साईंबाबा जी की आरती: Difference between revisions
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आरती श्री साई गुरुवर की, परमानंद सदा रघुवर की | | |||
जाकी कृपा विपुल सुखकारी, दु:ख शोक संकट भयहारी | | |||
शिरडी में अवतार रचाया, चमत्कार से तत्व दिखाया | | |||
कितने भक्त चरण पर आये, वे सुख शंति चिंतन पाये | | |||
भाव धरे जो मन में जैसा, पावत अनुभव वो ही वैसा | | |||
गुरु की उदी लगावे तन को, समाधान लाभत उस मन को | | |||
साई नाम सदा जो गावें, सो फल जग में शाश्वत पावें | | |||
गुरुवासर करि पूजा सेव, उस पर कृपा करत गुरु देवा | | |||
राम कृष्ण हनुमान रुप में, दे दर्शन जो जानत मन में | | |||
विविध धर्म के सेवक आतें, दर्शन कर इच्छित फल पातें | | |||
जै बोलो साई बाबा की, जै बोलो अवधुत गुरु की | | |||
साई दास आरती को गावे, घर में बसि सुख मंगल पावे | </poem></span></blockquote> | |||
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सौख्यदातारा जीवा । चरणरजतळीं निज दासां विसावां । | सौख्यदातारा जीवा । चरणरजतळीं निज दासां विसावां । |
Revision as of 18:45, 14 February 2011
[[चित्र:shirdisaibaba.jpg|thumb|250|साईं बाबा
Sai Baba]]
आरती श्री साई गुरुवर की, परमानंद सदा रघुवर की |
जाकी कृपा विपुल सुखकारी, दु:ख शोक संकट भयहारी |
शिरडी में अवतार रचाया, चमत्कार से तत्व दिखाया |
कितने भक्त चरण पर आये, वे सुख शंति चिंतन पाये |
भाव धरे जो मन में जैसा, पावत अनुभव वो ही वैसा |
गुरु की उदी लगावे तन को, समाधान लाभत उस मन को |
साई नाम सदा जो गावें, सो फल जग में शाश्वत पावें |
गुरुवासर करि पूजा सेव, उस पर कृपा करत गुरु देवा |
राम कृष्ण हनुमान रुप में, दे दर्शन जो जानत मन में |
विविध धर्म के सेवक आतें, दर्शन कर इच्छित फल पातें |
जै बोलो साई बाबा की, जै बोलो अवधुत गुरु की |
साई दास आरती को गावे, घर में बसि सुख मंगल पावे |
सौख्यदातारा जीवा । चरणरजतळीं निज दासां विसावां ।
भक्तां विसावा ॥धृ॥
जाळुनियां अनंग । स्वस्वरूपी राहे दंग ।
मुमुक्षुजना दावी । निजडोळां श्रीरंग ॥1॥
जया मनीं जैसा भाव । तया तैसा अनुभव ।
दाविसी दयाघना । ऐसी ही तुझी माव ॥2॥
तुमचें नाम ध्यातां । हरे संसृतिव्यथा ।
अगाध तव करणी । मार्ग दाविसी अनाथा ॥3॥
कलियुगीं अवतार । सगुणब्रह्म साचार ।
अवतीर्ण झालासे । स्वामी दत्त दिगंबर ॥4॥
आठा दिवसां गुरुवारी । भक्त करिती वारी ।
प्रभुपद पहावया । भवभय निवारी ॥5॥
माझा निजद्रव्य ठेवा । तव चरणसेवा ।
मागणें हेंचि आता । तुम्हा देवाधिदेवा ॥6॥
इच्छित दीन चातक । निर्मळ तोय निजसुख ।
पाजावें माधवा या । सांभाळ आपुली भाक ॥7॥
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ।
चरणों के तेरे हम पुजारी साईँ बाबा ॥
विद्या बल बुद्धि, बन्धु माता पिता हो
तन मन धन प्राण, तुम ही सखा हो
हे जगदाता अवतारे, साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
ब्रह्म के सगुण अवतार तुम स्वामी
ज्ञानी दयावान प्रभु अंतरयामी
सुन लो विनती हमारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
आदि हो अनंत त्रिगुणात्मक मूर्ति
सिंधु करुणा के हो उद्धारक मूर्ति
शिरडी के संत चमत्कारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
भक्तों की खातिर, जनम लिये तुम
प्रेम ज्ञान सत्य स्नेह, मरम दिये तुम
दुखिया जनों के हितकारी साईँ बाबा ।
आरती उतारे हम तुम्हारी साईँ बाबा ॥
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- REDIRECT साँचा:आरती स्तुति स्तोत्र