कभी चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आ जाता है और सूर्य ग्रहण होता है। यह सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी का एक रेखा मे आना यदि पुर्णतः ना हो तो चन्द्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ही ढक पाता है हैं, इसे आंशिक चन्द्रग्रहण कहते है। तिनो खगोलिय पिण्डो के एक रेखा मे होने पर चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है जिससे पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण एक बृहद क्षेत्र मे दिखायी देता है लेकिन पूर्ण सूर्यग्रहण एक बेहद संकरी पट्टी (कुछ किमी) मे दिखायी देता है। हांलांकि यह पट्टी हजारो किमी लम्बी हो सकती है। सूर्यग्रहण साल मे एक या दो बार होता है। पूर्ण सूर्यग्रहण देखना एक अद्भूत अनुभव है जब आप चन्द्रमा की छाया मे खड़े होते है और सूर्य कोरोना देख सकते है। पक्षी इसे रात का समय सोचकर सोने की तैयारी करते है।
*सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किमी. है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है।  
* अंतरिक्ष यान युलीसीस से प्राप्त आंकड़ो से पता चलता है जब सौर गतिविधी अपने निम्न पर होती है ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू दूगनी गति 750 किमी/सेकंड से बहती है जो कि उच्च अक्षासो मे कम होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू  की संरचना भी अलग होती है । सौर गतिविधी के चरम पर यह यह अपने मध्यम गति पर बहती है।
*सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है, और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है।
* सूर्य की उम्र 4.5 बिलियन वर्ष है अर्थात सूर्य 4.5 अरब वर्ष पूराना है। उसने अपने पास की कुल हाइड्रोजन का आधा हिस्सा प्रयोग कर लिया है लेकिन इसके पास अगले 5 अरब वर्षो के लिये पर्याप्त इंधन है अर्थात भविष्य में सूर्य के द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 1011 प्रकाशवर्ष है। उस समय उसकी चमक लगभग दूगनी हो जायेगी। लेकिन अतत: उसकी हाइड्रोजन खत्म हो जायेगी और वह एक लाल महादानव मे बदल जायेगा। उस समय सूर्य मंगल की कक्षा तक फूल जायेगा। पृथ्वी नष्ट हो जायेगी। शायद सूर्य की मौत एक ग्रहीय निहारिका के रूप मे होगी।
 
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Revision as of 14:22, 5 February 2011

thumb|300px|right|सूर्य
Sun

  • सूर्य सौर मंडल मे सबसे बड़ा पिण्ड है। सूर्य का व्यास 1390000 किमी तथा द्र्व्यमान 1.989e30 किलो है। सौर मंडल के द्रव्यमान का कुल 99.8% द्रव्यमान सूर्य का है। बाकि बचे मे अधिकतर में बृहस्पति का द्रव्यमान है। सूर्य का व्यास 13 लाख 92 हज़ार किमी. है, जो पृथ्वी के व्यास का लगभग 110 गुना है। सूर्य पृथ्वी से 13 लाख गुना बड़ा है, और पृथ्वी को सूर्यताप का 2 अरबवाँ भाग मिलता है। सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिन्ट 16.6 सेकेण्ड का समय लगता है।
  • हमारा सूर्य आकाशगंगा के 100 अरब से अधिक तारो मे से एक सामान्य मुख्य क्रम का G2 श्रेणी का साधारण तारा है। यह अक्सर कहा जाता है कि सूर्य एक साधारण तारा है। यह इस तरह से सच है कि सूर्य के जैसे लाखों तारे है। लेकिन सूर्य से बड़े तारो की तुलना मे छोटे तारे ज्यादा है। सूर्य द्रव्यमान से शीर्ष 10% तारो मे है । हमारी आकाशगंगा में सितारों का औसत द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान के आधे से भी कम है।
  • सूर्य पौराणिक कथाओं में एक मुख्य देवता रहा है, वेदो मे कई मंत्र सूर्य के लिये है, यूनानियों ने इसे हेलियोस कहा है और रोमनो ने सोल।
  • सूर्य सौरमण्डल का प्रधान है। यह हमारी मंदाकिनी दुग्धमेखला के केन्द्र से लगभग 30,000 प्रकाशवर्ष की दूरी पर एक कोने में स्थित है। दुग्धमेखला मंदाकिनी के केन्द्र के चारों ओर 250 किमी./से. की गति से परिक्रमा कर रहा है। इसका परिक्रमण काल (दुग्धमेखला के केन्द्र के चारों ओर एक बार घूमने में लगा समय) 25 करोड़ वर्ष है। जिसे ब्रह्माण्ड वर्ष (Cosmos Year) कहते हैं।
  • सूर्य अपने अक्ष पर पूर्व से पश्चिम की ओर घूमता है। सूर्य की बाहरी परते भिन्न भिन्न घुर्णन गति दर्शाती है, भूमध्य रेखा ( मध्य भाग ) पर सतह हर 25.4 दिनों मे एक बार घूमती है, ध्रुवो के पास यह 36 दिन है। यह अजीब व्यवहार इस तथ्य के कारण है कि सूर्य पृथ्वी के जैसे ठोस नहीं है। इसी तरह का प्रभाव गैस ग्रहों में देखा जाता है। सूर्य का केन्द्र एक ठोस पिण्ड के जैसे घुर्णन करता है।
  • सूर्य एक गैसीय गोला है, वर्तमान में सूर्य के द्रव्यमान का 71% हाइड्रोजन 26.5% हीलियम और 2.5% अन्य धातु/तत्व है। यह अनुपात धीमे धीमे बदलता है क्योंकि सूर्य हायड्रोजन को जलाकर हिलियम बनाता है। हैंस बेथ (Hans Bethe) ने बताया कि 107 ºC ताप पर सूर्य के केन्द्र पर चारों हाइड्रोजन नाभिक मिलकर एक हीलियम नाभिक का निर्माण करता है। अर्थात् सूर्य के केन्द्र पर नाभिकीय संलयन होता है जो सूर्य की ऊर्जा का स्रोत है।
  • सूर्य का केन्द्रीय भाग क्रोड (Core) (कुल अंतः त्रिज्या का 25%) कहलाता है, अपने चरम तापमान पर है; यहां तापमान 15600000 डिग्री केल्विन (1.5×107 ºC) है और दबाव 250 बिलियन वायुमंडलीय दबाव है। सूर्य के केंद्र पर घनत्व पानी के घनत्व से 150 गुना से अधिक है।

सूर्य की शक्ति (386 अरब डॉलर मेगावाट/सेकंड) नाभिकीय संलयन द्वारा निर्मित है। हर सेकंड 700,000,000 टन की हाइड्रोजन 695000000 टन मे परिवर्तित हो जाती है शेष 5,000,000 टन गामा किरणो के रूप मे उर्जा मे परिवर्तित हो जाती है। यह उर्जा जैसे जैसे केंद्र से सतह की तरह बढती है विभिन्न परतो द्वारा अवशोषित हो कर कम तापमान पर उत्सर्जित होती है। सतह पर यह मुख्य रूप मे प्रकाश किरणो के रूप मे उत्सर्जित होती है। इस तरह से केंद्र में निर्मित कुल उर्जा का 20% भाग ही उत्सर्जित होता है।

  • सूर्य की सतह, जो दीप्तीमान रहता हैं, जिसे प्रकाश मण्डल (Photo sphere) कहा जाता है का तापमान 5800 डिग्री केल्वीन (6000 ºC) है। प्रकाश मण्डल के किनारे प्रकाशमान नहीं होते, क्योंकि सूर्य का वायुमण्डल प्रकाश का अवशोषण कर लेता है। इसे वर्ण मण्डल (Chromosphere) कहते हैं। यह काले रंग का होता है। फोटोस्फीयर से उपर का क्षेत्र क्रोमोस्फियर कहलाता है। क्रोमोस्फीयर के उपर का क्षेत्र जिसे सूर्य–किरीट (corona) कहते है अंतरिक्ष मे लाखों किमी तक फैला हुआ है। इस क्षेत्र का तापमान 1,000,000 डीग्री केल्वीन तक होता है। यह क्षेत्र केवल सूर्य ग्रहण के समय दिखायी देता है। सूर्य–किरीट एक्स–रे उत्सर्जित करता है। इसे सूर्य का मुकुट कहा जाता है। पूर्ण सूर्य–ग्रहण के समय सूर्य किरीट से प्रकाश की प्राप्ति होती है। सौर ज्वाला को उत्तरी ध्रुव पर औरोरा बोरियलिस और दक्षिणी ध्रुव पर औरोरा औस्ट्रेलिस कहते हैं।
  • सूर्य, गर्मी और प्रकाश के अलावा इलेक्ट्रान और प्रोटॉन की एक धारा जिसे सौर वायू कहते है का भी उत्सर्जन करता है जो 450 किमी/सेकंड की रफ्तार से बहती है। सौर वायु और सौर ज्वाला के द्वारा अधिक उर्जा के कणो का प्र्वाह होता है जिससे पृथ्वी पर बिजली की लाईनो के अलावा संचार उपग्रह और संचार माध्यमो पर प्रभाव पडता है। इसी से ध्रुविय क्षेत्रो मे सुंदर अरोरा बनते है।
  • सूर्य पर कुछ सूर्य धब्बो (चलते हुए गेसों के खोल) के क्षेत्र होते है जिनका तापमान अन्य क्षेत्रो से कुछ कम लगभग 3800 डिग्री केल्वीन (1500 ºC) होता है। सूर्य धब्बे काफी बड़े हो सकते है, इनका व्यास 50000 किमी हो सकता है। सूर्य धब्बे सूर्य के चुंबकिय क्षेत्रो मे परिवर्तन से बनते है। सूर्य के धब्बों का एक पूरा चक्र 22 वर्षों का होता है। पहले 11 वर्षों तक यह धब्बा बढ़ता है और बाद के 11 वर्षों तक यह धब्बा घटता है। जब सूर्य की सतह पर धब्बा दिखलाई देता है, उस समय पृथ्वी पर चुम्बकीय झंझावत (Magnetic Storms) उत्पन्न होते हैं। इससे चुम्बकीय सुई की दिशा बदल जाती है, एवं रेडियो, टलीविजन, बिजली चालित मशीनों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाती है। सूर्य के चुंबकीय क्षेत्र बहुत मजबूत है (स्थलीय मानकों के द्वारा) और बहुत जटिल है। इसका हेलीयोस्फियर भी कहते है जो प्लूटो के परे तक फैला हुआ है।
  • वह सूर्य का निरंतर उर्जा उत्पादन सतत एक मात्रा मे नही होता है, ना ही सूर्य धब्बो की गतिविधी। 17वी शताब्दी के उत्तारार्ध मे सूर्य धब्बे अपने न्युनतम पर थे। इसी समय मे युरोप मे ठंड अप्रत्याशित रूप से बढ गयी थी। सौर मंडल के जन्म के बाद से सूर्य उर्जा का उत्पादन 40% बढ़ गया है।
  • पृथ्वी से चंद्रमा और सूर्य एक ही आकार के दिखाई देते है। चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा उसी प्रतल मे करता है जिस प्रतल मे पृथ्वी सूर्य परिक्रमा करती है। इस कारण कभी कभी चन्द्रमा सूर्य और पृथ्वी के मध्य आ जाता है और सूर्य ग्रहण होता है। यह सूर्य चन्द्रमा और पृथ्वी का एक रेखा मे आना यदि पुर्णतः ना हो तो चन्द्रमा सूर्य को आंशिक रूप से ही ढक पाता है हैं, इसे आंशिक चन्द्रग्रहण कहते है। तिनो खगोलिय पिण्डो के एक रेखा मे होने पर चन्द्रमा सूर्य को पूरी तरह ढक लेता है जिससे पूर्ण सूर्यग्रहण होता है। आंशिक सूर्यग्रहण एक बृहद क्षेत्र मे दिखायी देता है लेकिन पूर्ण सूर्यग्रहण एक बेहद संकरी पट्टी (कुछ किमी) मे दिखायी देता है। हांलांकि यह पट्टी हजारो किमी लम्बी हो सकती है। सूर्यग्रहण साल मे एक या दो बार होता है। पूर्ण सूर्यग्रहण देखना एक अद्भूत अनुभव है जब आप चन्द्रमा की छाया मे खड़े होते है और सूर्य कोरोना देख सकते है। पक्षी इसे रात का समय सोचकर सोने की तैयारी करते है।
  • अंतरिक्ष यान युलीसीस से प्राप्त आंकड़ो से पता चलता है जब सौर गतिविधी अपने निम्न पर होती है ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू दूगनी गति 750 किमी/सेकंड से बहती है जो कि उच्च अक्षासो मे कम होती है। ध्रुवीय क्षेत्रों से प्रवाहित सौर वायू की संरचना भी अलग होती है । सौर गतिविधी के चरम पर यह यह अपने मध्यम गति पर बहती है।
  • सूर्य की उम्र 4.5 बिलियन वर्ष है अर्थात सूर्य 4.5 अरब वर्ष पूराना है। उसने अपने पास की कुल हाइड्रोजन का आधा हिस्सा प्रयोग कर लिया है लेकिन इसके पास अगले 5 अरब वर्षो के लिये पर्याप्त इंधन है अर्थात भविष्य में सूर्य के द्वारा ऊर्जा देते रहने का समय 1011 प्रकाशवर्ष है। उस समय उसकी चमक लगभग दूगनी हो जायेगी। लेकिन अतत: उसकी हाइड्रोजन खत्म हो जायेगी और वह एक लाल महादानव मे बदल जायेगा। उस समय सूर्य मंगल की कक्षा तक फूल जायेगा। पृथ्वी नष्ट हो जायेगी। शायद सूर्य की मौत एक ग्रहीय निहारिका के रूप मे होगी।


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