रानी लक्ष्मीबाई: Difference between revisions
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भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में [[भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम]] कहलाता है। इसका संचालन देश के अनेक वीर और वीरांगनाओं ने किया था। इनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज जनरल ह्युरोज के शब्दों में सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्कृष्ट वीर थी। | भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में [[भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम]] कहलाता है। इसका संचालन देश के अनेक वीर और वीरांगनाओं ने किया था। इनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज जनरल ह्युरोज के शब्दों में सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्कृष्ट वीर थी। | ||
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 21 अक्टूबर 1835 को [[काशी]] के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट | रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 21 अक्टूबर 1835 को [[काशी]] के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट, [[वाराणसी]] में हुआ था। उसका बाल्यकार बिठुर में पेशवा के लड़के राव साहब और [[नाना साहब]] के साथ व्यतीत हुआ था। उसने घुड़सवारी आदि का वीरोचित अभ्यास किया था। लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। थोड़े समय के उपरान्त उनके पति की मृत्यु हो गई। गंगाधर राव ने अपना अन्त समय जानकर एक लड़का गोद ले लिया था। साम्राज्यवादी लार्ड डलहौजी ने उन दिनों देशी राज्यों को हड़पने का कुचक्र चलाकर अनेक राज्यों को अंग्रेजी राज्य मे मिला लिया था। उसकी कुदृष्टि झाँसी पर पड़ी और इसे हड़पने के लिए रानी के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी। रानी ने इसका तीव्र विरोध किया और कहा कि जीवित रहते झाँसी नहीं दूंगी। | ||
अंग्रेजों के घोर अन्याय के विरूद्ध ही रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का विस्फोट होने पर फिरंगी अंग्रेजों से देश को मुक्त करने के लिए अपनी तलवार उठाई थी। [[झांसी]], [[कालपी]] और [[ग्वालियर]] आदि के समरांगणों में उसने अपने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। | अंग्रेजों के घोर अन्याय के विरूद्ध ही रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का विस्फोट होने पर फिरंगी अंग्रेजों से देश को मुक्त करने के लिए अपनी तलवार उठाई थी। [[झांसी]], [[कालपी]] और [[ग्वालियर]] आदि के समरांगणों में उसने अपने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया। | ||
ग्वालियर के समरांगण में ह्युरोज की सेना का सामना करते हुए उसने वीरगति प्राप्त की थी। उसके महान जीवन के पटाक्षेप का दृश्य बड़ा मार्मिक था। शत्रुओं से संघर्ष करते हुए जब उनका घोड़ा चक्कर खाने लगा उसी समय एक शत्रु सैना ने उसके सिर पर तलवार का घातक वार किया। सिर से खून की धारा बहने लगी। रानी का अब अन्तिम क्षण था। उसके कुछ सरदार मरणासन्न रानी को बाबा गंगादास की कुटिया में ले आये। बाबा ने रानी को पहंचन लिया और गले में गंगाजल डाला। रानी ने ‘ओऽम् नमो भगवते वासुदेवाय’ कहते हुए 18 जून 1858 को अपने प्राण छोड़ दिये और वह अमर हो गई। रानी ने अपनी मातृ- | ग्वालियर के समरांगण में ह्युरोज की सेना का सामना करते हुए उसने वीरगति प्राप्त की थी। उसके महान जीवन के पटाक्षेप का दृश्य बड़ा मार्मिक था। शत्रुओं से संघर्ष करते हुए जब उनका घोड़ा चक्कर खाने लगा उसी समय एक शत्रु सैना ने उसके सिर पर तलवार का घातक वार किया। सिर से खून की धारा बहने लगी। रानी का अब अन्तिम क्षण था। उसके कुछ सरदार मरणासन्न रानी को बाबा गंगादास की कुटिया में ले आये। बाबा ने रानी को पहंचन लिया और गले में गंगाजल डाला। रानी ने ‘ओऽम् नमो भगवते वासुदेवाय’ कहते हुए 18 जून 1858 को अपने प्राण छोड़ दिये और वह अमर हो गई। रानी ने अपनी मातृ-भूमि की स्वाधीनता के लिए देश के शत्रुओं के सामने सिर नहीं झुकाया था और वह बलिदान हो गई। | ||
Revision as of 03:57, 14 April 2010
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई / Jhansi ki Rani Laxmibai
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बुन्देले और हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी।
खुब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
भारत को दासता से मुक्त करने के लिए सन 1857 में बहुत बड़ा प्रयास हुआ। यह प्रयास इतिहास में भारत का प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहलाता है। इसका संचालन देश के अनेक वीर और वीरांगनाओं ने किया था। इनमें झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेज जनरल ह्युरोज के शब्दों में सर्वश्रेष्ठ और सर्वोत्कृष्ट वीर थी।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 21 अक्टूबर 1835 को काशी के पुण्य व पवित्र क्षेत्र असीघाट, वाराणसी में हुआ था। उसका बाल्यकार बिठुर में पेशवा के लड़के राव साहब और नाना साहब के साथ व्यतीत हुआ था। उसने घुड़सवारी आदि का वीरोचित अभ्यास किया था। लक्ष्मीबाई का विवाह झाँसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। थोड़े समय के उपरान्त उनके पति की मृत्यु हो गई। गंगाधर राव ने अपना अन्त समय जानकर एक लड़का गोद ले लिया था। साम्राज्यवादी लार्ड डलहौजी ने उन दिनों देशी राज्यों को हड़पने का कुचक्र चलाकर अनेक राज्यों को अंग्रेजी राज्य मे मिला लिया था। उसकी कुदृष्टि झाँसी पर पड़ी और इसे हड़पने के लिए रानी के दत्तक पुत्र को मान्यता नहीं दी। रानी ने इसका तीव्र विरोध किया और कहा कि जीवित रहते झाँसी नहीं दूंगी।
अंग्रेजों के घोर अन्याय के विरूद्ध ही रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम का विस्फोट होने पर फिरंगी अंग्रेजों से देश को मुक्त करने के लिए अपनी तलवार उठाई थी। झांसी, कालपी और ग्वालियर आदि के समरांगणों में उसने अपने अद्भुत शौर्य का परिचय दिया।
ग्वालियर के समरांगण में ह्युरोज की सेना का सामना करते हुए उसने वीरगति प्राप्त की थी। उसके महान जीवन के पटाक्षेप का दृश्य बड़ा मार्मिक था। शत्रुओं से संघर्ष करते हुए जब उनका घोड़ा चक्कर खाने लगा उसी समय एक शत्रु सैना ने उसके सिर पर तलवार का घातक वार किया। सिर से खून की धारा बहने लगी। रानी का अब अन्तिम क्षण था। उसके कुछ सरदार मरणासन्न रानी को बाबा गंगादास की कुटिया में ले आये। बाबा ने रानी को पहंचन लिया और गले में गंगाजल डाला। रानी ने ‘ओऽम् नमो भगवते वासुदेवाय’ कहते हुए 18 जून 1858 को अपने प्राण छोड़ दिये और वह अमर हो गई। रानी ने अपनी मातृ-भूमि की स्वाधीनता के लिए देश के शत्रुओं के सामने सिर नहीं झुकाया था और वह बलिदान हो गई।